पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६७

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जयपुर मगतामोगो की प्रधान खाप माजरा पौर जुधार | नेकी चीज है। रातको प्रेमको रोगनो होतो है। है। इस गजामें कई बड़े पड़े तालाब है। जालों में / १८०४ ई०से भमानगाह. नदोका पानी नतोके सहारे कदार मुफत और दूमरे सोग महसल दे कर मवेगी । पाता है । १८३८१०को म्युनिसपालिटो हुई। सर. घराते हैं । मिया नमकर्क दूमरा धातु बहुत कम निक कारो कोपमे उसका सप खचं दिया जाता है। शहरका लता है। लोहे का काम बन्द है । सङ्गमरमर बहुत मिलता, कूड़ा टोनेकी मैं सोको ट्राम चलती है। प्रधान व्यवसाय है। भवरकको भो ग्वान है। कार पोर चूनको कोई रंगाई, मामरमरको नमागी, मोनको मोनाकारी, महो. कमो नहीं। यहा कनो पीर सूती कपड़ा.बनता है। के बर्तन और पीतलका मामान ६।१८६८ को मङ्गमरमर पर नकामी पौर महो तथा पीतल के बर्तन तैयार | यहाँ कलाविद्यालय खुला । उममें चिवविद्या, रंगसाजी, करते है। जयपुरके रंगे और छपे कपड़े बहुत अच्छे | नकाशी, प्रादि उपयोगो विषयोको शिक्षा दो भाती होते हैं। मोने, चांदो और तायको मौमाकारी मशहर है। महाजनी पोर हुण्डीवालीका सब काम होता । रामा गईको कई कलेंमी है । प्रधानतः नमक है। १८८५ १०को गगरके बाहर कईके २ पुतलीघर . की, घो. तेलइन, छपे कपड़े, ऊनो पोशाक, सङ्गमरमरी | खुले थे। यहां शिक्षण संस्थाए' बहुत है। महाराज मूर्तिया, पोतस्तके सामान और चूड़ियों को रफ्तमी होती कालेज उझेखयोग्य है । अस्पतालों की भी कोई कमो है। राजपूतामा मालया रेलवेमे सब माल भाता जाता नहों। शाइरसे बाहर २ जेल है। रामनियासबागमे है। जंट भी चीज से नानिमें ध्यवरत होता है। प्रज्ञायव घर है। जयपुर गजामें कोई २८३ मील पको पौर २३६ म.ल जयपुर--मासामके लखीमपुर जिलों में डिवगढ़ मध. . कची सड़या है। महाराज १. सदस्योको कोसिस्तमे राजा डिविजनका गाय । यह पधा. २०१५. और देगा। प्रबन्ध करते हैं। इसमें पर्थ, न्याय पोर पर राष्ट्र प्रादि | ८४२३ पू०में व दो दिहिन नदीक थाम सटपर तोन विभाग सम्मिलित है। तहसीलदारी सबसे छोटी पयस्थित है। इसके निकट ही कोय . पौर मोके । प्रदान्तत है। इसके ऊपर निजामत है। महारान पपनो सेलकी खान है। यह स्थान स्थानीय व्यापारका केन्द्र। प्रमाको फासो दे सकते हैं। राजाका साधारण पाय | जयपुर-मन्द्राज प्रान्तके विशाखपरान जिले को एक प्राय: ५५ लाख है। यहां झाड़गाडी सिका चलता है। नमोन्दारी। यह छ जिले के समय. उत्तर भागम टफयानमे पर्फी, रुपया पौर पसा टायते हैं । पढ्नेको विरत। नासके कासाठी राजाने उसको फीम नहीं लगती। दो भागों में बांट दिया है। १८६१ में फान म बना २ राजपूताना जयपुर गमाको रामधार्मा। यह करके नरग्नि रोका गया ।। जयपुर घराने के पूर्वपुरुष पता. २६५५२० पौर देशा० ०५५. पूछमें राजः सत्कम्तस्य गजपति राजापों के महगामी थे। १५चौं पूताना मासया रेलधे पर पवस्थित है। यह राजपूतान | ताम्दोको चन्द्रपंजीय राजपूत थिमायकदेवने गा. का मयसे यहा शहर। सोकसंख्या को १५.१५0 पति राजाकी कग्यामे विवाह किया। उगाने की लोगो। सममित महागन मथाई नयमिक नाम अयपुर जमादारी दी थी। फिर या विमानपत्तन पर को जयपुरका नामकरण पा है। दक्षिण दिक् प्रधान प्रापरमा १०६४ में मन्द्राण सरकारने भिन्न म पोर पहाड़ी पर किसे बने है ! नाहरगढ़ दुर्ग जयपुर के गामकको एक मिरामी ममद दो। कारपरलो. पपई। नगरको पारी पोर मायोर महमें बहुत ने विजयनगरम युबके ममय यफादारो.की। १८०३९. प्रधान वय १११ फुट घोड़ा। बोधर्म राज. कोरसकी मामगुजारी (पंग ) ...) ह.यो। मामा देखते ही बनता । तातकटोगतामाथ पारी में गान मेण्टमे रामपरिवार गरसमे . पोरदीवारी nिt • पागामान सामाप पडि धमकी कुछ तरमो में मी।.१८५५ में फिर पाम । मतसम्बन्धीय परमाना टेप.! पदारमा पोर मरकारको दोयानो घोर फौजदारी