पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८०६

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झाँसीको रानो-माँसो नयावाद गमोके चले जानेका संवाद पाते ही अंग्रेजोंने उन्हें । दुर्ग में रह कर युद्द न किया जायगा, तब तक शव को पकड़ लाने के लिए लेफ्टनण्ट बेकारको मेना महित भेज | क्षमताका झास नहीं हो सकता ! मनके परामर्शानुसार दिया। वकर २१ मील तक गये, पर उनका प्रभोट मिह रानो ३० मईको दन बल सहित ग्वालियर दुर्ग पाक- न हुआ। रानीका तेज घोड़ा देखते देखते पाखोंके | मण करने के लिए रवाना हुई। रानोने अपने भन्नु त ओझल हो गया। अंग्रेज सेनापति पाहत हो कर लौट कौशनमे ग्वालिया दुर्ग पर अधिकार कर लिया। आये। . . इसके बाद १८वो जनको फूलबागके रामग्रामाटके सनीके चले जाने पर मोमोमें फिर "विजन का निकटवर्ती पावत्य भूखण्डमें अग्रेजमेनापति मिथके साथ शुरू हो गया । कानपुर और दिल्लीकी तरह झांसोरान्च ) रायमाहबका युष हुपा । रानीने या युद्ध भी पुरुष भी ग्रेजी सेना के लिए अत्यन्त उत्तेजनाका कारण हो । भेपमें किया था। किन्तु विजयलमोने उनका साथ न गया । मार्टिन साहबका कहना है, कि अंग्रेजो मेनाने दिया। अन्तको रानोने कुछ विश्वस्त परिचारिकामों और झाँसीके पाँच हजार अधिवासियोको हत्या को यो । श्रनुचरों के माथ रणस्थलसे भाग गई। किन्तु अनुपरण. ५वी अपीलको झाँमीके टुर्ग पर अंग्रेजो सेनाका अधि- पगयण अंग्रेज मैनिकोंने उनका पोछा नहीं छोड़ा। कार हो गया। माग में दोनों में सम्म ख युह हुप्रा और झॉमोकी गनी . रानी भाग कर कालपी पहुँची। वहाँ रावमाइब ! लक्ष्मीबाईको भव-लोला ममाम हुई। और तांतिया टोपी ठहरे हुए थे। रानी के साथ मेना न इम योर रमणो विषयमें मालिसन माहब लिखते थी। इसलिए उन्होंने रावसाहधमे सहायता मांगी। राव है-ग्रेजों को दृष्टिमें रानोका दोष केमा भो क्यों न साहबने मेनाका परिदर्शन कर मैनिकों को युद्धके लिए हो, किन्तु उनके देश के लोग चिरकाल तक उनका म्मरण उत्साहित किया। तातिया टोपी यह कह कर कि जब इमलिए करेंगे कि अंग्रेजोक पविचारने उनको विट्रोह. सारी सेना एक जगह इकट्ठो हो जायगो ता वै राव के लिए प्रवर्तित किया था। उन्होंने अपने देयके लिए मायके साथ सम्मिलित होंगे, संग्रहीत सेनाको ले कर प्राणधारण किया था और देश के लिए प्राण विसर्जन कालपोसे ४ मील दूर कूँच नामक स्थानको चल दिये। दिये थे। हो सकता है कि गमोने प्रतिहिसाक पावेग. वहाँ सरहिउरोजके माय उनका युद्ध हुआ, जिममें | में आ कर पस्तधारण किया हो, किन्तु यह नियित हे तोतियाकी ही पराजय हुई। शनो युह स्थन्नमें उपस्थित कि उन्होंने जिम शतिसे काम लिया था. उनके थीं। किन्तु तातियाने मैनिक-परिचालनके विषय में उनसे | वा चरित्रममालोचक भी उस शक्तिका सम्मान नहीं कर परामर्थ नहीं लिया। कुछ भी हो, पराजित होने पर भी तातिया टोपोकी सेना ऐसे कौगल और शृष्ठलाके माय झांमी नयावाद-युक्तप्रदेशके अन्तर्गत झांसी जिलेका पोछे हटी थी कि जिसे देख कर मंग्रेजों को चकित | सदर। यह प्रक्षा २५ २७ ३० और देशा० ७६३५ होना पड़ा था। | पृ. पर झांसी जिलेके पथिम प्रान्तमें माचोन झांसी नगर अंनन्तर गलावलो नामक स्थानमें युद्ध हुमा । यद्यपि के प्राचीरके समोप अवस्थित है। माचोन झामो नगर पौर रानीने इस युसमें मिर्फ ढाई सो मात्र सेनाका परिचालन झाँसो दुर्ग अभी ग्वालियर रान्यक अन्तर्गत है। दुर्ग के किया था, तथापि इसमें सन्देह नहीं कि उसमें उन्होंने / नोचे गबमे गटको पदालत, संन्यनियाम पौर अन्याय भात रणनेपुण्य का परिचय दिया था। परन्तु अन्तको रानी- हादि विद्यमान है। महाराष्ट्र सेनापसिन इस दुर्गका की पराजय हुई। पराजय धोने पर भी रानीकी तेजस्विता, निर्माण किया था। दुर्ग के भीतरका राजभवन और अध्यवसाय वा धनयनी प्रतिहिंसा तनिक भो न घटी। प्रकाण्ड प्रस्तरनिर्मित गोलाकार मासादगिवर अत्यन्त उन्होंने राय पीर टोपोको सलाह दो कि जब तक किसी! विस्मयकर है। कहा जाता है, कि पहले इसमें 18. Indian Empite, Vol. II.P.485 . ...... सोपें रखी जाती थी। १६६१ म अयोध्याके नवाबने एम