पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७३१

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उपर फारए वतमाया माता है, किन्तु ममय ममय पर गारी- रतिम मुगमाइन, हतगामो नाड़ो. गोया पोर मह.. कि पोर मानमिक दुर्य नताके कारण इस को देगाको धमनियों में पपल स्पन्दन नया पित्तभम पादि. उत्पत्ति एधा करती है। गरस्कान में हो, म ज्याझा उपसर्ग देपमें पास है। प्रादुर्भाय देपन पाता है। ग्रोम और वसन्तराम (प) रामोन ( Diplction of blowt) .. यह ज्या परत सम होता है। से सायधिक दीर्वस्य के कारण रोगी परपट पोर मुटु ___ सक्षम-म ज्वरमें जितने सतण प्रकाशित होते हैं, मनाप यकता है। म ममयमें मादी चोण, पिता उमझा यन मविराम ज्वरो प्रकरण किया गया | कम्पित और शुष्क, तन्द्रा, पचेतन्य प्रादि समय प्रकट है। मंक्षेपमे-इम ज्यरमें कभी भी मम्पर्ण विगम होते है। . ( Remission) नहीं होता, पति पल्पमात्रामे कभी २। मम्ति झावरगाप्रदाह ( Meningitis)-म कभी गमका विराम होता है। माधारणत: वल्पविराम प्रदान के उत्पम होनेसे रोगो पागलकी तरह शय्यामे उठ ज्यरका मिशन (विराम ) प्रातःकालमें हो कर नई कर पन्य स्थानको जानेको कोगिय करता है तथा हाय मंख्या ४५ घण्टा तक स्थायी होता है। इसके बाद | पैरोंको पगियों में पाक्षेप उपस्थित होता है। कभी कभी फिर ज्यर प्रकट होता है। इम ज्वरके भोगकालको | तन्द्रा पोर चित्तनम भी होता है। योई स्थिरता नहीं, कभी कभी यह ज्यर २०२२ ।। (क ) यायुननी पदाए । दिन तक मोजद रहता है। इस ज्वरमें जो समस्त __. (ब) पर्स में रमवय या प्रदाए-इसमें था. नचाप प्रकाशित होते हैं, उनमें प्रयल गिर पोड़ा, रक्तिम | म्यनमें वेदना, खामममाम, कर, काश भादि उपमर्ग .. मुखमण्डल, मामयिक प्रग्नाप, पाफाशय पोर यक्तस्में होते हैं। येदना, वियमिपा, कोठ काठिन्य, स्वस्प प्रस्राय, अपरि ४। पाक म्यलो में उत्तेजना -असम यमन, वियमिपा कार जिना. येगवती नाड़ी, राक और उण चर्म, नाना. | और हिचकी होती है। विध यान्त्रिक प्रदाह पौर रकमश्चय इत्यादि हो प्रधान ५। यतत्में रजाधिश्य या पागड़,.. . है। यह पीड़ा गुरुतर होने पर इमका विगम काल । मोहा विद्यादि। रपट नहीं ममझा ना मकता, यासामान्य यिराम हो कर कण मूल प्रदाह-मम पारोटिड पर्याय का थोड़ी टेर तक स्यायो रहता है। यह ग्वा प्रतिगय मस के प्रदाइके कारण पूयोत्पत्ति होती है। प्रयन्त होने पर धर्म उपय, जिला सुपकनो पोर प्रपरि ___ यक्षत. शीहा पोर पाकामय, रमाधिक्य के कारण कत, मन दुर्गन्धयुत, यानका झाम, नाड़ी शोण, दांतों- कभी कभी एक प्रकारका उत्काग उपस्थित होता है। में मन, निद्रिमायस्याम खप्रदगं न, तन्द्रा, मान वैनवस्य | . ८ (Kidney में रमाधिक्य के कारण पास पौर पम्सम पचैतन्य का नक्षय उपस्थित होता है। वुमिनियरिया होता है। सपसर्ग भार आदगिक रोग-म ज्वरमें नाना स्त्रियोंको जरायु पोर जननेन्द्रियमें पर्यायक्रममे । प्रकारकै उपसर्ग पोर पानुपनिट रोग मक्षित होते हैं। प्रदाह उपस्यित.होता है। उनमे जो प्रधान है. उनका वर्णन किया जाता ई- | 1 रन की प्रविष्टकता के कारण कभी कभी यात. मस्तिष्कका उपमर्ग । यह दो माह में होता है- रोग, माम्पेगोमें यातायय और एक प्रकारको सायपीय (क) राhिa ( Congestion of blool ) घेदना होती है। सलमचालनको पस्यधिक उत्तेजना के कारण मस्ति- १२ पाकामय भोर यात्म राधियी कारण उनके काभ्यारमें रत मधित होता है। मम प्रयन्त प्रलाप सपर वेदना होती है और गासह शिया ( Gastrali होना पोर रोगो असे परमे वकता रहता है। रम | gia) शाम पादिक मत प्रकट हो कर मधमे बहुत पवस्या गिरोडा, गनिमयन, माचित कचोनिका. | पून निकलना पोर दम्त होते . . ६ माहानवहाद।