पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/४८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४५६ यदुनन्दन--यदुराज उपहास किया। अन्तमें जब उन्होंने उन्हें भक्त समझा | दोस ठाकुरके शिष्य एक यदुनन्दन चक्रवर्ती थे। इन पर तब हरिदाससे एक प्रश्न पूछा, (१) ईश्वर निराकार है | उक्त गदाधरदासको स्थापित गौरागमूर्तिकी सेवाका था साकार ? (२) सृष्टिमें विषमता होनेका क्या | भार सौंप गया था। ये भक्त-मण्डलीमे सुपरिचित तथा कारण है? भकिरत्नाकरमें पदके रचयिता कह कर परिचित है। कहना फजूल होगा कि हरिदासने इसका उचित उत्तर नित्यानन्द भक्त-इस गौरदास यदुनन्दनके बन्धु दिया था। और समसामयिक थे। इस प्रकार वातत्रोतके समय श्रीभवतप्रभु वहां उप- र्थ-वासुदेव दत्तके शिष्य और रघुनाथ दासके स्थित हुए। तर्कचूडामणिका गर्व चूर हो गया और वे गुरु । यदुनन्दन देखो। अति प्रभुसे दीक्षित हुए। ___५म-मालिहाटीके रहनेवाले वैद्यकुलमें उत्पन्न प्रसिद्ध रघुनाथदास गोखामी इन्हींके शिष्य थे। प्रसिद्ध पदकर्ता यदुनन्दनदास। कण्टकनगरसे उत्तर रघुनाथदास देखो। उन्होंने अपनी वनाई विलापकुसुमा भागीरथी नदीके पश्चिमी किनारे पर अवस्थित मालि- अलीमें लिखा है- हाटी गांवमे इनका जन्म हुआ था। "प्रभुरपि यदुनन्दना य एषः, यदुनन्दन जातियोंमे अम्वष्ठ होने पर भी वैष्णव- प्रिययदुनन्दन उन्नतप्रभावः। समाजमें यदुनन्दन दास ठाकुर नामसे मशहूर थे। ये स्वयमतुल्लकृपामृताभिषेक । हेमलता ठाकुरानीके शिष्य थे। हेमलता ठाकुरानो चुधाई- मम कृतवांस्तमह गुरु प्रपद्य ॥" । पाड़ाके निवासी लक्ष्मीनिवासाचार्यकी दुहिता श्रीचैतन्य-चरितामृतमें लिखा है,-यदुनन्दन वासु-। और मन्त्र शिष्या थो। १५१६ शकान्दमें उन्होंने कर्णा- देवके विशेष अनुगत थे। वासुदेवदत्त देखो। नन्द रचना किया था। यदुनन्दन-मुहुर्तमञ्जरीके प्रणेता। यदुनाथ (स० पु.) यदुनां नाथः। यदुवंशके खामी, यदुनन्दनदास-चैतन्यभागवत, चैतन्यचरितामृत, भक्ति- जति श्रीकृष्ण । रत्ना.८, और नरोत्तमविलासमें पांच यदुनन्दनका परि- यदुनाथ-मागम-कल्पवल्लो नामक तन्त्रके रचयिता । चय मिलता है; क्रमशः उनका संक्षिप्त विवरण नीचे यदुनाथमिश्र-निर्णयदीपिका नामक संस्कृत ग्रन्थ रच. लिखते हैं,- यिता । इन्होने १८४३ ईमे उक्त प्रन्थ समाप्त किया था। १म-श्रीगौराङ्गके चरित-लेखक गदाधर पण्डितके यदुपति ( स० पु०) यदूनां पतिः। श्रीकृष्ण । शिष्य यदुनन्दनाचार्य । इनका वासस्थान कण्टक नगर "यदुपते क्व गता मथुरापुरी रघुपतेः क्व गतोतरकोशला । था। चैतन्यचारितामृतमें ये अद्वतप्रभुकी शाखा कह कर इति विचिन्त्य कुरुष्व मनः स्थिर न सदिदं जगदित्यवधारय ।" (रूपसनातनगो.) परिचित हैं। उसमें लिखा है, "श्रीयदुनन्दनाचार्य अद्वैतकी शाखा" इनको कौलिक उपाधि 'चक्रवती यदुपति-वेदेशतीर्थंके शिष्य । इन्होंने जयतीर्थ कृत तत्त्व- थी। बाद उसके पण्डिताई में 'भाचार्य की ख्याति हुई। विवेकटीका, तत्त्वसख्यानविवरण और न्यायसुधा नामक तीन प्रन्धोंकी टिप्पनी वनाई थी। अलावा इसके उनकी इनकी स्त्रीका नाम श्रीमती लक्ष्मी था। इनकी श्रीमती और नारायणी नामकी दो कन्याए थी। इन दोनों लिखी भागवतपुराणटोका और वल्लभाचार्य कृत मीमांसासूत्रभाष्यकी टीका मिलती है। कन्याओंका विवाह वीरचन्द्रसे हुआ था। ये यदुनन्दन यदुभरत-प्रश्नावली नामक वेदान्त ग्रन्थके रचयिता। एक सुकवि थे। श्य-कामटपुर-निवासी यदुनन्दनाचर्य। इनके यदुभूप (स० पु०) श्रीकृष्ण । यदुराई (हिं० पु०) श्रीकृष्ण । वारेमें और कुछ नहीं है। ३य-कण्टक नगरमें नित्यानन्दका पार्षद । गदाधर यदुराज (सपु०) यदुकुलके राजा, श्रीकृष्ण ।