पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५७६

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यशोवन्तराव ले कर उन दोनोंको रोका । दुद्धर्व सेनापतियोंके हाथले । २५वीं अपटूचरको दोनों दलमें विपुल संग्राम छिड़ गया। जागीरदारका एक भी योद्धा रणक्षेत्रसे लौटने न पाया। दोनों दलकी सैन्यसंख्या समान थी। यशोवन्तके इधर अङ्गरेजराजके साथ महाराष्ट्रनेता पेशवाका संधिः अधीन १४ वटेलियन पदातिक दल, ५ हजार अनिय- प्रस्ताव चल रहा था। अतएव सिन्द पति और रघुजी | मित सेना और ५ हजार घुड़सवार थे। भोसलेको उसी ओर ध्यान देना पड़ा था । इस कारण दोनों दलने रणक्षेत्रमें उतर कर तो दागी । युद्ध में पेशवाने होलकरके विरुद्ध युद्धघोषणा न की। लक्षा- पराजयको सम्भावना देख कर यशोवन्त असीम साहस- दादाके मरने पर अम्बाजी इडिलीके द्वारा वाइयों के साथ केवल अपनो घुड़सवार सेना ले कर रणक्षेत्र में कूद पड़े। कुल इन्तजाम ठीक करा कर उन्होंने सदाशिव भाऊ क्षणभरमैं सिन्द सेना हार खा कर भागो। रणजयी भास्करको यशोवन्तराव होलकरके विरुद्ध भेजा। यशो- उन्मत्त सेनादलने नगरको लूटना चाहा। यशोवन्तने । वन्तराव पहले ताप्तीके दाहिने किनारे युद्ध करनेको | मना करने पर भी लुण्ठनप्रिय सेनादल लाभका परि- इच्छासे अग्रसर हुए। किन्तु कुछ समय बाद ही इन्होंने | त्याग न सका। वे लोग जलप्रवाहकी तरह धोरे धोरे पूनाकी ससैन्य यात्रा कर दी। पेशवा इनके आनेकी नगरकी ओर बढ़ने लगे। यशविन्तने अपनी वाहिनाको खबर सुन कर डर गये और इन्हें रोकने के लिये आगे इस दुष्कर्मसे रोकनेके लिये उनके विरुद्ध हथियार भी वढ़े । किन्तु वचावका उपाय न देख वे मोठी मोठी उठाया था। वातोंसे इन्हें प्रसन्न करने लगे और यह भी बोले, कि पूनामे प्रवेश कर दूसरे दिन सबेरे उन्होंने अङ्रेज जहां तक हो सकेगा आपका अभिलाप पूर्ण करनेकी मैं रेसिडेण्ट कर्नल क्लोजका चुला भेजा । पोछे पेशवा और चेष्टा करूगा । यशोवन्तने प्रसन्न हो कर कहला भेजा, सिन्देरोजके साथ मेल कर लेनेको वात छिड़ी। मि० जब मैंने अपने मरे भाई विठ्ठोजीको फिर न पाया, तव | फ्लोज इसका फैसला करेंगे, यही स्थिर हुआ । आखिर मेरी प्रार्थना है, कि मेरे भतीजे खण्डेरावको मुक्तिदान तथा यशोवन्तने नगर रक्षाका सुचन्दोवस्त करके पेशवाके हमारे वंशके अधिकारमुक्त प्रदेशोंको लौटा दें। सदाशिव | अधीनस्थ व्यक्तियोंको मीठी मीठी वातोंसे प्रसन्न करने भाऊ भास्करने जव सुना, कि वाजीराव यशोवन्तके | लगे । उन्होंने पेशवाको पूना आने और राज्यभार ग्रहण प्रस्तावको स्वीकार कर लेंगे, तव वड़ो तेजोसे वहां आये करनेके लिये विशेष अनुरोध किया था, पर सन्दिग्ध और खण्डेरावको जो उसके आनेके पहले कारामुक्त कर पेशवा प्राणके भयसे वसईकी ओर भाग गये। दिया गया था, फिरसे आशीरगढ़ दुर्गमे भेज __इसके बाद होलकरने मध्यस्थताका बहाना दिखा दिया। पूनावासोको तंग करके उनसे रुपये मुड़ने लगे। यहां यशोवन्तराब अपनेको सदाशिव भाऊसे कमजोर तक, कि पूनावासी प्रत्येक धनवान व्यक्तिका यथावर्वस्व देख कर युद्ध में प्रवृत्त न हुए। वे अमदनगरको पार कर लूटा जाने लगा। वहुतोंने तो अत्याचारियोंको यन्त्रणा. जेजुर आये और अपने सेनापति फतेसिंहसे मिले। को सह्य न कर प्राण दे दिये। यशोवन्तके सहयोगी इसके बाद इन्होंने राजवाड़ी गिरिसकटको पार कर पूना अमृतराव इस कार्यको विशेष पोपकता को थी। यशा- के निकटवर्ती स्थानमें छावनी डाली। इधर सदाशिव वन्तरावने जनसाधारणके निकट अपनो निरपेक्षता भाऊ भास्कर होलकर सैन्यका परित्याग कर जौलना दिखानेके लिये वित्तपन्त और वैजनाथ पन्त नामक दो और भीरको अतिक्रम कर बड़ी तेजोसे पूना आये और अत्याचारीको कैद किया। पेशवा सैन्यके साथ मिल गये। अनन्तर अलीवेला ऐसी अवस्थामें पूनानगरमें रह कर जव दोनों पक्ष- घाटीको पार कर मिलित सेनादल ले कर सदाशिव युद्ध में कोई मेल मिलाप न हुआ, तव १८०२ ई०की २०वीं के लिये उपस्थित हुए। पहले कुछ दिन तो सन्धिका नवस्वरको उन्होंने स्वयं वसई यात्रा कर दी । कर्नल प्रस्ताव चलता रहा, पर कोई फल न निकला। आखिर क्लोज पहले ही वहां पहुंच गये थे। १८०३ ई०में वसई- Vol. XVIII, 144