पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३०९

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३०६ मेनका-पेनाङ्काबु मेनका (सं० स्त्री०) मन्यते इति मन् 'मनेराशिषि च' इति | मेनकाघट्ट-आसामप्रदेशके जटोदरके अन्तर्गत एक प्राचीन वुन ततः। (नशिमन्योरलिटयेत्वं वक्तव्य' । पा ६।४।१२०) तीर्थ । (ब्रह्म स्व० १६।२१) इत्यत्र काशिकोक्त या अकारस्य एत्वं । १ अप्सरोभेद, मेनकात्मजा (सं० स्त्री० ) मेनकाया आत्मजा। १ दुर्गा। स्वर्गको वेश्या। इन्द्रकी आज्ञाले मेनकाने विश्वामित्र | २ शकुन्तला। का तप भंग किया था। इसीके गर्भसे शकुन्तलाका जन्म मेनकाप्राणेश (सं० पु० ) मेनकायाः प्राणेशः पतिः। हुआ। दुष्यन्त और शकुन्तला देखो। हिमालय। मेनैव मेना खाथै कन् । २ पार्वतीकी माता, हिमालय- मेनकाहित (सं० क्ली०) रासक नामक नाटकका एक भेद । की स्त्री। कालिकापुराणमें लिखा है-जिन दिनों दक्ष- मेनगुन-ब्रह्मराज्यके अन्तर्गत प्राचीन अमरपुर और वर्त- कन्या सती महादेवके साथ क्रीड़ा करती थी उस समय मान मन्दाले राजधानीके मध्यवत्तों एक नगर। यहां मेनका सतीकी नितान्त हितषिणी सखी थी । जव सतीने ब्रह्मराज वोदो पिया वा मन्तवगाई द्वारा १८१६ और दक्षके घर प्राण त्याग किया तव मेनकाने उनके लिये १८१६ ई०में बनाये हुए दो सुन्दर मठ (पागोडा ) हैं। तथा इस आशासे कि वे हमारी कन्या हो कर जन्म लें, उनका शिल्पनैपुण्य देखने योग्य है। उन दोनों पागोडों- कठिन तप किया। भगवती फाली इस तपस्यासे मेंसे एक गोल और दूसरा चौकोन है। जिस आकृतिसे सन्तुष्ट हो मेनकाके सामने उपस्थित हुई और वर मांगने इसका भारम्भ हुआ था, कि यदि सम्पूर्ण हो जाता तो कहा। मेनकाने उनसे एक सौ वलवान और दीर्घायु इसकी ऊंचाई ५०० फुट होती, परन्तु १६५ फुट ऊंचा ले पुत्र तथा एक कन्याकी योचना की। तब भगवतीने मेनका- जा कर ही इसका काम शेष हो गया है। १६३६ ई०के से कहा, 'तुम्हारे एक सौ बलवान् पुत्र होंगे और जगत्के भूमिकम्पसे यह नष्ट हो गया है। प्रत्नतत्त्वानुसन्धित्सु कल्याणके लिये मैं ही तुम्हारी कन्या होऊगी।' महामति फागुसनने लिखा है, कि १९वीं सदीकी यह वर पाने के बाद मेनकासे मैनाक उत्पन्न हुआ। मैनाक | कीर्ति मिस्रके पिरामीड़की जैसी है। ने इन्द्रसे शत्रुता ठानी और फलतः अपने दोनों पक्षोंके मेनन्द्रस-यवनराज मिलिन्द ( Menondros) साथ आज तक समुद्रमें आश्रय लिये हुए हैं। पश्चात् | मिलिन्द देखो। मेनकाके निन्यानवे पुल हुप, और वादमें सतीका जन्म | मेना (सं० स्त्री०) मान्यते पूज्यते इति मान पूजायां (वहुल- हुआ। (कालिकापु० ४२ अ०) मन्यत्रापि । उण २२४६) इति इनव प्रत्ययेन निपातनात् ___ वामनपुराणमें इनका जन्मवृत्तान्त यों लिखा है। साधुः । १ मेनका, पितरोंकी मानसी कन्या। अ.पाढ़ और अगहनकी अमावस्यामें इन्द्रने भक्तिके साथ "अग्निष्वात्ता वहिषदो द्विधा तेषां व्यवस्थितिः। पितृगणके लिये पिण्डदान किया था। इससे पितृगण तेभ्यः स्वाहा स्वधा जज्ञे मेना वैतरणी तथा ॥" बड़े सन्तुष्ट हुए। इन पितृ लोगोंके मानसी कन्या (कूर्म पु० १२ १०) उत्पन्न हुई जिसका नाम देवोंने मेनका रक्खा । पश्चात् २ स्त्री । ३ वृषणश्वको कन्या । ४ वाक् । (निघंटु ४ ११) देवोंने इस मानसी कन्याको पर्वतोंमें श्रेष्ठ हिमालयसे | ५ हिमवान्की स्त्री, मेनका। ६ नदीविशेष।। व्याह दिया। मेना-भारत महासागरस्थ सुमात्राद्वीपके अन्तर्गत अनन्तर हिमालय और मेनकाके तीन कन्यायें हुई। एक प्राचीन जनपद । यह मलयजातिको वासभूमि है। रक्तवर्णा, रक्तनेता तथा रकाम्वर-धारिणी ज्येष्ठा कन्या- यह भारतीय द्वोपखण्ड बहुत पहलेसे ही सभ्यताके का नाम रागिणी, मध्यमाका कुलिला तथा सबसे छोटी- लोकसे आलोकित हुआ था। यहां तक कि, अन्यान्य का नाम काली था। इसी कालीने कठोर तप कर | द्वोपवासी मलयबंशीय सरदारगण अपनेको मेनाङ्कयु- महादेवको पतिरूपसे प्राप्त किया था। राजवंशसे उत्पन्न समझ कर गौरव करते थे। विषुव- (वामनपु० ७४-७५ अ०) । रेखाके दक्षिणवर्ती इस जनपदका भूपरिमाण ३ हजार