पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६६

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जयपुर

सो और बढ़ा कर १८ तो दी जाने लगौं । १८८७ ई. , उन बारह पुत्रों के नाम क्रमशः नीचे दिये जाते हैं--१ में इन्हें G.C.S. I. १९०१ में G.C. I. E. और । चतुभुज, २ कल्याण, ३ नाथ, ४ बलभद्र, ५ जगमक्ष । १८.३९०में G.C. 1.0. की उपाधि मिली। इनके (इनके पुत्र का नाम था खगार), ६ सुलतान, पुचायेन, समय में कई एक सिंचाई के काम, अस्पताल तथा दातव्य ८ गूगा, ८ कायम, १० कुम्भ, ११ सूरत और १२ वन- चिकित्सालय खोले गये । १९०२ ईमें ये सहम एडवर्डके बोर। इन बारह पुत्रों से यथाक्रममे १ चतुभुति, २ . साथ विलायत गये थे। कल्याणोत्, ३ नाथावत्, ४ बलभद्रोत ५ खगारोत ६ इनके पुत्र का नाम महाराज मानसिंह है। जयपुरके । सुलतानोत्, ७ पचायेनोत् ८गूगावत्. ८ कुम्भानो, १० राजाओं में किसीके पुत्र न होने पर राजावत् कुलके किसौ कुम्भावत्, ११ सुवर्णपोता और १२ धनवोरपोता इनवारह बालकको सिंहासन पर बिठाया जाता है। म पृयो । घरोंको उत्पत्ति हुई है। इन बारह घरोको रामपूतगणा राजके बारह पुत्रोंसे यह राजावत् वंश उत्पन्न हुआ है ! "बारह कोठरी" कहते हैं। ये लोग ही जयपुरके प्रधान

  1. नीचे जयपुर के राजाओं के नाम दिये जाते हैं-

बारह सामन्तके नामसे प्रसिद्ध थे। इन बारह घरों से (1) दुबाराव *, अभिषेक (1) बादारमल (1म पृथ्वी. अब करीब १०० घर हो गये हैं। इनके पास अब पहले सं० १०२३। राजके पुत्र )। जैसा ऐण्डर्य तो नहीं रहा, पर इनका सम्मान अच्छा • (6) कंकाल ( भूधराज्यके (५) भगवानदाय। । होता है। उद्धारकर्ता) (२३) मानसिंह इनके सिवा कुछ दिन पहले राजावत, नारुक, भानुवत् (३) मादलराव (४) भवसिंह (भासह) पूर्णमहोत् भादि कच्छयह जातोय कुछ सामन्तो के घर (४) हनूदेव । : अभिषेक सं० ११ कबि भी उनसे दो एक घरका पूर्ववत् मम्मान है, (१४) महासिंह, अभिषेक सं०१४ पर अधिकांशको अवस्था बदल गई है। इसके अतिरिक्त . (.)पूजन । (२०) जयसिह * मीओराजा ।। जयपुर राजके अधौन भधि, चोहाना मौरगूजर, चन्द्रावत्, (७) मलसिंह* (मालसिंह) (मानसिह के भतीजे) शिकारवार, गूजर, मुसलमान प्रादि जातीय सामन्ती के (८) विजली। (२०) रामसिह . ४०.४५ घर हैं। उपरोक्त सामन्तों में गूंगावत् सामन्त ही (अ)राजदेव । (२८) विष्णुसिह *। प्रधान हैं, उनकी प्राय:४ लाख रुपये प्रधिक है। कुछ (0) कल्याण। (१८) सवाई जयसिहा ममि) माधणं मामन्त भो हैं। इनकी आय भी कम नहीं है। (1) कुन्तल। : षेक सं० १०५ ___ जयपुर राज्यको लोकसंख्या मायः २६५८६६६ है। . (११) अवानसिंह । . . (३.) ईश्वरीसिह, अभिषेक । यह राज्य १. निजामतों या जिलों में बटा है। . (३.) उदयकरण । सं० १०॥ जयपुरक राजा बहुत दिनों से हो जागीर और ब्रमो. (१४) नरसिंह। (३१) मधुसिंह (ईश्वरी तरदान कर चुके हैं। वर्तमानमें उन जागोगे और (४) वनवीर। . . सिंहके वैमात्रेय भाई) प्रमोत्तरीको आमदनी करीव ७० ला० रुपये होगी। (५०) उद्धरण। भभिषेक सं०१८।। इसमें एक शहर और ३७ कसबे हैं। यह राजपूताने में (10) चन्द्रसेन। (३५) पृथ्वीसिंह य अभिषेक सबसे अधिक पावाद राजा है। हिन्दुओं में वे पाव- (१८) पृथ्वीराम रम, (नके सं० १८३३४ . सम्प्रदायका प्राबल्य है। इसमें बैलोको जगह प्रायः मंट पुत्रो ५ पर रामावर (1) प्रतापसिह (मासिक सिंहके पुत्र) अभिषक सं. (३०) रामसिंह य, अमि- सामन्त उत्पन हुए हैं। । य पुत्र अभिषेक सं. १८३१ १५। ... । घे सं.१९ (१९) भीम (पिथपाती) 4) जयसिदय (जगत् (३८) माधवसिह (दत्तकपुत्र) (.) मदीराकर्ण (पितृ.: . सिंहके पुत्र) भभिषेक सं०१० ममिषक सं. १९१० ॥ ... न्ता)। ... (३५) मोहनसिंह (मनोहर । विहिनत राजाओं का विवरण उन्हीं शम्दमें देखना चाहिए।