पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मुर्शिदाबाद-मुलनी १६६६ ई०में उड़िसाके वागी अफगानोंने ५ हजार | को सूवेदारी मसनद पर बैठाया था। यहीं रह दर मुगल-सेनाको हरा इस नगरको लूटा। कहा जाता है, कि वङ्गालके दीवान लार्ड क्लाइवने कम्पनीको ओरसे पहले युवराज आजिम उस्तानने गुप्तरूपसे मुर्शिदकुलोको मारना पहल कर वसूल किया था। यहां लार्ड वार्नहेप्टिग्स और चाहा । मुर्शिद ढाकासे यहां भाग आया। उसके यनसे सर जान्सोर १७७१-७३ ई०में रह गये हैं। . मुक्सुवाद महलोंसे सुशोभित मुर्शिदाबाद हो गया। इससे मुलकी ( अ० वि०) १ मुल्को देखो। २ देशी। यह अनुमान होता है, कि उस समय मग और पोत गोजमुलकी-मान्द्राज प्रदेशके दक्षिण कणाड़ा जिलान्तत डकैतोंका उपद्रव कम हो गया था जिससे राजसीमाको एक नगर । यह अक्षा० १३५ १५ उ० तथा देशा० रक्षा करना उतना जरूरी नहीं समझा जाता था। मुर्शिद- ७४°४६ ३५ पू०के मध्य अबस्थित है। मङ्गलरसे यह ने सोचा कि, यहांसे वङ्गाल, विहार और उडिसाका । ६॥ कोस उत्तर समुद्रकी खाड़ी पर बसा हुआ है। शासन करने में सुविधा होगी और हुगली किनारके शहर । खांडीके पास ही समुद्रगर्भसे कुछ पर्वतङ्ग देखे जाते हैं जो मुलकी चा 'प्रिमिरा रक' नामसे प्रसिद्ध है। तथा गावोंके साथ खूब व्यापार चलेगा। सम्भवतः यही । ' विचार कर उसने यहां राजधानी वसाई थी। मुलगुन्द-धम्बई प्रदेशके धारवार जिलान्तर्गत एक नगर। इस शहरके नवाबी कीर्त्तियों में वर्तमान निजामत- यह अक्षा० १५ १७ उ० तथा देशा० ७५३६.पू०के प्रासाद, निजामत किला, आइना-महल, अन्दर महल, । मध्य अवस्थित है। यह स्थान एक समय तासगांव निजामत कालेज और इमामवाड़ा आदि विशेष कर | सामन्तराजके अधीन था । १८४५ ई० में यहांक सर- दार वंशके कोई उत्तराधिकारी न रहनेक कारण यह उल्लेखयोग्य है। | स्थान वृटिशसाम्राज्यमें मिला लिया गया। १८३७ ईमें जेनरल मकल्युडको देखरेखमें पुराने • प्रासादोंको मरम्मत होने लगी जिसमें १० लाख ६७ हजार एजेन्सीके अन्तर्गत एक सामन्तराज्य । बड़ौदापति - मुलजिनापुर-गुतरात प्रदेशके महिकान्य पोलिटिकल १० खर्च हुए । नयाव सिराजउद्दौलाकी वनाई इमाम- गायकवाड को ये कर देते हैं। वाड़ा मसजिद मुहरममें आतशवाजोके समय जल गई मुलजिम (अ० वि०) अभियुक्त, जिस पर कोई अभियोग हो। • जिसको मेरम्मतमें १८४७ ई०को ६ लाख रु. खर्च हुए। मुलतवी (फा०वि०) जो कुछ समयके लिये रोक दिया यह हुगलीके प्रसिद्ध इमामवाडे से वहुत बड़ो है। नवाब गया हो, जिसका समय टाल दिया गया हो। . सिराज इसमें जितना धनरत्न आदि छोड़ गया था उस- मुलतान-मूलतान देखो। में अधिकांश मोरकासिमने बेच दिया । मुहर्रमके समयमे , मुलतानो ( हिं० वि०) १ मुलतानका, मुलतान संबंधी। अनेक स्थानोंसे लोग यहां जमा होने है। इसके अलावा (स्त्री०) २ एक रागिणी। इसमें गांधार और धैवतं ख्वाजा खिजिरके उत्सव समयमै वडा समारोह होता। कोमल, शुद्ध निषाद और तीन मध्यम लगता है। इनके है। इसमें पौष संक्रान्तिकी हिन्दू-प्रथाके जैसे नदोजलमें। अतिरिक्त तीनों स्वर शुद्ध होते हैं। शास्त्रमें इसे श्रीरोग- दीप वहाये जाते हैं। को रागिणो कहा है। हनुमत्के मतसे यह दीपक राग- इसके बाद मुवारक-मंजिलको मणिवेगम मसजिद, को रागिणी है। इसके गानेका समय २१ से मनसूरगंजका मोती-झोलप्रासाद, भागोरथी किनारे तक है। ३ एक प्रकारको बहुत कोमल और चिकनी 'खुशवागका समाधिमञ्च देखने योग्य है । मोती झील मिट्टी। यह खास कर मुलतानसे आती है। इसका रंग पर पहले नयाजिस मह मदने अपने रहनेके मकान बन- वादामो होता है और यह प्रायः सिर मलने में सावुनको वाये थे। पीछे गौड, नगरकी पठान कीर्शिके ध्वंसाव तरह काममें भाती है। इससे सोनार लोग सीना साफ शेषसे सिरोजउद्दौलाने मोती झील, प्रासाद और मनसूर करते। छीपी लोग अनेक प्रकारके रंगों में अस्तर देने गञ्जनगर स्थापित किये। इस प्रासादसे ही वह पलासीके और साधु आदि इससे कपड़ा रंगते हैं।.. युद्धक्षेत्र में उतरा था। यहां ही कर्नल क्लाइवने मीरजाफर- । मुलना (अ० मु०) मौलावी, मुल्ला ।. _Vol. XVIII. 32