पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३७४

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३३ निहारद-जी. क. ख, ग, घ, ङ, इनका उच्चारणस्थान जिह्वामूल ! उपाय है। गुनन, पियमो, निम्ब पोर कुटकीके गरम है, इसलिए इनको जिह्वामूनोय कहते हैं। गरम हाथमे कुम्मा करनेमे सिद्धारोग दूर हो जाता है। (सुपद्मव्याकरण) पित्तम जिहारोगमें पत्र पारा जोम घिम कर दूपित रस्त . (वि०) २ जी जिद्धाके मूलमे मम्बन्ध रखता हो। निकाल देना चाहिये। काको न्यादिगण सत प्रतिमारगा भिजारद सं• पु० ) जिला एव रदो दना एव यम्य । गण्ड प, नस्य और मधुर द्रोंका प्रयोग करना उचित पत्नी। है। कफज जिद्धारोगम जोमको माइनादि पप्ती हारा जिहारोग (सं० पु. ) जिताया रोगः, ६-तत् । मुखोगग के | निने तन कर रझमोक्षगा करना चाहिये। बादमें अङ्ग- पन्तर्गत रमना सम्बन्धी व्याधि, जीभका रोग। सुयुतके | लियों द्वारा मधुमंयुक्त पिप्य न्यादिगण चूर्ण धिभना चाहिये। मतमे मिहागत गग पाँच प्रकारका होता है-विदीप / उपजिलारोगमें जोभ पर कर्कश पम विप कर यवनारमे जन्य तीन प्रकारका कण्टक रोग तथा चौथा अन्लाम | प्रतिमारा करना चाहिये। नस्य. गगडप और धन और पांचवां उपजिद्धिका। वायुज जिहारोग; जीभ | प्रयोगमे भो उपजिद्वारोग पमित होता है। विकटु, फट जाती है, रसनानका प्रभाव घोर भाकपत्र के समान यवचार, हर ओर चीता, इनके चूर्ण को बराबर वगवर उमका रङ्ग हो जाता है। पित्तज रोगमे जोभका रहा। मिना कर घोटनेमे अथवा इनके छिलकोंको चोगुने पीला हो माता है, दाह होता है और जीभ लाल काटी-, पानोमें सैनके माथ पाक करके प्रयोग करने से उपजिहा मे वेरित हो जाती है। कफजन्य रोगमे जीभ भारी| रोग पाराम होता है। मान्नूम पड़ती है, उमका मांस ऊँचा हो जाता है और निशान्तिह ( म० पु.) जिया लेडि जिला- लिहिए । जीभ पर बहुतमे कोटमे उकर पाते हैं। अलास रोगमे | कुकुर, कुत्ता । जीभके नीचेका भाग सूज जाता है। यह कफरकामे | निहालोल्य (म' स्तो० ) पेटकता, भुक्खड़पमा। उत्पन होता है। यह सूजन बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ जिज्ञावत् (म० पु.) १ यजुर्वेदीय बंग भागत एक जाती है कि, फिर जीभ हिलाई इलाई भी नहीं जा | पिका नाम । (वि.)२ जिताया। सकती। साथ ही जिज्ञामूल पक जाता है। जिलाका जिज्ञायल्य (सं० पु. ) जिताया शस्थमिव । खदिन, अग्रभाग फुन्न कर ऊँचा हो जाता है और उसमे नार | खेर, कत्या। टपका करती है, खुजली और जलन होती है। जोभको जिद्राबाद (म'• पु०) जिजया स्यादः, ३ मत् । लेपन, ऐसो पपस्या होने पर उपजिद्धिका रोग समझना चाहिये। घाट । (सत०) मिहा देले।। जितिमा (स. स्त्रो०) जिद्धा, जोमो । जिहारीगौम पनाम रोग असाध्य है। (भावप्रकाश | | जिद्धीने खुन ( म० की.) जोभ छाल कर माफ करने का इस रागर्म पृतदिरवटिका एक पच्छी श्रीपध है।। काम । इम बटिकाको महम रखनमे गाल, मोठ, जीभ, दांत जिनोमेनिका (म. स्त्री० } 4 जिनमे गोभ छोन पोर तान सम्बन्धी रोग नष्ट हो कर मुख सुरम और कर साफ को जाती है, जोभो। मुगन्धित ही जाता है, तया दौत मजबूत हो जाते हैं। जो (हि.पु.) १ चित्त, मन, सवोयत, दिन। अमे- राम यटिकामे जीभको जड़ता दूर होती और भोजन | भय तो लिखते लिवी जो उकता गया, प्रवतो भी नहीं रुधि बढ़ती है। विद्वागगर्म दरावन, सान, खटाई लगता। शेमला. हिम्मत, जोयट, दम । मेम-पो मत्स्य, दही, दूध, गुड़, मोठ, रूखा पत्र, कठिन भोजन | उसका प्रो हो कितना है, जो यह जायगा, जो बदनिके प्रधामुख-आयन, भारी और कफनाट्य तथा दिना लिए लड़कों को इनाम दिया जाता है। कल्प, इच्छा, सोना यह सब छोड़ देना चाहिये। मुखरोग देशे। चार जेमे-ज्यादा नो मत चलायो, यया करें यार में जिडागत रोगमें राम-मोशन कराना हो सबमे येठ । देखते हो उम पर मेरा जो चलता। Vol. VIII.SA -