पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१८८

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मुहर्रम ९८५ उसे कपड़े से लपेट कर दोनों ओर सामला वांधा जाता काठका वुराक बना कर उसे अच्छी तरह सजाते और है। वह सामला हवामें उड़ता रहता है। उसके माथे। रास्ते में निकालते हैं। . ‘पर हुसेनके मुण्डस्वरूप एक नीव रखा जाता है। कोई हिंदुओंके गाजनमें जिस प्रकार संन्यासी वा स्वाङ्ग वाह कोई वल्लमके बदलेमें वांसके डंडेको काममें लाता है।। निकलते हैं, उसी प्रकार उस दशमी रातको मुहर्रमके उस डंडेको ले कर कुछ आदमी वाजा बजाते हुए गृहस्थ | बहुतसे फकीर तरह तरहका साज पहन कर बाहर होते के घर घर जा भीख मांगते हैं । गृहस्थ इच्छानुसार भीख हैं। इन सब फकीरोंका भिन्न भिन्न साजसज्जाक अनुसार देता है। भीख पाने पर मुजावीर (आशुरखानेका परि- भिन्न भिन्न नाम है । जैसे, १ महालीवाला, २ वनावा, ३ चारक ) गृहस्थको कुछ भस्म दे आता है। लयला, ४ मजनू, ५ भारङ्ग ६ मलङ्ग,७ आङ्गाठोशा, ८ उसी दिन शामको नलसाहब और जुलफिकर वाहर ' सिद्धि वा काफि फकीर, ६ बगोला, १० कायाश, ११ होता है। नलसाहव अवस्थानुसार सोने, चांदी और ) हातकठोराक्षाला, १२ नक्सावंदी, १३ हाजी अहमक और लोहे आदि धातुओंका चना होता है । इसे वे लोग हुसेन । हाजी वेकुफ, १४ बूढाबूढो, १५ जल्लालिया और खाकिया, के घोड़े का खूर समझ कर पूजते हैं। नलसाहबको १६ वाघशा, १७ मटकीशाह, १८ चटनीशाह, १९ हाकिम, बड़ी तेजोसे वाहर किया जाता है। उस समय वृद्ध, २० मुसाफिरशाह, २१ मुगल, २२ वैजखोरा, २३ मुजी- नारी और वालकोंको दूर रहना पड़ता है, नहीं तो करम, २४ अडशा, २५ योगिया, २६ वकाल, २७ नक- जान पर खतरा है। लिशा, ३० कम्बलशा इस प्रकार खांग वाहर निकलते अष्टमीके दिन शामको वरजथी वा कुदरती आलम | हैं। पहले बङ्गाल में भी ये सव स्वाङ्ग निकलते थे, पर और नवमीके दिन अव्वास-इ-आलम तथा हुसेनी आलम | अभी वैसा उत्साह नहीं देखा जाता। निकाला जाता है। ___ इस समय हुसेनके नाम पर पुलाव, खिचड़ी, शिरनी दशमीको रातको (आलम-इ-कासिमको छोड़ कर) आदि चढ़ा कर दीन दुखियोंको बांटो जाती है। सभी सभी आलम वा पताका और तावुत वा ताजिये ले कर समूचा शहर पर्यटन मर भाखिर भाशुरखानेमें लौटते हैं। 'सवगस्त' या रातिपर्यटन-उत्सव शेष करते हैं। इस इसका दूसरा दिन मुहर्रमकी १०वीं तारीख, एका. समय बड़ी धूमधाम होती है, समूचा रास्ता रोशनोले दशो तिथि, शाहदत-का रोज अर्थात् जीवनोत्सर्गका जगमग करता है। तरह तरहके आमोदप्रमोद होते , दिन समझा जाता है। इस दिन सवेरा होनेसे पहले हैं। निम्नश्रेणीके मुसलमान पहर रातको और उच्च | रातकी तरह बड़ी धूमधामसे ताजिये आलम आदिको ले श्रेणीके दो पहर रातको बाहर निकलते हैं। सभी प्रकार कर करवलेको ओर दौड़ते हैं। इस दिन करवलेमें वड़ी की युद्ध-सज्जा, यहां तक कि रण-क्रीड़ा भी दिखलाई | भीड़ लग जाती है। ताजिये आदिको तालायके किनारे जाती है। रख कर रोटी, शिरनी, वूटी, खिचड़ी, पुलाव और मिष्टा- __ करवलेमें जैसा हुसेनका मकबरा है, कोई ठीक उसी नादिके ऊपर हुसेन तथा दुसरे दूसरे धर्मवीरोंके नाम आदर्श पर, कोई मदीनेका नकशा ले कर, कोई मुहम्मद- फतिहा देते और पीछे सवोंको बांटते और पवित्र प्रसाद • के कब्रिस्तानके अनुकरण पर ताजिया बनाता है। उस समझ कर कुछ घर भी लाते हैं। इस प्रसादका सामान्य ताजियेको तरह-तरहके कागजों और झालरोंसे सजाते | अंश भी मिल जाने पर मुसलमान लोग अपनेका धन्य हैं। अवस्थानुसार ताजियेमें तारतम्य देखा जाता है। समझते तथा भक्ति पूर्वक उसे ग्रहण करते हैं। कोई कोई ताजियेके बदलेमें शाहनसीन वा दादमहल फतिहाके वाद ताजियेसे असवाव और आलमको (राजसभा ) बनाता है। भगवान्ने मुहम्मदको स्वर्ग| खोल कर उसमेंसे गोरकी तरह अंश निकाल लानेके लिये देवदूत जवरिलके हाथ जिस वुराक (घोड़े)। जलमें डुवा देते हैं। कोई कोई जलमें छला को भेजा था, बहुतेरे मुसलमान फिर उसीकी तरह कर तोजियेको लौटा लाता है, परन्तु बहुतेरे जल में पंक Vol. XVIII. 47