पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४०७

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मौनिव-मौनीवावा .२ मुनिचितसे निवृत्त । ३ मुनित्रितका निवास । ४ मुनि- | वह पहले पहल जलपाईगुडीके विद्यालय में शिक्षक नियुक्त चितके पासका देशी , हुआ। तदन्तर रङ्गपुरके अन्तगत गोपालपुरके अङ्ग्रेजो मौनित्व (स' क्ली०) मौनिनो भावः त्व । मौनोका भाव । स्कूल में प्रधान शिक्षकका काम करने लगा। बहुत दिनों वा धम, मौन। तक यह यही काम करता रहा। . मौनिन (स० वि०) मौनमस्यास्तीति मौन ( अत इनि प्यारीलालने अध्यापक होते ही अपना ध्याह कर उनौ। पा ॥२॥११५) इति इनि । १ मौनयुक्त, चुप रहने- | लिया था। अधिक देर तक निद्रा न आवे इस लिये वाला । २ मुनेि। वह एक बेंच पर सोया करता था। दिन रात मिला "ततः स चिन्तयामास राजा जामातृकारणाम् । कर वह २४ घंटे ही सोता था, प्यारीलाल घरमै रह विवेद च न तन्मौनी जगृहेऽर्थञ्च तं नृपः॥" | कर घरके काम धंधोंसे जो कुछ समय पाता उसमें वह (मार्कण्डेयपु० ७५॥३६) भगवद्भजन किया करता था। भौनिस्थालिक (०नि०) मुनिस्थल (कुमुदादिभ्यष्ठक। इस प्रकार साधन भजन तथा संसारका काम करते पा ४१२।८०) इति ठक् । १ मुनिस्थलयुक्त स्थान । २ मुनि करते प्यारीलालको बारह वर्ष बीत गये । इसी समय स्थलसे निवृत्त । ३ मुनिस्थलका निवास | ४ मुनिस्थल- उसकी स्त्री भी मर गई । स्त्रोके मरनेसे वह कुछ व्याकुल का देश अवश्य हुआ था, परन्तु उसी व्याकुलता वैराग्य के रूपमें भौनि (सनि०) मौनिन् देखो। परिणत हो गई । स्त्रीके मरते ही उसने घरके काम मौनी (हिं० स्त्री०) ,कटोरेके आकारकी टोकरी । यह प्रायः धंधे छोड़ दिये और एकान्तमें रह कर घे भजन पूजन कांस और मुजसे दुन कर बनाई जाती है। करने लगे। मौनीवावा- एक ब्राह्मधर्मावलम्बी । सन् १८५६ ई०में प्यारीलालकी स्त्रोके मरने पर उसके मितीने उससे नदिया जिलेके अन्तर्गत भावुदिया नामक गांवमें कायस्थ पुनः ध्याह करनेके लिये अनुरोध किया था परन्तु उन्होंने वंशमें मौनीवावाका जन्म हुआ था। इनके पिताका नाम, एक भी न सुना । इसा अवसरमें इनके छोटे भाई रामचन्द्र घोष था. वे परम वैष्णव और हरिभक्तिपरायण | पढ़ना छोड़ कर रुपया कमाने लगे। प्यारीलालने अच्छा थे। गृहस्थी अच्छी न होनेके कारण रामचन्द्र पावनायें | अवसर देख छोटे भाईको धरका काम सौंप दिया और रह कर काम काज किया करते थे। रामचन्द्र के दो पुत्र आप भजन करने के लिये चित्रकूट चले गये । प्यारी- थे। बड़े का नाम प्यारीलाल और छोटेका नाम हीरा- लालने निःसहाय अवस्थामें ब्राह्म धर्म ग्रहण किया था, लाल था। ये दोनों भाई भी पावनाके अंगरेजी स्कूलमें | परन्तु उनके हृदयमें हिन्दू-धम्मके लिये पिपासा जागृत पढ़ते थे। उस स्कूल के एक अध्यापक ब्राह्म थे। वे थी । इसी कारण उन्होंने पर्वतगुहाम जा कर योग प्यारालालका पवित जीवन देख कर ईश्वरसक्ति तथा साधनेका विचार ठान लिया।.. ब्राह्मधर्मका उपदेश उन्हें दिया करते थे।. . तीन वर्ष तक चित्रकूट के पर्वत पर योग सोधन कर वालक ज्यों ज्यों बढ़ने लगे त्यों त्यों उनका : प्यारीलाल ओंकारनाथ पवत पर योग साधन करने के धर्मभाव प्रवल होने लगा। इसी समय उनके माता लिये चले गये । ओंकारनाथ पर्वत योगसाधनके लिये पिताका वियोग हुआ। माता पिताको मृत्युके अनन्तर : एक उत्तम स्थान है। वहां जा कर अनेक साधु संन्यासी इन वालकोंने प्रकाशरूपले ब्राह्म धर्म ग्रहण कर लिया।. योगसाधन तथा तपस्या करते हैं । प्यारीलालने उस . ब्राह्मधर्म ग्रहण करनेके साथ ही साथ हिन्दू धर्मसे पर्वत पर अपने लिये एक उत्तम स्थान बना लिया। एक इनका सम्बन्ध टूट गया। इससे इन्हें अर्थका कष्ट होने } वर्ष तक उन्होंने बड़ी कठिन तपस्या की थी। इस बीच- लगा। प्यारीलालने अपने छोटे भाई के पढ़नेका खर्च में आसन छोड़ कर उठते उन्हें किसीने नहीं देखा था। उनकी कठिन तपस्या देख कर लक्ष्मीनारायण सेठ नामक . चलानेके लिधे पढ़ना छोड़ कर एक नौकरी कर ली।