पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४१

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मुद्रातत्त्व (प्राच्य) इसमें नाना प्रकारके असुर और राक्षसोंकी मूर्ति है।। का चित्र विनित है। किसी मुद्रा में दिव्य लावण्य परि- अलावा इसके तरह तरहके जीवजन्तुओंके चित्र भो । शोभिता अनवद्या भानोदितिको देहलतिका है। आनो- त्व पण्डितोंका कहना है, कि वह ई० दिति पद्मासन पर बैठी है। अन्तरीक्षमें परस (Eros) सन् ४८० वर्ष पहले की और आसुरीय (Assyria) देशको आ कर उन्हें पुष्पमाला पहना रही हैं। एक भागमें आदर्श है। कुछ मुद्रामें सौरजगत्को चित्रावली स्वरूप ! दिवनिसियन प्रेमविह्वल भावसे उन्हें देख रहे हैं। एककेन्द्रिक वृत्तमाला देखने में आती है। किसी वराह इसका चित्रशिल्प अतुलनीय है। बहुत सी मुद्राओंमें .मूर्ति अङ्कित है। वह वराह अपने तेज दातों एथेनाको प्रतिमूर्ति और दूसरे भागमें दालका गुच्छा है। द्वारा प्रलय पयोधिसे पृथिवीकी रक्षा कर रहा है। पर उसके वादको मुद्रामें अलेकसन्दरका चिह्न अकित है। वत्ती मुद्रा में अलेकसन्दरका परिचय पाया जाता है। किसीमें सिंहको मूर्ति समान भावमें दिखाई देती है। लदियसके रुपयेमें वेणुशद्यपरायण आपलोक मुद्रातत्त्वज्ञ पण्डितोंने एक स्वरसे स्वीकार किया है. है। राजकीय मुद्रामें अगष्टस तथा तृतीय गार्डियनका कि साइप्रस द्वोपको प्राचीन मुद्रा में प्रोक आदर्शको कोई नाम देखा जाता है। । अनुकृति दिखाई नहीं देती । फिनिफीय और मिस्त्री . माइरा नगरकी मुद्रामें एक दिव्याङ्गना वृक्षकी डाली प्रभाव इसमें अच्छी तरह दिखाई देता है। उसके अक्षर पर बैठो है। दो वढ़ई दी धारवाले कुठारसे उस वृक्षको एशियामाइनरके भाषान्तर्गत प्रोक अक्षरसे सम्पूर्ण विभिन्न काट रहे हैं । कुठाराघातसे दो माली वृक्षसे निकल है तथा नई प्रणालीमें उत्कीर्ण है। कर उन्हें अङ्गभङ्ग करनेका भय दिखा रहे हैं। यह । इन सब मुद्राओंमें वृप, ईगल, ( ठीक गरुड़के जैसा) चित्रशिल्प सौन्दर्य में अनुपम है। मेष, सिंह, हरिण, हरिणामकारी सिंह, स्फिस्कस आदि . पम्फिलियाकी मुद्रा एशियाका शिल्पवैचित्रा देखा नाना प्राणोकी प्रतिकृति खोदी हुई है। देवदेवीके मध्य जाता है। ख०पू० ५वीं सदी इसका प्रारम्भकाल है। आक्रोदिति, हिराक्लिस, आर्थना, हार्भिस, जियास तथा इसके एक भागमें एक एक वीरकी प्रतिमूर्ति और दूसरे आमन प्रधानतः अडित है। किसी वृषभारूढ़ देवी, भागमें (बलिके यज्ञमें त्रिपाद भूमिप्रार्थी वामनावतारको किसीमें मेषवाहिनी अष्टार्टी वा फिनिकीय आक्रोदिति तरह ) त्रिपद चिह्न है। पाश्चात्य पण्डितोका कहना है। आलेकसन्दरके पहले तक सभी मुद्राओंमे राजा. है, कि यह सूर्यका साङ्केतिक निदर्शन है। का नाम अडित था । इभागोरस, निकोक्लिस, निता- पर्णा नगरकी सम्राज्ञीको चित्रमुद्रा बड़े कौशलसे गोरस आदि १० राजाओंका राज्यकाल आसानीसे अडित है। यह ई०सन् ४८० वर्ष पहलेकी बनी है। निर्णय किया जाता है। प्रथम तलेमोकं भाई मेनेलस इसमें अनारके दाने, मछली और मनुष्यके नेत्र भाकित इस वंशके अन्तिम राजा थे। इनके शासनकाल में स्वर्ण- देखे जाते हैं । इसका रहस्य आज तक किसीको मालूम मुद्राकी एक पीठ पर सिंहमूर्ति अङ्कित रहती थी। नहीं हुआ है। किसी किसीमें आथेना तथा नाइस- किसी मुद्रा अर्द्धचन्द्रविभूषण प्रस्तरमय लिङ्गमूर्ति देवीकी मूर्ति एक साथ दोनों ओर चित्रित है। यह देखी जाती है। गलेसियाके राजा आमेस्थिसको मुद्राको तरह है। लिदियाकी प्राचीन मुद्रा में बहुतसे राजाओंके लुप्त • पिसिदियाको मुद्रा साधारणतः राजचिह्नाङ्कित है।। कीर्तिकलाप देखनेमे आता है। फ्रिजियाकी मुद्रा बहुत सिलिसिया नगरकी मुद्रा विविध रहस्योंसे परिपूर्ण है। कुछ लिदियाकी मुद्रासे मिलती जुलती है। मुद्रातलमें यहां ख० पू० ५वीं सदीकी बहुत-सी मुद्राएं पाई गई फ्रिजिया राजाओंके वंश-प्रतिष्ठाता चन्द्रदेव वा लुनस- हैं। किसी किसी मुद्रामें शिल्पसौन्दर्यको पराकाष्ठा की प्रतिमूर्ति है। कई जगह मिनस (finos ) का देखी जाती है। इसके एक भागमें बकरेको मूर्ति और चित्र भी देखा जाता है। गलेसिया नगरको मुद्राम दूसरे भागमें मुद्राको छापमान है। किसी में अश्वारोही | सम्राट् बोजनको नामाङ्कित पीतलको मुद्रा अधिक