पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३५९

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२५६ मैस्मेरतत्त्व निश्चल शान्तमूर्ति धारण करना। वे सङ्गीवकी सुम- पात्र ( Patients ) की आक्षेपावस्थाकी पर्यालोचना धुर तानसे विमोहित हो कर धीरे धीरे आकर्मणो शक्तिके | करनेसे चमत्कृत होना पड़ता है। जिन्होंने नहीं देखा क्रियाफलभागी लायक हो जाते हैं । शक्ति-सञ्जालक- है, वे कभी भी उसकी प्रकृतिका अनुभव नहीं कर सकते। के हाथमें जो शलाका रहती है उससे अपने शरीर से एक ओर रोगी वा पान जिस प्रकार आक्षेप द्वारा विच- निकली हुई शक्तितरङ्ग एककेन्द्रीभूत की जाती तथा लित होता है, दूसरी ओर उसी प्रकार वे शान्ति-सुखसे उसीले उस चौम्विक शक्तिका प्रभाव बढ़ता है। निद्राको कोमल गोदमें सोये हुए मालूम होते हैं। इन ___इस प्रकार वैकेटके चारों ओर विभिन्न श्रेणी में खड़े। दोनों भावोंको तुलना करनेसे विस्मित होना पड़ता है। मनुष्य एक समयमें आकाणी शक्तिका प्रभाव लाभ करते | इधर आक्षेपके कारण अस्थिरता जैसी वेदनादायक है हैं । उन वक्र लौहदण्डोंमें प्रवाहित टवकी चुम्वकशक्ति | उधर गाढ़ी नींदको होला उसी प्रकार सुख-ऐश्वर्यका देहवेष्टनी रज्जुका सञ्चारणप्रभाव; अगुष्ठ-शृङ्खल; वाद्यो- भावद्योतक है। दुर्घटना विशेषका पुनः पुनः आवर्जन धमके मनोहारी शब्दोत्थान प्रसङ्गमें वायुके साथ चुम्ब-) तथा (समवेदना विशेष आश्चर्य-जनक है। कभी कभी कोय शक्तिका संमिश्रण ; रोगीका मुखमण्डल, मस्तकके रोगी एक दूसरे पर झिपड़ता, आपसमें हंसता और ऊपर, मस्तकका पिछला भाग, रोगस्थान और सभी अनाप शनाप वकता है। ये सव कार्य शक्तिसञ्चालक- अवयवोंमें शक्तिसञ्चालकका दण्ड वा अंगुलि सन्ताड़न के प्रभावसे ही हुआ करते हैं। पात्रकी अघोरावस्था और केन्द्राभिमुख-दृष्टि ( always observing at the | वा मस्तिष्ककी जड़ता कैसी भी क्यों न हो, शक्तिसञ्चा- direction of the poles); शक्तिसञ्चालकका तीव्र | लकने आदेश, मुखभङ्गो वा हाथ पैरका हाव भाव देख कटाक्ष आदि मनुष्यके शरीरमें चुम्बकीय शक्ति प्रवहन- 1 कर उसीके अनुसार वह शक्तिमान् पात्र अपने चित्तकी का अच्छा उपाय है। फिर कमर और पेट पर अंगुलि | विभिन्न अवस्थाका विकाश करता है। वा हाथका दवाव देनेसे मेस्मेरिक शक्तिका सञ्चार होता मेस्मेर उद्भावित इस तस्वकी यथार्थताको मीमांसा है। कभी देरसे और कभी ५७ घण्टेके बाद भी उस | करनेके लिये फरासीसी गवर्मेण्टने M. Baiby, Lavo- शक्तिका आवेश दिखाई देता है। isier, Franklin आदि कई मनीषियोको नियुक्त किया रोगी वा पानविशेष ( Patients)-को मैस्मेरिक था। उनको रिपोर्ट में लिखा है, "तथा कथित मिध्या प्रक्रियाधीन करनेके बाद उसकी देहमें भिन्न भिन्न | प्रतिनिधिक शक्ति प्रकृत और प्रचलित चुम्बक-शक्ति अवस्थामें भिन्न भिन्न भाव उत्पन्न हुआ करता है। नहीं है। उनके अत्यन्त अद्भुत शक्तिकुण्डको बला- मळ तो धीर और शान्त भावसे मेस्मेरिक-प्रभाव सहा वल सूचिका ( Needle ) और इलेकोमिटर ( Electro- करता है और कुछ खांसी, थोड़ी वेदना तथा स्थानिक | merer ) के द्वारा परीक्षा कर देखा गया है, कि उसमें वा सारे शरीरमें उत्ताप अनुभव करता है तथा कभी | चौम्विक-शक्ति वा ताड़ित-शक्तिका विलकुल ही अस्तित्व कभी पसीना भी निकलते देखा गया है। कोई विच- नहीं। यह मानवेन्द्रिय वा रासायनिक अथवा तान्त्रिक लित, कोई आक्षेप द्वारा प्रतिहत हो जाता है। शक्ति प्रक्रियाका अतीत है। परन्तु उन्होंने जो शकि-सञ्चा- सञ्चालनकालमें अधिकांश व्यक्तिके जो आक्षेप उपस्थित लनरूप व्यापक-ध्यापारका अनुष्ठान किया है, वह सम्म- होता है वह दोर्धकालस्थायी और अधिक प्रवल हो जाता . वतः उनके अन्धविश्वासका हो फल है। वे लोग प्रकृत है। कभी कभी हाथ पैर वा सारे शरीरमें अनियमित तत्वानुसन्धानसे पराङ्मुख हैं। यद्यपि इस विश्वासके ऊर्ध्वाधाक्षेप होता है। इस समय शोक दुःख, उल्लास, फलसे कोई कोई रोगी आरोग्य होते देखा गया है तथापि आमोद, चित्तवृत्तिको अवनति तथा कभी कभी मोह। यह विपद-रहित नहीं है, क्योंकि आक्षेपकी अधिकताके आलस्य और निद्राभाव ( Drowsiness) आ कर उप कारण कमजोर स्त्री और पुरुषमात्र ही मानसिक दुर्व स्थित होता है। लताके सववसे अकसर बुरा फल पाते हैं।