पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मुद्रातत्त्व ( भारतीय) ऐतिहासिक युगसे जो सव मुद्रा अभी चल रही है। पशुपति और वैश्रवणका नाम भी किसी किसीमें देखा उनमेंसे जो मुद्रा कनिकराजको मुद्राके ढंग पर बनी थी, जाता है। उसीका बहुत दिनों तक प्रचार था। इस प्रकारकी मुद्रा गधिया पैसा। पर एक ओर राजा और दूसरी ओर एक देवीको मूर्ति | मेवाड़, मारवाड़, दक्षिण पश्चिम, राजपूताना, मालव अंकित है। और गुजरातसे कुछ स्थूल प्राचीन रौप्यखण्ड पाया जाता राजतरङ्गिणीसे जाना जाता है, कि कनिष्कने है जिसे 'गधिया पैसा' कहते हैं। यह पैसा शासनीय • काश्मीरमें भी राजत्व किया था। जब तक काश्मीरमें मुद्राकी तरह होने पर भी इसमें शिल्पनैपुण्यका ययेष्ट हिन्दू-राज्य रहा तब तक कनिष्क मुद्राकी जैसी मुद्राका अभाव देखा जाता है। ही विशेष प्रचार था। उसकी गढ़न एक सी होने पर भारतीय प्राचीन मुद्राशिल्प । भी काश्मीरके नागवंशीय कायस्थराजाओंके समयसे ___ भारतीय प्राचीन मुद्रा यद्यपि शिल्पनैपुण्य और इस मुद्राशिल्पकी अवनतिका सूत्रपात हुआ। इस प्रकार | सौन्दर्य में प्रोसका मुकावला नहीं करती फिर भी भार• चित्राङ्कित सोने और तावेका दीनार मिलता है। वर्णः | तीय मुद्राशिलिएगण उस समय जैसी कारीगरी दिखा दीनारका वेशी भाग रौप्यमिश्रित है। राजतरङ्गिणीमें गये हैं वह प्रशंसनीय है। क्या पौराणिक, क्या लिखा है, कि काश्मीरपति जयादित्यने एक तांबेकी खान ऐतिहासिक और क्या सामाजिक, सभी आचार-व्यव- निकाली थी और EE करोड़ दीनार चलाया था। उनके | हार मूलक दृश्य भारतीय प्राचीन मुद्राखण्ड में बड़े सभा-कवि भट्ट उद्भट प्रतिदिन उनसे लाख दीनार पुर कौशलसे दिखाये गये हैं। वर्तमान कालमें प्रचलित स्कार पाते थे * किदार कुशनके वाद काश्मीरमें हूणा भारतीय अथवा विदेशोय किसी भी मुद्रामें उसका धिकार विस्तृत होने पर भी नागवंशीय कायस्थराजाओं निदर्शन नहीं है। औदुम्बर राजाओंकी दो हजार वर्षकी की मुद्रामें किदार प्रभाव हो दिखाई देता है। पहले पुरानी मुद्रामें द्वीपिचर्माम्बर और ताण्डवनृत्यकारी लिख आये हैं, कि काश्मीरपति हर्षदेवने (१०६० ई०), शिवका जो विभिन्न प्रकारका सुन्दर चित्र अडित हुआ दाक्षिणात्यकी कोंगू मुद्राके अनुकरण पर अपनी मुद्रा है वह अतुलनीय है। दो हजार वर्षसे भी ऊपरकी पुरानी चलाई थी। यौधेयगणकी मुद्रामें पड़ाननकी जो मूर्ति चित्रित है, नेपाल। उसमें भारतीय शिल्पी असाधारण नैपुण्य दिखा गये हैं। नेपालसे यौधेय-मुद्राके आदर्श पर वनो बहुत पुराने | उस समयको त्रिशूलाङ्कित मुद्रामें जो राजमुख अति जानकी मुद्रा पाई गई है। कोई कोई पाश्चात्य प्रत्ल- हुआ है वह अत्यन्त सुस्पष्ट और सुन्दर है । गुप्त सम्राटों- तत्त्वविद् इन्हें कुशनका अनुकरण वतलाते हैं। किन्तु की किसी किलो मुद्राका शिल्पनैपुण्य ग्रीक मुद्राका . गढ़न देखनेसे मालूम पड़ेगा कि यह कुशन कालके बहुत मुकावला करता है। समुद्रगुप्तको 'अश्वमेघ मुद्रा' में पहलेकी है । उसीके अनुकरण पर ४थो सदोके आरम्भमें अश्वमेधका अश्वचित्र है। उस चित्रसे मालूम होता है, यहां लिच्छवि मुद्रा प्रचलित हुई। ६ठी संदी तक इसी कि गुप्तसम्राटने अश्वमेध यज्ञ किया था। भारतीय प्रकारकी मुद्रा जारी थी। किसीमें गुप्ताक्षरमें मागङ्क और वौद्धराजाओंको मुद्रामें चैत्य, वोधिद म, त्रिरत्न और किसीमें 'गुणाङ्क' नाम जो अङ्कित है उससे मालूम होता धर्मचक देखनेमें आता है। जैन राजमुद्रा में खस्तिक है, कि मानदेववर्माका नाम संक्षेपमें मानाङ्क' और गुण- हस्तो, वृषभ आदि मूर्तियां बड़ी दक्षतासे अडित हुई हैं। कामदेवका 'गुणाङ्क खोदा गया था। लिच्छविराजवंश देखो' 'हिन्दूराजाओंकी मुद्रामें नन्दी, सिंह, गाय, बछड़ा, सफेद इन सब मुद्राओंके समकाल में नेपालके अधिष्ठात्री देवता हाथी, विष्णुचक्र, दौड़ता हुआ घोड़ा तथा नाना देख.. देवी और राजमूर्ति चित्रित हैं। मुसलमानी अमलसे . .* यह पुरस्कार ताम्रदीनार-सा ही प्रतीत होता है । . . भारतवर्षमें मुद्राशिल्पका अधःपतन हुआ। दिलो सामान