पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६४

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जयपुर धानी के रूप में रहा । कहा जाता है, कि दूल्हारायके | इन्होंने अयपुर, दिशा, बनारस, मर्थ रा और उज्जैनमें उत्तराधिकारी चौये पजन (किमोके मतसे पांचवे )ने । वेधशालाएं बनायीं। अम्बरसे राजधानो उठा कर दिलीके शेप हिन्दूराजा पृथ्वीराज चौहानको लड़कोझे । १७२८ ई० में उन्होंने जयपुरनगर वसाया था । साथ विवाह किया था। ११८२ ई में ये अपने श्वशुरके | जयपुर के सभी राजामो जमिह ही सबसे प्रसिद्ध साथ महम्मद गोरोके हाथमे मारे गये । चौदहवीं शता. थे उस समय उनको तूनो चारों ओर बोल रही थी। ब्दोके अन्त में उदयकरण अम्बरके प्रधान थे। इस समय । उन्होंने अनेक विपत्तियों का सामना कर अपना राजा जो जिला आजकल शेखावाटी कहलाता है वह कच्छ विस्टत किया था जब जयपुर और जोधपुरके प्रधान वाहों के हाथ लगा। अपनी लड़की मु गन्त बादशाहको देने लगे, तबसे उदय. मुगलों के आने पर बाहरमल (१५४८से १५७४०)। पुरके माय इनका मनाव नहीं था। किन्तु हितोय जय. राजा मुसलमानों के अधोन हुए। इन्होंने अपनी लड़की सिंहने म सलमानों के विरुष उदयपुरसे मेल कर लिया को अकवरसे व्याा । बाहरमनके पुत्र भगवान्दास और तभीसे वे अपनो लड़कोको उदयपुर-परिवार में व्याइने अकबरके मित्र थे, क्योकि इन्होंने सरनालको लड़ाई में लगे । इनके मरने पर भरतपुरके जाटोंने राज्य का कुछ

अकबर की जान बचाई थी। इस कारण वे ५००० अखा अंश ले लिया और १७६० ई०को मारो ( वर्तमान

• रोहोके अध्यक्ष तथा पञ्जाबके गवर्नर बनाये गये । १५८५ } प्रन्लवर)के राजापोंने पोर भी उमको सोमा घटा दी। या १५८६ ६०में इन्होंने अपनी लड़कोको मलीमसे, १८०३ ई०को हटिम गवर्न मे एट और जयपुर नरेश जो पीछे जहांगीर के नामसे प्रसिद्ध हुए, व्याहा । १५८० जगतसि हमें मराठों के विरुद्ध एक मा बनाने के लिए ई में भगयानदासके मरने पर उनके दत्तकपुत्र मानः | मन्ध हुई. परन्तु १८०५ ई० में इस कारण वह टूट गयो सिंह उत्तराधिकारी हुए, किन्तु १५१४ ई०में इनका कि राज्यने होलकरमे लड़ने में अगरेजोको सहकारिता देहान्त हो गया। मानसिंह बड़े सूरवार थे। तथा न को यो। १८५८ ई० को सन्धि के अनुसार अंगरेजोंने मुगलराजो विश्वासपात्र भी थे। हिन्दू होने पर भी राज्यरक्षाका भार अपने ऊपर लिया और कर लगा उस समय इन्दों को चलती बनती थो । इन्दो ने उड़ीसा, दिया। बङ्गाल तथा पासाम देशको जोता था और कुछ काल | जगत्सिंहको मृत्यु के बाद उत्तराधिकारके विषय में ये काबुल, बङ्गाल, विहार तथा दक्षिण प्रदेश के शासक | फिर झगड़ा खड़ा हुआ । राजपूतोंमें ऐसो प्रथा प्रचलित थे। मानसिंह के बाद प्रथम जयसिंह राजाके उत्तरा-] है कि, निःसन्तान अवस्थामें राजाको मृत्य होने पर. धिकारी हुए। राजा होने पर इन्होंने अपना नाम मिरज़ा | मृत्यु के अव्यवहित काल पोछे हो कि भी घिरा या राजा रखा । दक्षिण प्रदेशमें औरङ्गजैवको जितनो लड़ा। युवकको दत्तकपुत्र ग्रहण कर उसके मृत राजाको इयां हुई समोमें इनका नाम पाया जाता है। ये ६००० अन्त्येष्टिक्रिया कराई जाती है। अम्बारोही अध्यन थे। इन्होंने महाराष्ट्र वोर शिवाजीको पहले नरवरमें कच्छवह राजापीका राजा था। पपम्त किया था। बाद औरङ्गजेब इनमे डाह करने लगे | नरवरके शेप रामाको प्रपुत्रकावस्था मत्यु होने पर, भोर १५६७ ई० में इन्हें विष खिन्ता कर मार डाला। इन | वहाँकै सामन्तोन भामरक राजा रम पृप्याराज को मृत्यु के बाद हितोय जयसिंह १५८६ ई. में सिंहाः । पुत्रको ला कर उन्हींको राजामिषित किया था। उनके सनामद हुए। मुगलबादशाइसे इन्हें सवाईको उपाधि १४श पुरुष मनोहरसिह थे। इस समय नहीं मनो. मिलो थो। इस कारण ये सवाई जयसिंह नामसे मसिह थे। हरसिंहके पुत्र मोहनसिपको ही जयपुर राजा. कुछ काल राजा कर १७४३ में इनका प्राणान्त हुआ। सिंहासन पर बिठाया गया। इसके कुछ दिन बाद हो .ये घिस्पकार्य तथा वैज्ञानिक शास्त्र में बड़े हो निपुण थे। प्रगट हुपा कि मत जगत्सिदको महिपो भन्यिानो इन्होंने गपितके कई अन्य संस्कृत भाषा अनुवाद किये।। गर्भवती हैं, शीन ही उनके सन्तान होनेवाली है। Vol. VIIL 16