पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५५८

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यवन वीरताका परिचायक है। उसने बहुत दिनों तक राजत्व | वह वाहिक और भारत-सीमान्त पर राजत्व करता था। किया था, किंतु अन्तमें उसका आरिया द्रागियाना, आरा उसका और उसके पीछले यवनराज पन्तलेनके (१२० कोसिया, मर्गियाना और वाह लिक राज्यके कुछ अश | वर्ष ईसासे पूर्व) भारतीय सिक्के में केवल ब्राह्मलिपि ही पर पारदके राजाको अधिकार हो गया था। युक्रेटिस- दिखाई देती है। किन्तु अगथोक्लिसके कई तांवेके सिक्के ने ईसासे १८१ वर्ष पूर्ण राज्याधिकार पाया। दूसरे खरोष्ट्रीवर्णमालामें खुदे हुए हैं। अगथोक्लिसके सिक्कमें मतसे ईसासे १६५ वर्ष पूर्व ही उसके प्रथम वालिक एक ओर खरोष्ठो अश्वरमें 'हितजससे' और दूसरी ओर सिंहासन-लाभका कल्पना की जाती है। 'अकथूके यस' नाम लिखा है। पन्तलेनके सिमें ___ हालमें जो यवन सिक्के मिले हैं, उनमें राजा युक- एक ओर भारतीय नर्तकी या वेश्याका चित्र, दूसरी टिस १४७ सलोकी संवत्के अर्थात् ईसासे १६५ वर्ष और राज नोपन्तलेनस नाम लिखा है। राजा पन्तलेनने पहलेके मोहराति सिक्का हो वाहलिकराजके सिक्कोंमें बहुत थोड़े दिनों तक राज्य किया था। उससे ही यवन- ऐतिहासिकोंके लिये विशेष आदरकी चीज है। युक्रटिस- राज मिलिन्दने अाथोक्लिसका राज्य अधिकार किया ने वाहिक, सिस्तान, कावुल और पञ्जावके सिन्धु तट तक था। राज्य विस्तार किया था। ___ 'भकथूक या' नाम्नी एक यवनो रानीके चित्रके कई पारदराज मित्रदत्त के साथ युक्रेटिसको वाह लिक- सिक्के मिलते है। इसका पता नहीं चलता, कि इस क्षत्रप राज्यके पश्चिमांशमें छोड़ देना होगा। राजरानीने कब और कहां राजस्व किया था। इसके युटिसके और हेलिओक्लिसके राजत्वकालमें ललि- सिक्केमें भी खरोप्टो ही अक्षर खुदे हुए हैं। इस पर यास नामके एक योनराजका (१४७ वर्ष ईसासे पून) उल्लेख “महरजस मिदतस अकथूक यस" नाम लिखा है। प्रत. पाया जाता है। इसने हेलिभोलिस अथवा उनके वश तत्त्वविदोंने ऐसा नाम देख कर उसे अपेक्षाकृत पिछले धरको पराजित कर सम्भवतः अनिकेतस् नाम धारण| समयकी रानो वताते हैं। इसने भी बहुत कम दिनों किया होगा। इसके सिक्के में "महरजस अपतिहतस तक ही राजत्व किया है। बहुतेरोंका तो यह मत लसिकस" नाम मिलता है। इस राजाके दाद ( १३५ / है, कि अगथोक्लिसके साथ इस रानीका सम्वन्ध था। वर्ष ईसासे पूर्व ) अमिन्तस नामका एक योन राजा अन्तिमखके बाद उसके सिंहासन पर पिलक्षीनस वैठे। राज्य करता था। इसके सिक्क में 'महरजस जयध उसने १३० वर्ण ईसाके पूर्वले १२५ वर्ष ईसाके पूर्ण तक रस अमितखस' नाम खुदा हुआ है। राजत्व किया था। उसके बनाये सिक्केमें "मह- चाह लिकराज अमिन्तसके पहले अन्तिमख (१४० वर्ष | रजस अपतिहतस पिलखीनस" नाम लिखा हुआ है। ईसासे पूर्व) राजत्वका उल्लेख है। उसके सिक्क में देव ____ आरोकोसिया और पश्चिम-कावुलका कुछ हिस्सा दत्त और यूथिदेमस नाम खुदा हुआ है। किसी किसी ले कर यवनराज अन्तिअलकिदिसने, एक छोटा नगर सिक में जलीय युद्धका चित्र अङ्कित है । प्रनतत्त्वविदों बसाया था। उसके सिक्के जुपितरके हाथ स्थापित का अनुमान है, कि उसने सम्भवतः सिन्धुतट पर अधवा जयलक्ष्मीके गलेमें हस्तीकी सूडसे माला पहनाई दूसरो किसी बड़ी नदीके किनारे युद्धकर शत्रुपक्षको गई है। यह देख कर अध्यापक लासेन आदि ऐति- पराजित किया। उसके सिक्के पर "महरजस जयधरस | हासिकोंने अनुमान किया है, कि यह चित्र उसके जय- अन्तिमखस" खुदा है। अर्जनका स्मृतिचिह्न है। उसने सम्भवतः लिसियस ___ अन्तिमखके समकाल ही ईसासे १३५ वर्ष पूर्व या उसके वंशजोंको रणमें पराजित कर अपना राज्य भगथोक्लिस नामक दूसरे एक यवन राजाका नाम माया फैलाया होगा। उसके सिक्केमें-महरजस जयधरस है। पञ्जावके पश्चिम और कावुलके समीप पाया | तिअलिकितस" नाम सुदा हुआ है। गया वालिक सांचेमें ढले सिक्के से प्रमाणित होता है, यवनराज मिलिन्द सम्भवतः ईसाले पूर्व १४४वे वर्ष