पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१२५

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१२२ मुर्शिदाबाद स्थापित की। हाजी अहमद और भलीवदी खां इन दोनों। मन्त्री आलमचांदने उसे बहुत समझाया वुझाया, लेकिन भाइयों तथा राय आलमचांद और जगत् सेठ फतह- उसने चिढ़ कर वृद्ध मन्त्रीका बड़ा अपमान किया। चांद इन चारोले यह मन्त्रिसभा संगठित हुई थी। आलमचांदने नितान्त असन्तुष्ट और मर्माहत हो कर उसके इन चारोंमें राजकर सम्बन्धी विचारमें आलमचांद ही | शत्रुओंका पक्ष लिया । जगत्सेट भी नवावके आचरणसे श्रेष्ठ था, इसीलिये सुजा बाँके अनुरोधसे वादशाहने । दुःहित हो उसका शत्न हो गया। उसे 'रायरायां'-को उपाधि दी। इसके पहले बङ्गाल- सुजाने सरफराजको अपने मित्र हाजी अहमद पर के किसो कर्मचारीको यह उपाधि न मिली थी। नवाव। श्रद्धा रखने कहा था, लेकिन सरफराजने इसकी परवाह घरानोंने जब दीवानी छोड़ दी तो रायरायां ही दीवानी नको । अतएव प्रधान प्रधान राजकर्मचारी उसे राजच्युत और राजकीय विभागमें श्रेष्ठ हो उठे । आलमचांद ही करनेके लिये षड्यन्त्र रचने लगे। इसी समय अलीपदी पहले पहल नायव दीवानसे प्रधान दीवान हुआ था। } खां राज्यलोमसे सरफराजके विरुद्ध युद्ध करने चला। मुर्शिद कुली खाँके समयमें जो जमीदार लोग कैद । हाजी अहमदने उसका साथ दिया। गिरियाके निकट हुए थे, सुजाने उनमें जो निरपराध थे उन्हें मुक्त कर दोनों फौजोंमें मुठभेड़ हुई। १७४० ई०में भलीवर्दी दिया। इससे जमींदार लोग सुजासे अत्यन्त सन्तुष्ट थे। मुर्शिदाबादकी मसनद र आ बैठा । सरफराज खां देखा। मुर्शिदके समयमें खालसा और जागीरके जिकर गद्दी पर बैठ नवाव अलोवदी खाँ मुर्शिद कुलोके तथा सभी तरहके आववाद ले कर करीब डेढ़ करोड़ समयसे सञ्चित अगाध धनका स्वामी हो गया । गुलाम चार्षिक आय थी। सुजाने राजकर घटा दिया, तो भो हुसेनके मतसे इस समय नवावने बादशाह महम्मदके आववावकी वृद्धिके कारण उसके समयमें वार्षिक आय पास करीव १ करोड़ रुपये उपहारमें भेजे थे। वादशाहगे करीब दो करोड़ रु० हो गई । भाववावको वृद्धि होने इसे सात हजारो मनसबदार बनाया और "मुजा-उल पर भो प्रजा सुजासे असन्तुष्ट न हुई। मुल्क हेसाम उद्दौला" की उपाधिसे सम्मानित किया। सुजाने पहले बंगाल और उड़ीसाकी सूवेदारी पाई ) नवाव अलीवदी खाँने अपने पहलेके दीवान जानको थी। १७३२ ई० में फकर-उद्दौला विहारका शासक था। रामको राजाको पदवी दे प्रधान दीवान और नायव लेकिन उसके कुव्यवहारसे दिल्ली के राज कर्मचारो अप्रसन्न दोदान चिन्मयको 'रायरायाँ' की पदवी दे खालसा रहते थे। पश्चात् खाँ दौरानकी सलाहसे सुजा उद्दीनने विभागका दीवान बनाया। इसका बहनोई क्रमश: विहारका भी शासन भार अपने ऊपर लिया। इस सुजा, इसकी कृपा पा कर मीरवक्ती या प्रधान सेनापति हुआ। खांको कपासे अलोबदीने विहारको नायव नाजिमी और मीरजाफर देखो। ."महवत् जंग बहादुरकी उपाधि" वादशादसे पाई । सच ___ अलीवदीने क्रमशः अपने पैर जमा कर प.ले सुना- मुच सुजाके स्नेहके कारण ही हाजी अहमदके वंशधरों- उहोनके दामाद और कटकके शासक मुर्शिदकुलो खां को का भाग्योदय हुआ था। समूलनष्ट किया । वाद : मरहठोंके विरुद्ध लड़ने चला। १७३६ ई०में अपने लड़के सरफराज खाँको अपना अनेक युद्धक्षेत्रों में सेनाके साथ रह कर इसने अपनो धीरता उत्तराधिकारी निश्चित कर सुजा इस लोकसे चल का परिचय दिया, फिर भी प्रजाकी भलाई के लिये मराठा सेनापति वाजीरावको चौथ देनेको सहमत हुआ। इसके वसा। सुजाउद्दीन देखो। ___ सुजाउद्दीनके जीते जी ही सरफराजके अनेक शन्न राज्यकालमें मराठोंने जो उपद्रव मचाया उसीको इतिहासमें हो गये थे। केवल सुजाको उदारता और सद्ध्यवहारसे | "वर्गीका हंगामा" कहते है । वर्गी और अलीवर्दी खां देखो। मुग्ध हो कोई भी उसके पुत्रको बुराई न करता था। सुजाको १७५६ ई०में नवाव शोथ और उदररोगसे पीड़ित हो मृत्युके बाद सरफराजकी संकीर्णता देख शख लोग उठ अन्तिम वार शय्या पर पड़ा। इस समय इसका प्यारा खड़े हुए। उसकी विलासिता देख उसके पिताके नातो सिराजउद्दौला इसकी राज्यकी देखभाल करता