पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२४०

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बैठा। मूलसूत्र-मूलाधार २३७ विया । परन्तु युवराज रायसिंहने इसे खीकार नहीं। मूला (सं० स्त्री०) मूलानि बहुलानि सन्त्यस्याः मूल- किया। अर्श आदित्वादच, टाप। १ शतावरी, सतावर । २ रायसिंहकी संहारमूर्ति देख कर रावल मूलराज मूला नक्षत्र। अन्तःपुरमें चले गये । इधर सरदारोंने विचारा, कि "द्वितीयां षष्ठीमष्टम्यां कारयेत शान्तिकर्म च। मूलराजके सिंहासन पर बैठे रहनेसे अव हम लोगोंका अश्विनी- गमूलाञ्च पुष्या पुनर्वसुस्तथा ॥" कल्याण नहीं। उन्होंने आपसमें सलाह कर युवराजले (इन्द्रजाल १ अ०) कहा, कि हम लोग आपको राजतिलक देते हैं, अव आप मूला-१ मध्यप्रदेशके चंदा जिलेकी एक पर्वतश्रेणी। ही राज्यभार ग्रहण कीजिये। सब सामन्तोंकी एक राय यह मूलनगरसे ३ मील पूरव है । इसको चोटियां देख कर युवराजने पिताको कैद कर लिया और स्वयं अधिक ऊंची नहीं हैं। उत्तर-दक्षिण यह १८ मील राजकार्य चलाने लगा, परन्तु वह राजसिंहासन पर नहीं। फैली हुई है। इस जङ्गलो स्थानमें बनैले हाथी और गोंड़ जाति के लोग रहते हैं। धोनी, झिरी और खोल्सों तीन महीने चार दिन कैद रहनेके वाद अनूपसिंहकी । नामक उपत्यकायें एक समय वड़ी बड़ी झीलोंसे भरी स्त्रीके उद्योगसे मूलराज कैदसे छूट कर पुनः राजगद्दी थी। इन सव स्थानोंमे बड़े बड़े वाणिज्य-प्रधान गांव पर बैठे। राजगद्दी पर बैठते ही उन्होंने अपने पुत्र राया। सिंहको निर्वासित कर दिया। रायसिंह ढाई वर्षके वाद २ उक्त जिलेका एक उपविभाग। इसका रकवा जब फिरसे जयसलमेर लौटे, तब मूलराजने उनसे तथा ५०१८ वर्गमील है। उनके अनुचरोंसे अस्त्र छीन कर उन्हें देवाके किले में कैद ___३ उक्त जिलेका एक नगर । यह अक्षा० २०४० कर लिया। मूलराजने उस किलेमें आग भी लगवा दी उ० और देशा० ७०७३ पूरवके मध्य अवस्थित है। थी, जिसके फलसे रायसिह अपनी स्त्रीके साथ जल कर यहाँ तेलिंगा जातिके लोगों होका रहना अधिक होता है। भस्म हो गये। सन् १८१८ ई० में उन्होंने इष्ट इण्डिया छीट और चन्दनके व्यवसायके लिये यह स्थान बहुत कम्पनीके साथ सन्धि कर ली थी। सन्धिके बाद । कुछ प्रसिद्ध है। मूलराज दो वर्ष जीवित रह कर इस लोकसे चल वसे ।। मूलसूत्र (सं० क्लो०) वेदान्तदर्शनादिका अभिव्यक सूत्र । मूलाधार (सं० पु०) मूलानामाधारः, मूलं प्रधानं आधार मूलस्थल (सं० क्लो०) नगरभेद । इति वा । गुह य और लिंगके बीच दो अंगुली परिमित मूलस्थली ( सं० स्त्री०) थाला, आलवाल । स्थान। इसका दूसरा नाम त्रिकोण है और यह इच्छा, मूलस्थान (सं० स्त्रो०)१ प्रधान स्थान । २ भित्ति, ज्ञान और क्रियात्मक होता है। इस मूलाधारमें कोटि दीवार । ३ ईश्वर । ४ मूलताननगरी। ५ आदि स्थान, सूर्यके समान प्रभा विशिष्ट स्वयम्भूलिंग विराजमान हैं। वाप दादाको जगह । त्रियां ङीष् । ६ गौरी। इसका वाहरी भाग सोनेके जैसा है। इसके दलोंकी मूलस्थानतीर्थ (सं० क्ली०) मूलतान नगर जहां भास्कर संख्या ४ और अक्षर व, श, प तथा स हैं। तीर्थ था। चीनपरिव्राजक युएनचुवङ्गने इस स्थानको "मूलाधारे त्रिकोणाख्ये इच्छाज्ञानक्रियात्मके । म्युलो-सान-पुलो नामसे उल्लेख किया है। मध्ये स्वयम्भूलिंगस्तु कोटि सूर्यसमप्रभम् ॥ मूलस्थायी (सं० वि०) १ सृष्टिके आदिसे रहनेवाले। तद्वाद्ये हेमवर्णाभं व-स वर्ण चतुई लम् ॥" (पु०) २ शिव । (तन्त्रसार) मूलस्रोतस् (सं० क्ली०) १ नदोका उत्पत्ति-स्थान। २. इस मूलाधारमें गंगा, यमुना और सरस्वतो ये तीनों मूल नदी। तीर्थ विराजमान है। जो पट्चक्रभेद करनेमें समर्थ मूलहर (सं० वि०) मूलनाशक, जड़ काटनेवाला। । हैं वे इन तीनों तीर्थों में स्नान करते है। Vol. XVIli. 60