पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६८

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जयपुर-जयभट कान न जारी करना पड़ा। उसके बाद यहां कोई जमीनको हस्तान्तरित वा विक्रय कर सकते हैं, इसके भगड़ा नहीं लगा, केवल १८५५-६६०को सावरों ने लिए राजा वा गजपुरुषों से अनुमति नहीं लेनी पड़ती। कुछ उपद्रव किया था। १८ . श्री विक्रमदेवको २ मन्द्राज प्रान्त के विशाखपत्तन जिले को एजन्सो • "महाराजा" उपाधि मिली। इस राजको वन विभागमे तहसील । यह घाट पर्वत पर अवस्थित है। क्षेत्रफल घड़ी पाय है । हम जमींदारीका अधिकांश राजा एव १०१६ वर्गमौल और लोकस'च्या प्रायः १३३८३१ है। सहकारी टिश-एजेन्टके कट त्वाधीन है तथा कुछ लोग १२१३ गांवों में रहते हैं । प्रधान नगर जयपुर है। (गनपुर भोर रायगढ़ जिला) सिनियर असिष्टे ण्ठ कल ! इसकी जनसंख्या कोई ६३८८ होगी। इसी नगर, जय कटर के अधीनमें है। पार्वतीपुरमें उनकी कचहरी है। पुर राजाके महाराज रहते हैं। समग्र राजाको माल. .. इस जमींदारीके मध्यभागमें पांच हजार फुट ऊंची। गुजारी लगभग २६०००) २० है। इसके मध्य कोलब नोमगिरि नामक गिरिमाला है। यहाँसे मोतस्यतो मदी प्रवाहित है। है, जो दक्षिण-पूर्व को पोर वगधारा नाम कलिङ्ग- जयपुरटुर्ग-मजयगढका एक प्राचीन नाम । हहबोल. 'पत्तनमें तथा चिकाकोलको धारा होती हुई नागावलि | तन्त्रक मतमे जयपुर एक पीठस्थान है। .. नामसे समुद्र में जा मिली है। वंशधारा नदोके दोनों | जयप्रिय (स.पु.) १ विराट राजाके भाईका नाम । किनारे बास के पेड़ बहुत उपजा करते हैं। पूर्व एवं] २ तालके साठ मुख्य भेदोममे एक । इसमें एक लघु, एक उत्तर-पूर्वा ममें शौरा पहाड़ है जिसकी उपत्यका प्रायः गुरु औरतब फिर एक लघु होता है। दो सौ वर्गमोल विस्तृत है। जयभट-इस नामके कई एक गुजरराजोंका उल्लेख मिलता ____ौंदारीके अधिकांश स्थानमें अस्वाधीन कन्ध है, जो मरकच्छमें राजा करते थे । कायो, उमेटा, जातिका वास है। उत्तरांशम' गोटेरो: विषमकटक और बगुमड़ा और एलाइसे पावित.ताम्र लेख बारा जय. अनापुर ये सोन स्थान तीन प्रधान सामन्तों के अधीन भटोंका इस प्रकार सम्बन्ध, निर्णय किया जाता है- है। जमींदारों के प्रधान नगर जयपुर नपरजपुर पीर .१मदह कोटिपाद है। १म जयभट वीतराग 2: यहां कन्ध पौर शवर जातिका वास हो पधिक है। (४८९ सम्वत्). 'पधिवासियों में अधिकांय हिन्दू धर्मावलम्बी हैं। इन श्य दह-प्रशाम्तरांग का चेहरा गोड़ द्राविड़ और कोलभावमियित होता (शक सं०१००-४१७) यहां.प्रत वाण, चत्रिय, वैश्य प्रादि पार्यजाति बहस कम है। यहाँको मजा करीब बारह पाना भार्य- भावापन है। नगर पादिको प्रजाको अपेक्षा पहाड़ी श्य दक्ष प्रजा बहुत कुछ स्वाधीन है। उनमें एक एक गोष्ठी- श्य जयमंट-बोतराग 'पति होता है। सबको उन्होंके पदेशानुसार आचरण काना पड़ता है। नमो दारीके दक्षिणायने जाल काटने ४र्थ दह-प्रशान्तराग पौर खेती करने के बाषत इमे भा झगड़ा हुआ करता ( चेदिसं० ३८०-१८५) , श्य जयभट इस मौदारीका बन्दोवस्त प्राचीन. हिन्द प्रथाके अनुसार होता है। यहां गोष्ठीपतिके पर ग्रामपति | और उनके जपर राजा होते है। रामा ही जमोनकी। घया खत्याधिकारी गोष्ठीपति भी. इच्छानुसार किसौ Vol. VIII. 11 ५म द६-वासहाय ४ जयभट . ..(दिसं० ४५५.४८) !.. .