पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१५८

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मुसलपान-मुसलमानधर्म आदि विविध साम्प्रदायिक अन्य पुष्ट नहीं हो सके। अथर्ववेदका उपनिषदांश कह कर प्रचारित किया गया जिस समयकं ज्ञानचर्चा और साहित्योन्नति के लिये था । अकवर और अन्यान्य विद्योत्साही नवावों द्वारा राजप्रसाद लाभ किया था, उस समय अरव जातिका विविध भाषाओं से भी मुसलमान साहित्यके कलेवरकी जातीय जीवन निस्तेज होता आ रहा था। पुष्टि हुई थी। अन्यान्य विज्ञानोंके साथ साध सङ्गीत- भरवमें कुरानकी रचना हो जाने ६ बाद वेदान्त, विद्याने भी मुसलमान राजतन्त्रमें प्रवेश किया था। दर्शन और विज्ञान आदि विषयोंकी उत्कर्पताज्ञापक यदि अरव जातिके अभ्युत्थानके अव्यवहितके वाद अन्य किसी प्रथ-संग्रहका उल्लेख नहीं मिलता । महम्मद हो मुसलमान साम्राज्यका निधन साधन न होता, तो की अभिव्यक्ति जो जिस तरह अपमराओंकी लालित्य-, अरवी भाषा उन्नति और अन्धों का विकास असम्भव मयो रूपमाधुर्यका विकाश है, पीछेके भोगलालसाप्रिय ; था या नहीं कौन कह सकता है ? महम्मदीय धर्मजगत्- महम्मदी उसी तरह सुन्दरी सुन्दरी परियों और युवतियों से अरवी प्रभाव दूर होने पर वहां के अधिनायक स्वाधीन की अवतारण कर अरव और फारस देशकी कहानियों में वन जगह जगह राजपाट कायम कर लिया। उस और इसका विभाग विस्तार कर गये हैं। समयसे विविध देशी ग्रन्थ मुसलमानी साहित्यको ऐसा कहा जा नहीं सकता कि ज्योतिष और गणित- | अलंकृत कर रहे हैं। में मुसलमान विलकुल उन्नति न कर सके; वे मुसलमानधर्म-महम्मदका चलाया इस्लामधर्म। इस- प्रह, नक्षत्र, राशिचक्रके निर्णय आदि विषयों में सम्यक् को एकेश्वरवाद कहा जा सकता है। महम्मदने अरव- रूपसे पारदर्शी हुए थे। खलीफा अलमामूनके राजत्व | राज्यमें जिस पवित्र मुस्लिमधर्म मतका प्रचार किया, कालमें भावू अब्दुल्ला महम्मद विन मुसाने अरवी भापा | और महम्मदोय-समाजमें जो धर्म:मत नित्य और सार- में अलजवरा (Algebra) नामक वीजगणित हिन्दूशास्त्र- सत्य खोकृत हुआ है, कुरानमें उसी मतका वर्णन आया की रचना को थी। ऐसा नहीं कहा जा सकता है,। है। महम्मदने स्वयं इस ग्रन्धकी रचना की थी। वे ईश्वर- कि इस प्रथको रचना करते समय उन्होंने हिंदुओं के । प्रेरित दूतसे जो जो वात रोज रोज सुनते थे, उन्होंने उन्हीं प्राचीन वीजगणित, लीलावती, आदि ग्रंथों से सहायता वातों को इस ग्रन्थमें लिखा था । ईश्वर दूत-प्रतिपादित नहीं ली है। मुविज्ञ और सुप्रसिद्ध पाश्चात्य पण्डित कुरानके सिवा सोन्ना या पैगम्बर द्वारा कथित उपाख्या- कुल क, डाभो फाण्टस, कासिरी आदि एक स्वरसे । नांश, इस्लामधर्मतत्त्वज्ञोंके वाक्यमे एक हों और कियास प्रतिपादन कर गये है। शान विस्तार द्वारा धर्मपालन ही धर्माङ्ग है । सिवा इस- फारसके शाहराजे कवित्वके विशेष पक्षपाती । के इस धर्मके 'इमाम्' और 'दीन' ये दो प्रधान हैं। मत- थे। उनके राजत्वकालमें महाकवि-शिरोमणिने जन्म | प्रकाशकके प्रति विश्वास त्यापन ही "ईमान" निष्ठा और ले कर फारसी भाषाको अलंकृत किया था । फारस श्रद्धाके साथ उस धर्मके निरूपित आचारादि प्रतिपालनका राज्यमें मुसलमान-दार्शनिकों का विलकुल अभाव न नाम "दीन" है। देवाराधना और शारीरिक पवित्रता, था। फिरदौसी जैसे कविने भो भूखों प्राण त्याग | २ मिझादान, ३ उत्सवादि उपवास और मकायात्रा-ये किया था। चार आचाराङ्ग हैं और १ ईश्वरवाक्य, २ स्वर्गीय दुतोंको भारत मुगल सम्राट अकवरके अमल में और उन्हीं | अभिव्यक्ति, ३ कुरान, ४ पैगम्बरोंके उपदेशोंमें कयामतके की कृपासे अबुल फजल, फैजी आदि बहुतेरे मुसलमान | दिन जीवोंके पुनरुत्थान आदि विषयमें अभिज्ञान ही ज्ञान पण्डितो ने हिंदूशास्त्र और महाभारत आदिका फारसी कर्माङ्ग है। भाषा अनुवाद किया था। सुना जाता है, कि इसी इस धर्मका मर्म यह है, कि परमेश्वर एकमात्र अद्वि- सुचतुर वादशाहकी आज्ञासे उस समयके 'अल्लोपनिषत्', तीय, नित्य, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, अन्तर्यामी और परम नामसे कुरानकी अरवी भाषा मिली हुई संस्कृत ग्रन्य कारुणिक है; केवल उपासनादि श्रेयसाधन और सर्वतो-