पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२३

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· मुद्रातचे ( पाश्चात्य) ८. सुप्रसिद्ध नगरादि और कल्पित गन्धर्व-नगरादि-! शौर्यवीर्य देख कर मुग्ध हुए थे। उन्होंने भारतमें आ करे का चित्र । जैसे-नासस (Cnossus) का गोलकधंधा।' देखा था, कि धर्मपरायण भगवद्भक्त हिन्दूके निकट सिंहा- है, साधारण जातीय-उत्सव अथवा धर्मोत्सवकी। सनारूढ़ राजा नररूपमें देवताके समान पूजनीय है। प्रतिकृति, 'ओलिम्पिक गेम' वा साइराफ्युजकी व्यायाम- वे इन्द्रादि अष्ट दिक्पालकं प्रतिनिधि हैं । इसीसे हिन्दू- क्रीड़ा। राज्यमें मुद्राखण्ड पर नरदेवता राजाको मूर्ति अङ्कित मुद्राके ऊपर और नीचे दोनों ओर दो प्रकारके चित्र रहती है। स्वर्णप्रसू भारत-भूमिको अनायासमें मिलने- रहते हैं। इनमें कमरिनकी सुन्दर रौप्यमुद्राके ऊपर वाली राशि राशि स्वर्णमुद्रा पर छत्रदण्डचामरचिह्नित नदोदेवता हिपारिस ( Hepparis) और नीचे हृदकी। राजाको मूर्ति देख कर अलेकसन्दर जब देशको लौटे, अधिष्टाती हसवाहिनी देवी हैं। साइफनकी मुद्राके तव वहां उन्होंने ग्रीक मुद्रा पर अपनी मूर्ति खोदवाई थी। ऊपर चीमिरा (Ghimaera ) और नीचे कबूतरकी। इस प्रकार भारतीय आदर्श यूरोप आदि देशोंमें फैल मृत्ति है। कहीं कहीं ऊपरी भाग पर देवमूर्ति अङ्कित गया। पहले पहल इस प्रकारका मुद्राङ्कण लोगोंको देखी जाती है। जैसे, माथेन्सकी मुद्राके एक पृष्ठ पर रुचिकर नहीं हुआ। पीछे वह प्रथा सर्ववादिसम्मत पलास ( Pallas) और दूसरे पृष्ठ पर उसका वाहन समझी जाने लगी। यहां तक, कि अन्तमें मिस्र और पेचक एक मालिभकी डालीमें सुशोभित है। _____ सिरियाके राजगण देवताकी उपाधि ग्रहण कर मुद्रा माकिदनके अन्तर्गत कालकिदियोंकी मुद्रामें कदम्ब-, । पर अपनी प्रतिमूर्ति म'कित करने लगे थे। अभी भी मूल पर बैठी हुई हाथमें वीणा लिये आपलो वा श्रीकृष्ण मूर्ति शोभती है। मुद्रातलमें राजा और रानीकी मूर्ति अङ्कित होती है। ..' भारतीय सभ्यताका प्रभाव भी अलेकसन्दरके शासन- इटाइथिको मुद्रामें हराक्लिसका मस्तक और उस- के अनादि हैं। इटोलियाको मुद्रामें एक ओर आटलण्टा कालमें समस्त ग्रीकदेशमें फैल गया। इसके पहले भिन्न भिन्न प्रदेशको भिन्न भिन्न मुद्राका आदर्श रहता ( Atlanta ) को मूर्ति और दूसरी ओर कालिदोनीय घराहमूर्ति अथवा उसके चिवुककी हड्डी तथा शूलका । था। अलेकसन्दरने भारतको मुद्दा-प्रणालीका ग्रीकदेश. ' अगला भाग है । नाससको मुद्राको एक पोठ पर गोलक- में प्रचार किया। भारतमें जो राजचक्रवती थे, सम्राटके धंधाका आदर्श है। आसन पर बैठे थे, उनके शासनाधीन सभी प्रदेशों में उनके ' समझतीरवत्ती राजधानियोंकी मुद्रा पर डलफिन वा नामका सिक्का चलता था। पीछे अलेकसन्दरने अपने तिमि नामकी मछली अङ्कित है। देशमें भी इसका अनुकरण किया। इसके बाद प्रादेशिक __ द्वितीय विभागकी मुद्रा में राजा अथवा राजसम्पीय स्वतन्त्रता लुप्त हो गई थी। तव आथेन्स और थिर्ष, छन, चामर वा ध्वजदण्ड अङ्कित हैं। ग्रीसको सभ्यता- साइरामयज और विपशिया आदिमें भी आलेकसन्दरके की प्राथमिक मुद्रा पर देवमूर्तिके अलावा अन्यमूर्ति नामका सिक्का चलने लगा। स्थल विशेषमें मुदाकी एक अङ्कित करना शास्त्रविरुद्ध समझा जाता था। केवल । पीठ पर जातीय देवता और दूसरी पीठ पर राजाकी अलेफसन्दरके समय से ही मनुष्यको प्रतिमूर्ति मुद्रा पर प्रतिमूर्ति अङ्कित हुई थी। अङ्कित होने लगी। आमनको मृत्युके वाद वे देवता इसके बाद ग्रीस रोमके अधीन हुआ तथा रोमको सरीखे समझे जाते थे। इस कारण मुद्रा पर उनकी पोतलको मुद्रा रोमक-साम्राज्यके शासनाधीन प्रदेशोंमें प्रति भो अङ्कित हुई थी। किन्तु अलेकसन्दरकी मृत्यु चलने लगी। यह रोमक मुद्रातत्त्व कुछ जटिल था। के बाद उनको प्रतिमूर्ति मुद्रा पर क्यों अङ्कित होने लगी, घोरपूजाकी प्रधानता दिखाई देने लगी। बड़े बड़े वीर, भारतीय सभ्यताके प्रभावको ही इस आकस्मिक परि- कवि, दार्शनिक, चित्रकर आदि व्यक्तियोंकी प्रतिमूर्ति वर्तनका कारण बतलाया जाता है। भारतीय मुद्राको भी मुद्रांमें अङ्कित होने लगी। मुद्रामें प्रतिमूर्तिका तरह प्रोक लोग देवताको जगह मनुष्यको आसन देने लगे। अलेकसन्दर भारतवर्षकी शिक्षा, सभ्यता और । प्रचार राजसम्मान और कीर्तिकलापकी पराकाष्ठा समझा