पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७६३

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एशोमारट-गेत्य, वन्य, पिपामा, स्कनमें प्रत्यन्त ! वासरोगयुमा ज्यर। येदमा, गत्युभय। एकोनाइद-एकज्यर. इतकम्प, वेदना, मानमिव पानि का-प्रत्यगोमि टट (Sorence), गरोर/ चिन्ता। . . . . . . पर काले दाग, ग्रीवाको पेगोमें अत्यन्त दुनता। पार्णिका प्रत्यहमें पत्यका घेदना, हमरेमे मार लेडोना-प्रत्यन्त मस्तक वेदना, प्रलाप, भयर पानेका भय, गरीरका पोदित परम'. स्फोत पार पदायें दर्गन. कपोनिझा प्रमास्ति, दृष्टिभ्रम। कठिन। चायना मनफर-अयमादके कारण चा निमो.- पाम निक-दाइ, मोप्रयम्बया, धर्म, गाय, पिगमा । मान, प्रत्यार पवमाद, मगदण्डमें वेटना। - वेले डोना-पस्थिवेदना, मभिस्यागमें झड़पाम पोर। मिमिमिफिठगा-मम्तकम प्रत्यन्त वेदना, तान कट। दर्द, तन्द्रा. अस्थिरता, चमकित भाय। . फर गिग जा रहा है ऐमा मालम पड़ना. जिला स्फोत. वाइपोनिया-परुचि, मुख शुक, विपासा, फोट। सणिक मोचन। कठिन और पाश। ____कोटनाम-- प्रयन गिर:पीड़ा, मुख रावणं, प्रलाप.. कान्लोफ्रारनाम-कदी पोर पला,निग्रयिम यासिक शरीर पर मर्य व लाल दाग, उदयको द्रुत गति, प्रायोका वेदना, पत्यन्त ज्यर, वायविक चाचम्य । घोड़ा बुनना। कामोमिन्ता-यन्त्रणा कारण पत्या प्रतमित पोर गेलमिमियम-मस्तकको पोछको योर वेटना, मत्तता क्रोधभाय, गगऽस्थलझे एफ सरफ लान्न चोर दुमरे सरफ मान्न म होना, प्रसिपुटका मोचन, पगिमिका पूर्ण पाण्ड, पपिरत यावणा, रात्रिको उपमर्ग का प्रभाव हास, नाड़ो दुर्यन, खामकर, वियमिपा, वमन। कैलिडोनियम-गरोर फोत पोर प्रस्तरयर कहिन. लाइकोपोडियम-वेहोशो, प्रलाप. चैतन्यनागक कोठ मेषपूरीषवत् । गिरपोड़ा, नामारन्ध को योजनकी भांति गति, नीचे कलविकम् -अग्नि के पाम भो शोत भाव, मूब पम्प गान मा चित, प्रायन अथवा सर्व शरीरमें ग्वींचन। औरणयणं, धर्म दुर्गन्ध। . गोपियम-चैतन्य यिलोप, ऋष्टु मिन्ताम, मस्तकमें | ____ मारकिरियम-अतिरिक्त धर्म, मम, उदगमय, रक्ताधिश, करोटिका पयामागमे अन्यन्त भारमोध, माड़ो पोहित मग पाशवर्ण । . . . पति दस या प्रति धीर, मीटना पोटना, पनाममोच, । सिगेलिया-पत् मचालन के कारण मामRAT. धर्म कालमें पवस्था मन्दतर। . उत्कम्प, प्रत्यम्त चिन्ता। इम ज्यरकी प्रथमावस्था में वोट्रेक कराने पर माभ ___ मिल्फर तोत्र यन्त्रणा, तान देश प्रायस उपत हो सकता है। रोगीको जन्नमें सुरासार मिन्ता कर (जय पत्यन्त प्रसाद । । तफ रोगीको पमोना न पावे तब तक) पाध घण्टा . पानवायुमा व्यक्तिले गरोर पर फामेल व्यपहार पसर थोड़ा थोड़ा मेयन फराना चाहिये। कोई कोई करना चाहिये । ऐमा काम न करने देना चाहिये जिसमे उगा कालगे धारामान पोर कम्पनमे गरीरको टक कर पधिक परियम पोर महसा घमंगोध हो। धर्मोद्रक कगनेकी व्यवस्था देते हैं। llypodermic in. ___ज्यरकालमै रोगीको नरम गय्या पीर कपल पर jections of Pilocramine (चया प्रेम) प्रथया ] . मुन्नामा चाहिये, गई में शरीर टक रपनमे लाभ होता FI Extra Tatvarandi (१ मे ३० वट तक) का है। रोगी के घरमें जिममे पछी तरह वायु ममालिन को प्रयोग करने पर भी धर्मोद्रक हो सकता है। मके, ऐमी व्यवस्था करनी चाहिये। । । . . पाप-प्रथमायग्राम मधु और वनमारक ट्रय व्यय : -पमानका तमार, माघ, उशम अप फन . म्य यो घोरे भोरे इम, दूध, डिन्य यादिको प्रादि नापाक ट्रचा विशद जल, लेमनेड पादि पौनेको । व्यवस्था करें। . . . . . . . । देना चाहिये। मादभद्रथ निपिए ।::