पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५०१

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४८ यन्त्र उक्त दोषोंका ध्यान रख यन्त्रादि निर्माण करा कर प्रयोग, रख कर आगसे पकाते हैं। इसीका नाम स्वेदनयन्त्र करें। दृश्याहय कांटेका निकालना। विद्याधरयन्त्र-एक थालीमें पारद रख कर उसके शरीरमें धसा हुआ दृश्य शल्य अर्थात् जो कांटे ऊपर एक और थाली ऊद्ध्व मुखी रखनी होगी। इसके शरीरमें गड़ जान पर भी दिखाई देते हैं, वे सिंह मुंह- बाद गिली नन्न मिट्टीसे उक्त दोनों थालियोंके जोड़को के यत्रोंसे और न दिखाई पड़नेवाला कांटा कङ्कमुखादि | बन्द कर देनी होगी। इसके बाद ऊपरको थालीमें जल यन्त्र द्वारा बाहर करना चाहिये। इस कांटेको निका- भर कर चूल्हे पर रख कर उसके नीचे आग जला कर लनेमें धीरे धीरे शास्त्र मतसे काम लेना चाहिये । पांच पहर तक सिद्ध करना होता है। पीछे ठंडा होने सब तरहके यन्त्रोंमें कङ्कमुख यन्त्र ही विशेष उपयोगी पर इस यन्त्रसे रस निकाला जाता है, इसीका नाम होता है। क्योंकि, यह यन्त्र शरीरके मर्म और सन्धि- विद्याधरयन्त्र है। स्थानोंमें घुस सकता है और सहज ही बाहर भी निकाल भूधरयन्त्र-भूषामें पारद रख कर इसे वालुकासे लिया जा सकता है। इसके साहाय्यसे देहमें घुसे कांटे ढांक देना होता है। इसके बाद उसके चारों ओर कंडे भी मजबूतीसे पकड़ कर खो'च लिये जा सकते हैं। (सूखा गोवर ) एकत्र कर उसमें आग लगा कर जला दूसरे सिंहमुखवाले यन्त्रोंके मुंह मोटे हैं, इसीलिये | देना चाहिये। शरीरके वीच सहज ही घस नहीं सकते और इनके डमरुयन्त्र-भूषा यन्त्रके साथ इसका प्रभेद इतना निकालने में भी असुविधा होती है। ही है, कि इस थालीके मुखौंको बन्द करना आवश्यक ( मुश्रुत यन्त्र० १२ अ०) है। (भावप्र० मध्य०) यन्त्र द्वारा ही यह सव कार्य सम्यन्न होते हैं। ज्योतिषिक यन्त्र। इसके सिवा औषधपाक करनेके लिये भी कई यन्त्रका बहुत प्राचीन कालसे ज्योतिषिक तत्व निर्णयार्थ उल्लख दिखाई देता है। संक्षेपमें हम इसका भी विव यन्त्रोंका आविष्कार हुआ है। ये यन्त्र लकड़ी अथवा रण नीचे देते हैं। धातुओंके बने होते है। इनके द्वारा हम लोग पदार्म- वालुकायन्त्र-आधा हाथ गहरे एक पात्रमें एक की प्रक्रियाविशेषका हैं। स्थिति और कार्यादि 'औपधपूर्ण काचकी प्याली रख कर इसके गले तक वालू यथायथ रूपसे जान सकते हैं। वेज्ञानिक तत्वावलो. भर दी जाती है। इसके बाद अग्नि जला कर इस प्याली चनासे उद्भावित शिल्पनैपुण्यपूर्ण इस बनावटी उपाय की औषधको पाक किया जाता है। इसीयन्त्रको वैद्य | द्वारा वस्तुविशेषका कार्याफल प्रत्यक्ष प्रमाणसिद्ध लोग बालकायन्त्र कहते हैं। किया जा सकता है। इससे ही इसको यन्त्र के नामसे दोलायन्त्र-पारद संयुक्त औषध एक त्रिफल भोज- पुकारा गया है। पनसे ढांक कर उसको एक पोटली तय्यार रखते हैं। चिकित्साशास्त्र के ध्यवच्छेद यन्त्र ( Instrument पीछे डोरेसे यह पोटली एक काठके टुकड़े के साथ मज-1 for Surgical operation ), वफय' आदि रासाय- वृतीसे वांध देते हैं। इसके बाद खटाईसे पूर्ण पान पर निक प्राक्रयाके उपकरण ( Chemical apparatus) इस काठके टुकड़े को इस तरहसे लटका देते हैं जिससे ज्योतिषिक यन्त्र (astronomical Instrument), प्रन्यादि यह डोरसे बंधा काठका टुकड़ा इस पात्रमे ही झूलता प्रकाशनयन्त्र (Printing press and machinary) रहे। इसके बाद इस पात्रके नीचे आग जला कर पकाते आटेकी कल (Flour mill) और तेल कल ( Oil-man- factory ) या अन्य यंत्रोंका अभाव नहीं है। शेषोक्त हैं। ऐसे यन्त्रको ही दोलायन्त्र कहते हैं। स्थानोंके यलोंमें एञ्जिन ही प्रधानतम है। बाकी असंख्य स्वेदनयन्त्र--एक थाली जल भरकर यन्त्र द्वारा बन्द कर देना होता है। पीछे इस यन्त्रके ऊपर स्वेद औषध यन्त्र या कल कारखानोंको आलोचना करना हमारा