पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६८०

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ज्योतिष ६२१ में मुख पौर पमुक समयमें दुःख होगा. कोई बड़ो बिर दोख पड़ते हैं। उस स्थान पाकाशका उत्तरकेन्द्र यात महीं उममे कुछ साम मो नहीं। यह विषय इतना कहलाता है। उस स्थान मे हमागे घोर जो सोधो गया. अनावश्यकीय है कि उसके लिए हमें तनिक भी विचार को कम्पना को जातो है, उम रेयाक परिवनकी करनेको नपरत महीं । फलतः सुखदुःखके समय मानको कल्पना करनेमे हमारे नोचे भो व्यवस्थानके ठोक विपरीत भो पावश्यकता नहीं। .. दिशामें जो स्थान है. उमे दक्षिण केन्द्र कहा ना मकता योतिष-सम्बन्धी साधारण शान-पाकागो भोर टूट है। ये दो स्थान उपस्थित रेखाक मोमाविन्दु वा डालमेसे चारों तरफ प्रमप्य नक्षत्पुन दृष्टिगोचर होते पक्ष हैं। नचतु पञ्जर (Axis) प्रतिदिन उम मोमा. ६.ये नक्षत्पुन घट एट में अपने स्थानमे कुछ कुछ विन्टु के अन्तर्गत नक्षतमगइन परिश्रमण करते हैं। उता पारामकी भोर इट जति हैं, जिम देखनमे माल मा दोनों मोमाविन्दु पृथियों के केन्द्र पोर विपुवरेखा पर दो होता है, मानों ये नक्षतान किसी गोलयन्ध भयस्थित | ममकोयों में अवस्थित है पोर पृथिवी प्रत्येक स्थानमे है और उसके घट जानस वे क्रमा: परिमकी पोर इट वे एक हो प्रकार टिगोचर होते हैं। ग्रहादिक म्यानको कर, पोछि पदृश्य को जात है पोर उसके अपर पार्स | भाति एनका कुछ परिवर्तन नहीं होता। स्थित नक्षत्पुञ्ज क्रमशः दृश्यमान होते हैं । म पाकागके प्रायः उत्तरेन्द्र में जो इस नक्षत, प्रकार देखते देखते इम पनायास ही जान सकते हैं। उमे भारतवर्षीय प्राचीन विहानीने उतरवभवतारा कि एक दिनके भीतर ही उसका भमण ममाम होता | वाध वनक्षत्र कहा है। माघोन विहान्गण मौके है। यहभ्रमणकाल ठोक हमारे दिन के बराबर होता हो. परिचयके लिए चिव धनात ये भोर तियार टोपीवाले ऐसा नहीं । कारण यह कि यद्यपि प्रतिदिन उदयकाल | नवोंको मूर्ति मत्स्यातति दिग्वलाई देने के कारण उम में वे नत्तत्पुन प्रायः पूर्व पूर्व स्थानमें दीख पड़ते हैं, मूर्ति को ध्रुवमत्स्य करते थे। युरोपीय विभागण मे तयापि वियपरूपसे निरोषणा करनेमे मास म होगा कि | भान को पारुतिका समझ Bear कहते थे । गाई उनका उदय प्रतिदिन ठोक उन उन स्थानों में नहीं ! पोरका नक्षत्र Little brar कहनाता था और वाहिनी होता । प्रतिदिन प्रायः चार चार मिनटफा अनार प्रोगका Great bear | छोटे भान को पूछो पग्रभागमे पड़ता है। पतपय समारो दृष्टिमे प्रायः १५ दिनमें भो (एक) सारा दिखनाई देता है, यहो धूयतारा है। । (उनके एक घण्टे में) परिक्षमण होता है पोर १ वर्षमै यह मन हो पहचाना आ मकता है। मर्पि मण्डन्न उनका भमण पूर्ण हो जाता है। फिर वे पूर्व में जिम | नामके जो प्रसिह मात नक्षत्र है, उन्होंके द्वारा उनका • ममय जिम स्थानमें थे, उम समय वहीं दीखने लगते हैं। विगेप परिचय मिला करता है। ये मात नक्षत्र कहीं भी पर्यात् एक वर्ष माष्ट ये फिर अपने पूर्व स्थानों में पा क्यों न रहें। यदि उनमें 'क' पौर 'चिडिस नायके जाते हैं। , . मध्य एक रेखाको कम्पना को जाय पीर उम रखाको उपर्युक्त यादवले मान्न म होता है, कि मय के साथ ये ! परियहित किया जाय तो दे भय नक्षत्र पति मिशट. ममम्त भूपधर पपने अपने कोलकम रहते हुए म र्य की वर्ती हो जाते हैं। इसलिये उन दोनोंको प्रदर्गामात्र पपेक्षा प्रायः ४ मिनिट कम पीवीस घण्टे में पृथिवीको । कहत हैं। परिवेष्टन कर भमण सरत हैं। ये मात नतर प्रेटनिटेमम अम्तगत हो कर पग्न जिन ममताका पम्त मही होता. उन्हें धवनमत | नहीं होते। कभी ये धुव पोर कुचक्र के मध्य पौर कभी करते। ये नत्तत यमतःभमान करते हो. ऐसा भ्रवके पूर्व वा पयिम पाकाप उच्चतर भागमे, प्रायः नहीं किन्तु उनमा भमणपय जाम, पृथियो पके । गिरोविन्दु निकट दोन पढ़ते हैं। नमानसगलम पीर इतमा दूरवर्ती. है शिri उन* यदि उत्सरदिगाका नाम हो तो ध्रुयना मनसे भ्रमण करने पर भो समाधिन वे मतत एक मानम | पहचाना मा मकता जिस मक्षाको म सपने देयमे ToL. Vil. 156