पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५

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माप्तम होता है कि प्रथा पहले एका विराट | गई थी। उस समय तथा उनके ममरकन्द विजय समय ' अन्य था। नष्ट हो गये थे। उक्त ग्रन्यो में दिये हुए अयस्ताके विवरण के पढ़नसे | सिकन्दरगाहक विजय करने पर जरथुस्त-धर्म का' . हात होता है कि, अवस्ता सिर्फ धर्म ग्रन्य ही नहीं था | प्रभाव बहुत कुछ घट गया था। परवर्ती ५०० वर्ष तक .. परिक उसमें एधियोके सभो विषयों का कुछ कुछ ममा ! जब सेसकिडवंशीय और पार्थि यान् सम्राट. राज्य वेग था । सम्पूर्ण अवस्ता २१ नस्कॉम विभक्त था और करते थे, उस समय अपस्ता अन्य के अन्यान्य खण्ड भो मात नस्कों का एक एक विभाग था। संक्षेपत: २१ / विलुस होने लगे। कई स्थानों में इसका कुछ कुछ घश स्कों में निम्नलिखित विषय थे- रक्खा गया और कुछ अंश धर्म के पुरोहितो ने भी कण्ठस्थ . १धर्म, २ धर्मान छाम, ३ तोन प्रधान प्रार्थनापों' - कर लिया। ईसाको ३रो शताब्दी के प्रारम्भमें प्रवस्ताके तो व्याख्या, ४ सृष्टितत्व, ५ फलित और गणित ज्योतिष, जो जो अंश रक्खे गये थे, उन्हें ही पार्सकिय शके । धन धान और उसका फल, ७ पुरोहितो के गुण और शेय सम्राट्ने मंगृहीत किया। सरू नोशिरवानकी । मतव्य, ८ मानव जीवन में नीतिशास्त्रको उपयोगिता, (५३१-५७८ ई. ) एक घोषणासे ज्ञात होता है कि

धर्मान छान सम्पादनको नियमावली, १० राना गुस्ता] सम्राट बालखासने, जिनको साधारणता १म भोलोगे.

पकी दीक्षा शिक्षा और प्रार्यास्पके महित उनका युद्ध, - मेस समझा जाता है, पवित्र ग्रन्य घान्द अवस्ता के अनु.. १ संसार भोर धम के नाना कर्तव्य, २२ जरथुस्तके | संभान करने में जीजान कोशिश की और जितना अंश गायिर्मायके समय. तक मानव-जातिका प्रतिक्षाम, १३ | मोगोंको कण्ठस्य था, उसको लिपिबद्ध कराया |शासानिया रणनके प्राविर्भावके : मम्बन्धमे भविष्यमापो, १४ | वंशके प्रतिष्ठाता सम्राट अर्डशीर पपकान (२२५-२४०१०) रहिमन और देवदतों की पूजा-पति १५ धर्माः मोर उनको मुत्र बालासने कार्य को वसी खुशी धिकरण और व्यवहारशाम्त, १६ दोवानी, फौजदारी और साथ चलाया. और महापुरोहित तानमारको पस्ताके युद्धसम्बन्धी कान ना १७साधारण धर्षके नियम, १६ दाय विचिन्न अंथों के संग्रह करने के लिए आदेश दिया। श्य सग,' प्रायशितमत्व, २० पुण्य और धर्म, २१ शाहपुरके राजत्वकांत (३००-३८० ३०) में उनके प्रधान देवदतों को स्तुति । मन्सो प्रदरपाद-मारमपेन्दानने ज.न्ट प्रवस्ताका संशोधन इतिहास -प्रयाद है कि, प्रारमियों के प्रथम युगमें किया और यह घोपित हुआ.कि उन्हीं के द्वारा संग्रहीत खमनीय बंग मम्राटो ने बड़े यत्र के माय अयस्ता | और संयोधित ग्रन्थ ही धर्म पुस्तक है। . . .' को रक्षा को थी। सवारोका कहना है कि मम्राट विस्ता. सिकन्दरगाहसे श्राक्रमपा या उनके परवर्ती युगको पने जरटुस्तके धर्मरचार के कार्य में बहुत कुछ महा- | लापरवाहोमे जन्दप्रवस्ताको जो दुईया हुई थी, उसमें यता पहुंचाई थी पौर पयस्ताग्रमको सुवर्णाक्षरमें | भो कहों अधिक क्षति हुई थी मुसलमानों के प्रारमण लिखया पर पोधियों के किले में रखा था। इस प्रसादको और कुरानो धर्म प्रचारमे । लरथुस्त्र:धर्मावलम्बियों को टि दोनफदप्रत्यके इस विवरणमे होतो है कि भापी. मुसलमानोंने देश निकाला दे दिया था और उनके धर्म गानके रखागारमें एक यम म्य प्रयम्ता रकवा है। अन्यों को जला डाला था! फारम चोर भारतवर्ष के कुछ "गायोडायो ऐरान" मामक परयो पन्यमें लिखा है कि 'पारमियों को इसका जितना अंग प्राप्त हुमा, उतमा प्रयताको टूमरो एक प्रति ममरकन्द पग्नि-मन्दिरके उन्होंने यन्त्रपूर्वक रख लिया। वर्तमानमें उतना ही पंग धनागार, सवर्णाक्षरों में खोदी गयो यो। उममें १२०० देखने में माता है। . .' .. अध्याय है। ये दोनो हो अन्य ईसाको २३० पूर्व सादो वर्तमान प्रापका विषय-वर्तमान समय में हन्दप्रयस्ता चार "पभिगा किन्दार' (पलेकमन्दर ) के द्वारा नम | मागों में विभा-(१) यम्र-इसमें गाया, विश्परद चरोमनीयों के पारसो-योनिमका मासादमें भाग लगाई। पौर यप्त नाममे तोन भाग है, (२) न्यायिक गार पादि