पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७४

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· जयविलास. जयशलमेर (जैसलमेर) जयविलास-सानार्णव नामक जैन अन्य के टीकाकार। "गज" रखा गया । गजके यौवनमीमा पर पदार्पण जयगलमेर ( जैसलमेर )-१राजपूतानेका पथिम राजा करने पर, पूर्व देशाधिपति युद्धभानु अपनी कन्याके साथ यह अचा२६४ ए २८ २३ उ० और देशा० ६८ । उनका विवाह सम्बन्ध स्थिर करने के लिए मरुस्थलोके ३० तथा ७२ ४२५ के मध्य अवस्थित है। इमका राजाके पास नारियल भेजा। इमो समय मबाट पाया क्षेत्रफल १२ वर्ग मील है। जयशलमी उत्तरमै ! कि, मुसलमानों ने पुनः ममदतट पाम किया है। बहावलपुर, पश्चिममें सिन्धु, दक्षिण तथा पुर्व में जोधपुर रामा ऋजु मनासहित मुमलमानोंके विरुद्ध और उत्तरपूर्व में बोकानेर राजा पड़ता है। यह लड़ने के लिए रवाने हुए। इस युद्ध में आहत होने के भारतीय विशाल मरुभूमिका एक भाग है। जलवायु । कारण उनको मृत्यु हो गई। गजने युद्धभानुको कन्या शुष्क और खास्थ्यकर है। परन्त ग्रीष्म ऋतुमें उत्ताप हसवतोक साथ विवाह कर लिया । इन्होंने खुरामानके अधिक होता है। पानी ज्यादा नहीं बरमता। राजाको दो बार परास्त किया। इस पर यवनराज जयगतमरमें सर्वत्र हो यदुष्टि गजणू तोंका घाम गेमके राजासे सहायता ले कर पुनः अग्रसर हुए । दूतने है। ये लोग अपनेको पमिद्ध यदुवंशोय बतलाते हैं। पा कर वाद सुनाया- यहां अधिपति भी अपने को थोक के वंशधर कहते हैं 'रूमिपत खुरासानपत हयगय पोखरा पाय । उनके पूर्व मुरुष पनाब और अफगानिस्तानमें प्रचल चिन्ता तेरा चित लेगी सुन सदुपत राय ॥". प्रताप राजा करते थे। महात्मा टड साहबने राजपूत राजा गजपतिने इससे कुछ दिन पहले अपने नामसे भाटके मुहमे मुन कर इस प्रकार लिखा है- गजनो दुर्ग बनवाया था। अब यवनों के प्रागमनका यशवम ममय योक्काए के पोत्र वजने मधुरामे ममाचार सुन कर उन्हनि धौलपुर जा कर स्कन्धावार २. को चल कर मार्ग में यदुवंशवम और पिताको स्थापित किया। दोनों राजामौका मामना हुआ । रावि. म.त्युका सवाद सुना। इम दुमकादकै सुनते हो को खुरामानके राजाको प्रजोर्णरोग हो गया और शोक न मह सकने के कारण उनकी मृत्यु हो गई। आखिर उनकी मृत्यु हो गई। सिकन्दरमाइने सेनामहित इनके पुत्र नव मथ रामें पा कर राजा हुए । वजके द्वितीय स्वयं युद्धने व पदार्पण किया। दोनों में घमसान युद्ध पोर हारका चले गये। इनके दो पुत्र थे. जाड़े जा हुया। इस युद्धमें यादवों को हो जय नक्ष्मो पास हुई। पौर युद्धभानु । राजा नबने विरक्षा हो मरु यलोम | ३००८ यौधिष्ठिराग्दके वैशाखमासमें रविवार के दिन जा कर राजा स्थापन किया। उनके पुत्र मरुस्थलीक राजा यदुपति गजनोके सिहामन पर अधिष्ठित हुए। उन्होंने पृथ्वीवाहुको योहणका राजछत्र मिला था। उनके पुत्र काश्मोरके राजाको युद्ध में परास्त कर उनको कन्याका बाहुबलका मालवराज विजयसिंहको कन्याके साथ | पाम्पिग्रहण किया। उनके गम मे गजके गालिवाहन विवाद हुआ था । राजा बाहुवलके पुत्र का नाम था नामक पत्र उत्पन्न हाशालिवाहनकी अवस्था जब सुबाहु । इन पर एकबार म्लेच्छराजाने अाक्रमण किया। मारह वर्ष को हुई, तब खुरामानसे पा कर मुसलमानों में था । अजमेर के राजा मुशुन्दको कन्या साथ सुबाहुका पुनः यादवराज्य पर आक्रमण किया। इस समय भावो विवाह हुआ था। इन्हीं राजपुत्रीने विषप्रयोग कर फल जानने के लिए गजने तोन दिन तक कुलदेवोके अपने स्वामी मुवाहुको मार डाला था। उनके प्रत्र ऋजुने मन्दिर में प्रवस्थान किया। चौथे दिन कुलदेवीने दान १२ वर्षको अवस्था में ही राजत्वका ग्रहण किया। दिये और कहा- 'इस युद्धमें गजनो तुम्हारे हाथसे जाता मालवराज वीरसिहको कन्या सौभाग्यसुन्दरोके साथ रहंगा, परन्त भविष्य में तुम्हारे हो वगधर म्लेच्छधर्म इनका विवाह हुआ था। गर्भावस्था में मौभाग्यसुन्दरीने | यहा कर इस स्थानमें . आधिपत्य करेंगे। तम प्राते समें शतगज देखा था, इसलिए उनके पुत्र का नाम पुत्र शालिवाहनको शीघ्र हो पूर्व के हिन्दूराज्यमें भेज

  • राह साइबने से इनको इणका पुत्र लिखा है। ' दो। तदनुसार राजाने शालिवाहनको भेज दिया। वे

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