पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२७६

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वापान २४ पैड़की डाली में पत्र नहीं है, दो एक डानी सूख वा उपन्याम क्या है, मानो एक गद्य-काया। इसकी जमी गल गई है और उम पर कीमा बैठा है। गीतप्रधान : भापा ३. वैमे ही भाव है-दोनों ही मधुर और उत्तम देगमि शरत्काल उपस्थित होने पर पेड़ों के पत्ते भर हैं। उम ममयके और एक उपन्यामका नाम है "माकुरा जाते है, फूल गिर जाते हैं, पोदमे पाकाग सान हो । नो जागो या तकियेकी कहानी । यह भी एक महिला. जाता है; यह हदय में मृत्यु का भाव लाती है। का लिया हुपा है। इममें देनन्दिन जीयन की घटनामों सूखी डान पर कीमा बठा है, इतनेमे की पाठक गरत् । और इतस्ततः विधिम चिन्ताराशिका चित्र खींचा गया कालको मम्मण रिजाता पीर खानताका चित्र अपनी है। इसके ममान मरन पीर म्वाभाविक अन्य मंमारमें अांखों के सामने देख सकते है । घोर भी एक कविता हा बहुत कम देपर्नेमें पाते हैं। दृष्टान्त दिया जाता है, जिममे जापान प्राचास्मिक | ईमाको १४वीं शताब्दीके प्रारम्भमे से कर थीं भायका परिचय मिलता है- गताम्दी पर्यन्त जापानी मारिताको विशेष कुछ उपति __"स्वर्ग और मत्व देयता और युद्ध फूल हैं; मनुथका नहीं हुई। इस घोचमें मर्यदा युद्ध होते रहनेमे माहिता दय है उन फूलों का अन्तरामा।" का विकाग विलकुल रुक गया था। इतने बड़े ममयमै इम कविताये जापानके माथ भारतकं अन्तरका सिफ दो ही अन्य रचे गये थे, जिनमें एक राजनीतिक मिलन हुआ है। जापानने स्वगं पोर मां को विकगित | और दूसरा ऐतिहामिक था। इसमें कुछ विशेषता फूलके ममान सुन्दर देया है। भारतवने कहा है- न थी। "एक सन्त पर दो फून म्लगे -खगं पोर मर्त्य, देवता परन्तु इम तममाशय युगमे ही जापानी नाटककी और बुद्ध; मनुषाकै यदि उदय न होता मो यह मिर्फ उत्पत्ति हुई थी। कहा जाता है कि अमे ग्रोम या थाहरके लोगोंकी ही सम्पत्ति होती। इस सन्दरका भारतवर्षमे धर्ममूलक नृता नाटककी उत्पत्ति हुई है, मौन्दर्य मापा उदयम है।" एमी प्रकार आपानमें भी शिमोधर्म के तृप्तामे नाटक जापानके माहित्य पर महिनापीका प्रभाव बहुत उत्पन एपा । परन्तु यथायमें देखा जाय तो योधर्मक अधिक है। पहले पहल मम्राज्ञी 'सुधको के अधीन | प्रभावमे ही जापान में नाटकका विकाय एपा। प्रथम जापानमें पोषिर्योका अनुसन्धान प्रारम्भ हुपा था। युगमे, नाट कमें भगवान-प्रदश दण्ड, जीवनकी एपमाः समाची 'गेम्मो को प्रधानतामें प्रयम इतिहास | रता और पाप-तापम मुक्ति होने के उपायका विषय निप्पा लिया गया था। ईमाकी यीं शताब्दीमे, ऐमा मालूम जाता था और कुछ माटक ऐमे भी होते थे, जिनमें युरादि पढ़ता है, मानो जापानकी स्त्रियों पर ही जापानी का विवरण रहता था। परवर्ती युगमे मैनिक पौर माहिताको रक्षाका भार मोप दिया गया है। पुरुप जिम मामा-मम्प्रदायमे नाटक-रचनाकै मिए यपेट उमा समय पीनका अनुकरण करने में मत्त ध, उस समय प्रदान किया था। १५यीं गताम्दीमें माधकार मियोंने घरमें बैठ कर जापानी भापाकी उत्तमोत्तम | 'कोयानामी कियोसो मिगू' और उनके पुत्र मोतीकियो में फयितापी पीर माहिताकी गृष्टि की थी। अब भी जब बहुतमे नाटक मिले थे। पापाता मभ्यता प्रथम कि मभी लोग देगी पोगाक छोड़ कर विदेगो पोगाकको प्रभावके ममय जापानकं नाटक सुमनायी गये थे। पपमा रईनापानी मियां अपने घरकी पोर देगकी किन्तु गोधही भातीय भाषके आपत हनिमे यर विपत्ति पोगाक ही पहनती है। जीवनी मियांकी कथित भापा दूर हो गई। पर भी पुरुपौकी पपेसा कोमन पोर मधुर होती हैं। जापानी सोग सामामिय होतारमनिए यह मान माको मताप्दी प्रारम्भमें 'मुरामाकिमो मिक' ही पनुमान होता है कि उनके मारितामें प्रदमन की मामक एक महिनाने मयमे पहले जापानी उपन्यास, मंग्या पधिक होगी। जापानी मामलों को कियान' निता था, जिमका नाम "गेम्सी मोनोगातारी" या पागनकी बात करते। .