पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५५९

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५५६ यवन वाहिकसिंहासन पर आसीन थे। अपने वाहुवलसे । यह वाहिक सांचे में ढाली गई है। भारतीय राज्यमें ओ वाहिकराज्यको उसने पक्षाव तक बढ़ा लिया था। यह सिक्का प्रचलित था, उसमें दोनों लिपियोंका समावेश है। हिपानिस शतद्वनदी पार कर पूर्वकी ओर ईसामास हेलियलस, अयलदत्तल, श्ला और रा अन्तिमलकिइस (यमुना) तट तक अग्रसर हुआ था। इस समय युद्धसे | एटिक और पारसी दोनों तरहके सिक्के जिस परिमाण- हो या कौशलसे उसने पट्ठलन (पत्तन ) पर अधिकार | से ढाले गये थे, उनके वंशधरोंने उस परिमाणसे नहीं कर लिया था। पेरिप्लासके ग्रन्थकर्त्ताने लिखा है, कि । ढाला, वरं उन्होंने पारसी सिक्कोंके परिमाणका अनुसरण उसके समयमें अर्थात् ई० सन्की पहली शताब्दीके | किया। अन्तमें गुजरात भड़ोंच नगरमें मिलिन्द और अपलोदतः । हेलियक्लसके बाद १२० से २० वर्ष ईसासे पहले की सिक्का प्रचलित था । आरियान, प्लुताकै, वेयार और ) तक शताव्दीके भीतर उस वंशके प्रायः २० यवनराजा- भालेन आदि ऐतिहासिकोंने उसको भारत और बाहिक- ओंने राज्य किया था। इन २० यवनों के सिके मिले पति लिखा है। इस समय शकजातिका अभ्युदय हुआ। हैं। इसके बाद कुषणने आ कर भारत पर अधिकार इससे राजा मिलिन्द अपने राज्यविस्तारके लिये उत्तर किया। भारतवर्ष देखो। हेलियतसके बाद जिन यवन- की ओर न बढ़ कर भारतको ओर अग्रसर हुआ। राजों ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया था, उनमें हम प्लुतर्कने लिखा है, कि राजा मिलिन्द ऐसा प्रजावत्सल मिलिन्दको प्रवल प्रतापके साथ राज्य करते देखते हैं। था, कि उसको मृत्युके बाद उसके चिता भस्मके लिये इसके बाद ईसासे ११० वर्ष पूर्व अपलदत्तस राजा कोई आठ विभिन्न नगरों में युद्ध उन गया। अन्तमें उन । हुआ। इसके सिक्के की एक पीठ पर हाथी और दूसरी सोंने उसकी चिताका भस्म ले अपने अपने नगरमें | पीठ पर सांड़की मूर्ति अङ्कित है। यह देख कर मनु- उनके स्मृति-स्तूप स्थापित किये। ईस्वीसन्की २री मान किया जाता है, कि वह पश्चिम-भारतमें राजत शताब्दी में वाहिक और परोपनिसस नगरों में इस तरहके करता था। सोतार और फिलेपेतार उसकी दो उपा- स्मृतिचिह विद्यमान थे। उसके सिक्केमें "महरजस, धियां थों। वह सलोकीवंशीय राजा इवें अन्तिमोकके तदरस मिनदस" या "मिनन्दस" नाम लिखा है। समसामयिक थे। उसके सिक्के पर "महरजस तदरस ईसासे १२५-१२० वर्ष पहले तक अकिवियास नामके । अपलदतस' नाम खुदा हुआ है। पक राजा यवन-नरपतिने मिलिन्दके सामन्तरूपसे राज इसके बाद ईसाके एक शताब्दी पूर्व दिमोमिदस कार्य चलाया था। इसका दूसरा नाम निकेफोरस' नामके एक और यवन राजाका उल्लेख पाया जाता है। इस राजाके प्रचलित सिक्केमें 'महरजस धमिकस जय इसके सिक्क में भी एक ओर सांडका चिह्न है और दूसरी घरस अरवविरस' नाम खुदा है। ऐतिहासिक उसको ओर "महरजस तदरस यमेदस" नाम अङ्कित है। यह आलियास, आर्केरियस आदि नाम बताते हैं। सोतारको उपाधिसे विभूषित हुआ था। इससे ___वाहिकराज हेलियक्लसने १६० वर्ष ईसाके पूर्वासे १२० वर्ष पहले तक राज्यशासन किया था। इसके बाद हरमयस नामके एक यवनराजाने (ईसासे ८६ वाद यवनराजशक्ति वाहिकसे परोपनिससके दक्षिण भू- वर्ष पहले ) राजत्व किया था। प्रनतत्वविदोंने इसको भागमें स्थानान्तरित हो गई। उसके पूर्वावत्ती योन अन्तिम यवनराजा कह कर उल्लेख किया है। क्योंकि राजने वाहिकराज्य और भारतमें राजत्व किया था। इसके बाद किसी प्रतापवान् यवनराजाका नाम पाया नहीं उनके सिक्कोंमें यूनानके पौराणिक चित्र अङ्कित हैं और जाता। सम्भवतः जिस समय असकिद द्वितीय मित्र- दत्त आर्मेनिया, सिरिया और रोम आदि राज्यके साथ

  • पुराविद् कनिङ्गहाम Isamos'नदीको फतेपुर और साथ रणविग्रह करने में उन्मत्त हुआ था, उस समय

कानपुरके मध्यवर्ती ईशान नदीका ही अनुमान करते हैं। (सासे ६० वर्ष पूर्व) शक जाति अपनेको निरापद समझ