पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४३२

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यक्षसाधन- यक्ष्मा यक्षसाधन (स क्लो०) यक्षाणां साधनम् । यक्षापासना ।। २ कुवेरको पत्नो । (पु० ) ३ वह जो यक्षकी उपा.. 'निस तरह देवादिको आराधना करनेसे सिद्धिलाभ होता सना करता हो अथवा उसे साधता हो । है उसी प्रकार यक्ष, यक्षी, पैशाची मादिकी उपासना कर यक्ष (स.पु.) १.यज्ञशील, वह जो यज्ञ करता हो। २ . -मारण, उच्चाटन आदिमें सिद्धिलाभ होता है अर्थात । एक प्राचीन जनपदका वैदिक नाम जो वक्ष भी कहलाता यक्षसिद्ध व्यक्ति इच्छा करने पर मारण, उच्चाटन आदि ! था और इसी नामकी नदीके आस पास था, आक्सस . बैठे विठाए कर सकते हैं। यह साधना ऐहिक सुखप्रद ! नदीके पास पासका प्रदेश । ३ इस जनपदका निवासी। . है; किन्तुं परलोकमें बड़ा अनिष्टफल देनेवाला है। इसी- | यक्षेन्द्र (सं० पु०) यक्षोंके खामी, कुवेर। लिये शास्त्र में इस साधनाको निन्दित कहा है। इससे यक्षेश (स० पु०) जैन अवसर्पिणोके एकादश और अष्टा- • जीवकी अधोगति होती है, अतएव यह साधना किसीको दश अहं का अनुचर या उपासक । • नहीं करनी चाहिये। यक्षेश्वर (सं० पु.) यक्षाणामीश्वरः। यक्षोंके स्वामी, "यक्षायां यक्षिणीनाञ्च पैशाची नाञ्च साधनम् । कुचेर। मूतवेतालगान्धर्व मारणोच्चाटनानि च। यक्षोडु म्वरक (स० क्लो०) यक्षप्रियमुड़ म्वरम्, ततः · अधोगमनमेतेषां साधने ऐहिक हितम " खार्थे कन् । अश्वत्थ फल, पोपलका फल । __(वाराहीतन्त्र०) यक्ष्म (सं० पु०) व्याधि, क्षय नामक रोग। . यक्षसेन (स० पु०) वौद्धराजभेद ।। यक्ष्मगृहीत ( स० त्रि०) यक्ष्मरोगग्रस्त, यक्ष्मा रोगसे यक्षस्थल ( स० पु०) पुराणानुसार एक तीर्थका नाम।। पोड़ित । यक्षाङ्गो (सस्त्रो०) एक प्राचीन नदीका नाम यमग्रह ( स० पु० ) यक्ष्मा इव ग्रहः। क्षय या यक्ष्मा यक्षाधिप ( स० पु.) यक्षस्य अधिपः । यक्षपति, कुवेर।। नामक रोग। "कृत्तिकादीनि नक्षत्रानीन्दोः पत्न्यस्तु भारत। यक्षाधिपति (स.पु.) यक्षाणां अधिपतिः। यक्षोंके । खामी, कुवेर। दक्षशापात् सोऽनपत्यस्तास्तु यमग्रहादितः ॥". .. (भागः ६६२३ ) यक्षामलक (सं क्ली०) यक्षाणामामलकम् । पिण्डखजूर यक्ष्मनी (स' स्त्री०) यक्ष्माण हन्ति हन ( अमनुष्य- वृक्ष, पिड खजूरका पेड़। कत के च । पा ३।२।५३ ) इति टक्, ततो डोष् । द्राक्षा, यक्षावास (संपु०) यक्षाणामावासा वासस्थानम् । दाख । वटवृक्ष, बड़का पेड़। इस वृक्ष पर यक्षोंका निवास माना यक्ष्मनाशन (सं०वि०) १ यक्ष्मरोगनाशकारी, क्षयरोग जाता है। • नाश करनेवाला । (पु०) २ऋग्वेदमें १०म मण्डलके यक्षिणो (सं० स्त्रो०) यक्ष पूजा गस्त्यस्याः यक्ष-इनि- १६१ सूक्तके मन्तद्रष्टा ऋपि । डोए । १ कुवेरको पत्नी। २ यक्षकी पत्नी । ३ दुर्गाको | यक्ष्मा ( स० पु०) (वाहुलकात् यक्षयतेरपि.। . उण ४११५०) एक अनुचरीका नाम। इत्यत्र उज्ज्वलदत्तोपत्या मनिन् प्रत्ययेन साधुः । क्षयी यक्षिणीत्व (सं० फ्लो०) यक्षिण्याः भाव-त्व । यक्षिणी-1 नामक रोग, तपेदिक। पर्याय-क्षय, शोष, राजयक्ष्मा, का भाव या धर्म। रोगराट् । . यक्षो (स० स्त्री०) यक्षस्य भार्या यक्ष पुयोगादिति ङीष् । ___ यक्ष्मरोगको उत्पत्तिका विषय कालिकापुराणमें यों यक्षकी पत्नी लिखा है, अश्विनी आदि २७ दक्षकी कन्यायोंके साथ "यक्षी वा राक्षसी वापि उताहोस्वित् सुराङ्गना। चन्द्रमाका विवाह हुआ था। महात्मा चन्द्रमा इन सव सर्वथा कुरु नः स्वस्ति रक्षस्वास्माननिन्दिते ॥" पत्नियों से केवल रोहिणी पर ही सदा आसक रहते ..... .. . ...... .... (भारत १६४।११७) | थे। इस पर दूसरी दूसरी पत्तियां जलने लगी और Vol. XVIil 108