पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२७४

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२७१ - मृत्यु "जातस्य हि ध्रुवो मृत्यध्रुव जन्म मृतस्य च । तस्मादपरिहार्येनऽर्थे नत्व शोचितुमर्हसि ॥"( गीता) गरुडपुराणमें लिखा है कि, भगवान् विष्णुका अकाल- मृत्युप्रशमनस्तोत्र पढ़नेसे अकालमृत्यु नहीं होती। (गरुडपु० २५८ अ०) मृत्युके पहले दानरूप होम आदि करना हितकर है। अतएव हवोंको उचित है, कि मृत्युके पहले थोड़ा बहुत सत्कर्मका अनुष्ठान अवश्य करे। जिसकी मृत्यु निकट देखे उसे गङ्गाके किनारे ले जावे और दोनों पैरको गङ्गाजलमें रख कर मुखमें गङ्गाजल देवे। इससे उसके सभी पाप नष्ट होते हैं और अन्तमें वह विष्णुलोकको जाता है। देवीपुराण ६७२७ और काशोखण्ड ४१६ अध्याय- में मृत्युका सविस्तर विवरण देखनेमें आता है। ज्योतिस्तत्त्वमें लिखा है, कि आयुष्काल क्षय होनेसे मृत्यु सभी लोगोंको प्रपोड़ित कर डालतो है। उस समय, क्या औषध, क्या मन्त, क्या जप, क्या होम, कोई भो उन्हें जरा और मरणसे नहीं बचा सकता। जिस प्रकार दीप तेल और वत्तोके रहते भी हवाके झोकेसे वुझ जाता है उसी प्रकार आयु रहते हुए भी कारणरूपा हवासे मनुष्यका जीवन-प्रदीप बुझ जाता है। आयुष्ये कर्मणि क्षीण लोकोऽय दूयते मया। नौषधानि न मन्त्राश्च न होमा न पुनर्जपाः ॥ प्रायन्ते मृत्य नोपेतं जरया चापि मानवम् ।" "वाधारस्नेहयोगाद्यया दीपस्य संस्थितिः॥ विक्रियापि च दृष्ट वमकाले प्राणसंक्षयः॥" (ज्योतिस्तत्त्व) फलितज्योतिषमें मृत्युकालनिर्णयका कुछ साङ्केतिक आभास दिये गये हैं। मनुष्य-शरीरमें प्रधानतः किस समय और किस प्रकार मृत्यु उपस्थित होती है, उसीके लक्षणादि निरूपण कर ज्योतिषियोंने मृत्युकाल जाननेके लिये निम्नोक्त उपाय बतलाये हैं। "अहोरात्रं यदेकत्र वहते यस्य मारुतः। तदा तस्य भवेदायुः सम्पूर्ण वत्सरद्वयम् ॥ अहोरात्रद्वयं यस्य पिंगलायां सदागतिः। तस्य वर्षद्वयं ज्ञेयं जीवितं तत्त्ववेदिभिः॥ त्रिरात्र वहते यस्य वायुरेकपुट तस्यता । वत्सरं यावदायः स्यात् प्रवदन्ति मनीषिणः ॥ रात्रौ चन्द्रो दिया सूर्यो वहेद्यस्य निरन्तरम् । विजानीयात्तस्य मृत्युः परमासाभ्यन्तरे सुधीः ॥ एकादिषोड़शाहानि यदि भानुर्निरन्तरम् । पहेयस्य च वै मृत्युः शेषाहेन च मासिकैः ॥ सम्पूर्ण वहते सूर्यश्चन्द्रमा नैव दृश्यते । पक्षेण जायते मृत्युः कालशानेन भाषितम् ॥ मूत्र पुरीषं वायु श्च समकालं प्रजायते । तदासौ चलितो शेयो दशाहे म्रियते ध्रुवम् ॥ याम्यनासापुटे यस्य वायु र्वाति दिवानिशम् । सथान्तमेव तस्यायः क्षिवेदब्दत्रयेण हि ॥ द यहोरात्र व्यहोरात्र वायु र्वहति सन्ततः । साद्धक मासात्तस्यापि जीवितं किल हीयते ।। नरनासापुटयु गे दंशाहानि निरन्तरम् । वायुञ्चेति सहसा यान्ति स जीवेद्दिवसत्रयम् ॥ नासावर्त्तद्वय हित्वा वायु रुष्णो मुखाद्वहेत् । शंसेदिनद्वयादाक् जीवितं तस्य निश्चितं ॥ सूर्य सप्तमराशिस्थे जन्मसंस्थे निशाकरे । दंष्टारस्तत्पूर्ण कालेऽप्यकाले तस्य नाशिताः ॥ यस्य रेतो मल मूत्र चुतं युक्तं मलं तथा । इहैकदा भवेद्यस्य अब्दं तस्यायु रिष्यते ॥ पृथ्वीजले शुभे तत्त्वे तेजोमिश्रफलोदयः । हानिर्मृत्यु करौ पुसामुभयो ब्योममारुतौ ॥" (फलितज्यो०) उपरोक्त भूतोदय फलको छोड़ कर शारीरिक लक्षण द्वारा भी मृत्युकाल जाना जा सकता है। पहले दाहिने हाथकी मुट्ठीको शिर पर रख कर अपनी आंखोंसे उस हाथका पहुँचा देखे, जिसको छः महीनेमें मृत्यु होगी वही व्यक्ति मुट्ठीको हाथसे पृथक् देखेगा। छः महीने में जिसकी मृत्यु अवश्यम्भावी है, वह निर्वापित तेलकी वत्तीकी धूमगन्ध अनुभव नहीं कर सकता। कहते हैं, कि जो इस प्रकार अपनी आंखोंसे नाकका अगला भाग नहीं देख पाता उसकी मृत्यु निकट समझनी चाहिये । मृत्यु- के छः मास पहले छोक नहीं आती, ऐसी भी किम्व- दन्ती है।