पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४७०

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यज्ञोपवीत वृहस्पतिष्ट्वानियुनक्तु भज्ञम् ।" (पारस्करग यस० २।२।१६) इसके बाद पूर्वासादित नु वको प्रतापित करके इस मन्त्रका जप करे। सम्मार्जन कुश द्वारा मूलसे अनपर्यन्त संमार्शन करे पीछे ___ अनन्तर आचार्य माणवकको दाहिने हाथसे पकड़ उसे पुनः प्रतापित करके प्रोक्षणोके उत्सर रख दे । अनन्तर कर पीछे "ओं को नासासि' उत्तरमें माणवक कहे, 'श्री आज्यस्थालोको अपने सामने रख प्रोक्षणी पात्रस्य पवित्र अमुकदेव शर्माह मे। पोछे आचार्य फिरसे प्रश्न करें, को उठावे और उससे कुछ धो ले कर उस घोको देखे। 'ओं कस्य ब्रह्मचार्यसि' माणवक 'ओं भवतः उत्तर दे। पोछे प्रोक्षणोपानस्थित जल और उपयमन सभी कुशों. इसके बाद गुरु निम्नलिखित मन्त्रका पाठ करें। 'ओं | को वायें हाथ पकड़ पूर्वासादित तीन समिध् उत्थित हो इन्द्रस्य ब्रह्मचार्यस्याग्निराचार्गस्तवाहमाचार्यस्तव श्री अग्निमें आहुति देनी होगी। अब जमीन पर बैठ प्रोक्षणी अमुकदेवशर्मन् । अथ माणवकं भृतेभ्यः परिददाति | पानस्थित पवित्र और जलको उठावे तथा ईसान कोण- गुरुः 'ओं प्रजापतयेत्वा परिददामि, देवाय त्वा सवित्ते | से ले कर दक्षिणावर्त्तमें आज्यको पयुक्षण करें। इसके परिददामि, उद्भय स्त्वोषधीम्यः परिददामि, द्यावा- वाद उस पवित्रको प्रणोतापानमें रख कर प्रोक्षणी पात्र- पृथ्वीभ्यां त्वा परिददामि, विश्वेभ्यस्त्वादेवेभ्यः परि संस्रव करनेके लिये अग्निसे उत्तर रखे। ददामि सर्वेभ्यस्त्वा भूतभ्यः परिददाम्यरिष्ट्यै।" ____अनन्तर यजमान अन्वारम्भ करनेके वाद सुवको (पारस्करगृ हय २२२२२६) | उठावे और धृतसे आधराज्यभाग होम करे। इसके बाद माणधक अम्निका प्रदक्षिण कर गुरूके होम इस प्रकार होगा-"ओं प्रजापतये खाहा; इदं उत्तर बैठे। पीछे गुरु ब्रह्माको यथाशक्ति वरण करें। प्रजापतये। ओं इन्द्राय स्वाहा, इदमिन्द्राय, ओं अग्नेये अनन्तर अग्निके दक्षिण प्रागनकुशके साथ ब्रह्मासन साहा, इदमग्नये । ओं सोमाय खाहा, इदं सोमाय ।" विडा उस पर 'ब्रह्मनिहोपविश्यता' कह कर ब्रह्माकी इस प्रकार होम करके सु व संलग्न हविशेषको प्रोक्षणो. स्थापना करे । पीछे अग्निके उत्तर प्रणीता प्रणयन करके पात्रमें रखना होगा। सकृत् अच्छिन्न कुश द्वारा ईशान कोणसे ले कर दक्षिणा. इसके बाद समुद्भव नामक अग्निस्थापन करके उसकी वर्तमे मग्निपरिस्तरण करे। पीछे उस अग्निके उत्तर पूजा करनी होगी । पोछे महाध्याहृतिहास, 'मों भूः प्रयोजनीय सभी द्रष्य रखें। वे सव द्रव्य ये हैं--पवित्र स्वाहा, इदं भुः । ओं भुवः स्वाहा, इदं भुवः इद् सूर्याय । छेदन तीन, पवित्र दो, प्रोक्षणी पोल, आज्यस्थालो, चरु- अनन्तर विधुनामक अग्निको स्थापना करके संकल्प स्थाली, समाजन कुश६, उपयमन कुश १३ समिध ३ करना होगा। 'ओं तन्नो अग्ने' इत्यादि मन्त्रसे प्रायश्चित्त स्व, आज्य, ब्रह्मदक्षिणा और दूसरे ३ समिध। होम करना होता है। पोछे प्राजापत्य होम, जैसे-'ओं पोछे उस पवितले एक पवित्र ले कर पवित्रच्छेदन | प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये। ओं अग्नये स्विष्टकते कुश द्वारा उसे काटे और प्रोक्षणीपात्रमे रख दें। पीछे स्वाहा इदमग्नये स्विष्टकृते। इसके बाद संस्रव घ्राण उसमें प्रणोता जल रख कर बाएं हाथके तले प्रोक्षणी पाल गौर आचमन करके दक्षिणा देनी होती है। रखे, दाहिने हाथसे वह जल ले कर कुछ प्रोक्षणी जलके तदनन्तर गुरु बटुकसे पूछे, ओं ब्रह्मचार्यसि । पीछे साथ मिलावे और अन्य सभी पात्रोंको प्रोक्षण करे। बटुक उत्तर दे 'ओं ब्रह्मचार्गस्मि । फिर गुरु कहें, 'मों इसके बाद प्रणीताके दक्षिण प्रोक्षणी पातको रखना होगा अयोशानं कर्ग कुरु, माणवक वोले, 'भो न स्वयामि । 'ओं फिर आज्यस्थलोको अपने सामने ला कर पूर्वासादित | कर्म कुरु' गुरुके इस वाक्य पर माणवक "ओं करवाणि" आज्य उसमें निरूपण करे और मग्निमें उसे ले जा कर ऐसा उत्तर दे । 'ओ मा दिवा स्वापसी: ओं न स्वपामि, पर्णग्नि करनेके लिये जलती हुई अग्नि उठावे। आज्य 'ओं वाक्यं यच्छ, ओं यच्छामि ओं समिधमाधेहि, ओं स्थालोमें इसे तोन वार परिभ्रमण करा कर होमाग्निमें | आधामि । आचार्गके इन सब प्रश्नोंका बटुक इस फैकदे। प्रकार उत्तर दे।