पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/३९०

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मोघवत्तो ३८७ असुजनके साथ मिल कर कावलिक एसिड वा द्वाग्ल, वक्षों में लाक्षा-कोरकी तरह रह कर वृक्षज मोज पैदा करते अंगार पैदा करता है। हैं। जब ये कीड़े तमाम पेड़ पर छा जाते हैं, तव वह · बहुत प्राचीन समयमें एशिया और यूरोपखण्डमें तुपारसे आच्छादित-सा जान पड़ता है। मंगोलीय-राज- वत्तीके बदले मशाल और चिराग जलते थे। मध्ययुगमें | वंशके अभ्युदयसे चीनदेशमें इस वृक्षन मोमका व्यव- मेद द्वारा प्रस्तुत कृत्रिम पत्ती यूरोपमें प्रचलित हुई। साय होता था, इस वातका प्रमाण मिलता है। इन परन्तु पसियादण्डके सुसभ्य और सुप्राचीन देशोंमें । परापुष्ट कीटोंके द्वारा जून माससे वृक्षों में मोम जैसा उससे भी बहुत पहलेसे मोमवत्तोका प्रचलन हुआ था।! एक पदार्थ सञ्चित होता रहता है। अगस्त महीनेके भारतके वौद्ध मन्दिरादिमें मोमबत्ती जलानेको व्यवस्था अन्तमें अथवा सेप्टेम्बरके प्रारम्भमें पेड़ोको छील कर थी। चीन देशमें भी बहुत शताब्दी पहलेले मोमबत्ती यह मोम संग्रह किया जाता है। उसके बाद गरम जल- वनाई गई थी। मुसलमान लोग किसी किसो पर्वमें से भरे हुए कड़ाहेमें डाल कर उसे गलाया जाता है। मोमवती जलाया करते थे। अच्छी तरह गल जाने पर उसे डे पानोंसे भरे हुए पात्र बत्तो प्रधानतः दो प्रकारसे बनती है-(१) साँचेमें | में उडेल दिया जाता है तव Spermaceti की तरहका ढाल कर ( Aloulded ) और (२) डुवो कर (Dipped)|| अस्वच्छ मोम-पिण्ड परस्पर पृथक् हो जाते हैं। यदि वर्तमान समयमें मोमके सिवा चरवी और पेड़ोंका गोदे। पेड़को छील कर मोम संग्रह करनेमें देरी हो, तो ला-चा मिला कर बत्तो वनाई जाने लगी है। बाजारमें विभिन्न | वा असंस्कृत मोम खराव हो जाता है। कारण शरत्- पदार्थोंसे बनी हुई जो विभिन्न प्रकारको वत्तियां वेची | ऋतु में काटगण उससे नीड़ निर्माण करते हैं जो छोटेसे जाती हैं, वे wax-candles, tallow-candles, para. फिर मुरगीके अण्डेकी तरह बड़े हो जाते हैं । शरत्काल- fine candles, spermaceti candles. composition | में ये सैकड़ों अण्डे देती हैं। चीनके लोग इन अण्डोंकी candles, stearine candles. palm oil candles ' मई मोसमें इकट्ठा करके चो नामक शरतृणके पानसे आदि नामोसे प्रसिद्ध हैं। वोचमें कपासके सुतलीको ढक रखते हैं। जून मासमें कोटोंकी पेड़ पर चढ़ा दिया एक बत्ती और उसके चारों तरफ मोम चरवी या तैलज जाता है, तब वे नवीन शाखा पल्लवोंसे संयुक हो कर पदार्थोंका एक आच्छादन देनेसे मोमबत्ती बन जाती है। फिरसे मोम-जननक्रियासे घ्याप्त हो जाते हैं। पिपीलिं- नारियलका तेल, मोम, जीवमेद तथा Myrica cerifera, कार्य इन कोटोंकी प्रधान शत्रु है। इनसे कीटोंकी रक्षाके Rhus sucedanea, Ceroxylon andicola, Beninca लिए पेड़की जड़में चूना लगा दिया जाता है। cerilera, Ligustrum lucidum, Stillingia, sebitera, Bassin latitolia, Cocos nucifera, Materia indica, भारतमें पहिले जिस प्रथासे मोमवत्ती बना करती थी, Ficus umbellata, Aleurites, Canarium, Carapa, वर्तमान प्रथासे विलकुल ही न्यारो थी। तब सांचे में ढालक . Garcinia, Sapium आदि जापान, चीन, जारा, हिमा- बत्ती बनानेकी रिवाज न थी। लखनऊके बत्ती बनाने. लयदेश, अमेरिका आदि स्थानोंमें उत्पन्न होनेवाले वाले कारीगर लोग वांस चीर कर उसको खपश्चियां वृक्षोंके निर्याससे भी वत्ती वनती है। इसके सिवा बना कर उसमें वीच वीचमें छेद करते थे। पीछे उन मान्दाजमें पैदा होनेवाला अडोका तेल इलिपूतेल और छेदों में सूत या वत्ती पहना कर उसे घरकी छत्तसे या मार्गोंसा तेलके नीचेका सार इनसे भो मोम सापक किसी ऊंचे स्थानमें लटका देते थे। कभी कभी यह ईपत् कठिन पदार्थ ( Vegetable ras) निकलती है, काम ऊंची चौकीसे भी लिया जाता था। उससे भी बत्ती बन सकती है। पीछे उत्तप्त कड़ाहेमें चरबी या मोम गला कर एक ___चोनदेशामें चू-पेला, सू-ला, कोकस-पेला नामके कोट | सछिद्र करछुली (चमचेके आकारकी) से गली हुई (Wax-insect) होते हैं, जो Ligustrum Japonicum, | चरवीको धीरे धीरे उस पर चढ़ा दिया करते थे। फिर L, lucidum, L. obtusifolium और Frosinus श्रेणी. जरा ठण्डी होने पर उसे चिकने तख्ते पर ढरका कर