पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६४३

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'यति बङ्गालके आदि 'कालायदमन' लीलामें दान, मान,, समकालीन कलकत्ते महानगरीमें वदन अधिकारी, माथुर, अकरसंवाद, उद्दवसंवाद, सुबलसंवाद आदि| गोविन्दअधिकारी आदि मनुष्योंने यात्राका व्यवसाय पार्ट अभिनोत होते थे। इसमें खोल, करताल और बेहला चलाया था। वदन वृद्ध होने पर भी अपने हाथमें तथा कई सामान्य साज ही उनके उपकरण रहते थे। बेहला ले कृष्णप्रेमके गानोंको गा कर दर्शकोंका चित्त साजोंमें कृष्णको पोशाक और चूड़ा तथा यशोमती, | आकर्षित किया था । गोविन्दके गानोंने बङ्गालमें वृन्दासखी और गोपवालकोंके पहनने लायक एक रंगीन एक विमोहिनो शक्तिका विस्तार कर दिया था। कपड़े का घेरदार बनाया जाता था। उसमें पेशवाजकी ___कालीयदमन-यात्राके समयमें ही कलकत्ते और इस- तरह किनारे पर जरीका काम किया जाता था। उस के उत्तर और दक्षिण उपकण्ठद्वय शौखियान विद्यासुन्दर समयकी कृष्णयात्रामें गौरचन्द्रो पाठके बाद कृष्णका के गानका प्रादुर्भाव दिखाई देता है। सन् १८२२ ई में नाच और उसके बाद मुनि गोसाईका आगमन बराहनगरके रामजय मुखोपाध्यायके पुत्र ठाकुरदास होता था। मुखोपाध्यायने विद्यासुन्दरके दलको प्रतिष्ठा की थी। पश्चिम-बङ्गालकी तरह पूर्ण बङ्गालमें भी कृष्णयाला ठाकुरदास वावूके इस दलगठनके प्रायः २० वर्ष पहले का अभिनयक्षेत्र हो गया था। किन्तु पूर्व-वङ्गालके कलकत्ता-बहुबाजारके रहनेवाले धनी और सम्भ्रान्त यावावाले कवियों के विवरण संगृहीत न होनेसे उनके घशादि भद्रमण्डली द्वारा शौखके विद्यासुन्दरको यात्रा नाम यहां सन्निवेशित किये न जा सके। पिछले समयमें। अभिनीत हुई। यह दल वराहनगरको तरह प्रतिष्ठालाभ जिन्होंने यात्रा सम्प्रदायका नेतृत्व किया था, उनका नाम कर न सका। है:-कृष्णकमलगोखामो । यथार्थमें कृष्णकमल पूर्व - अव बङ्गालमें शौखिया और पेशेदार यानाका- बङ्गालके अधिवासी नहीं थे। कार्यवश ढाके जा कर ! रियोंका विशेष प्रादुर्भाव हुआ, तव चन्दननगर या अपने गुणोंसे उन्होंने वहां अपनी ख्याति कर ली थी। फरासखङ्गा ही इसका केन्द्र बन गया था। सुना जाता सन् १८१० ईमें कृष्णकमलका जन्म हुआ था। सात है, कि चन्दननगर या चुंचुड़ातिवासी एक सङ्गीतज्ञ व्यक्ति वर्षको अवस्थामें पिताके साथ वृन्दावन जा कर उन्होंने | इस समय नृत्यगोतादिकी आलोचनामें नियुक्त हो कर ध्याकरणकी शिक्षा पाई। वहां छः वर्ष तक रहे, फिर खेमटा ढङ्गका नाच उद्भावन किया था । मदन माष्टर अपनी जन्मभूमि भाजनघाट जो नदिया जिले में है आ कर आदि गुणो लोगोंने भी चन्दननगरके सङ्गोतालोचना नवद्वीपके संस्कृत टोलमें पढ़ने लगे। सन् १८३० ई०के | की सहयोगिता कर यात्राका गाना, सुर, लय, तान लगभग उन्होंने 'निमाईसंन्यास' नामक यात्राकी पुस्तक | आदि विषयों में बहुत उत्कर्षसाधन किया था। इसके बनाई और उसके अभिनयसे नदियाके अधिवासियोंको वाद पानीहाटोनिवासी मोहन मुखोपाध्याय नृत्य शिक्षा विमोहित किया। राजा राममोहनरायके द्वारा सम्पादित कर कलकत्तेकी नाचवालो महलमें शिक्षा देते थे। खेमटा संवादकौमुदी पढ़नेसे मालूम होता है, कि इनका प्रायः नाचमें मोहनवाबू अद्वितीय थे। सुरका लय, विपर्याय- १० वर्ष पहले सन् १८२१ ई०में कलकत्तेमें 'कलिराजा के साथ नये ढङ्गका 'खेमटानृत्य में मोहनबाबूने विशेष को यात्रा' नामक नाटक अभिनीत हो चुका था। । कृतित्व दिखाया था। इसके बाद केशेने इस नाचका इसके बाद सुकवि कृष्णकमलने ढाके जा कर 'स्वप्न- अभ्यास कर गोपाल उड़ियाकी विद्यासुन्दर-यात्रामे यह विलास', 'राइउन्मादिनी', 'विचित्रविलास', 'भरतमिलन', नाच दिखलाया । केशे गोपालदलमें मालिनका पाट 'सुबलसंवाद', 'नन्दविदाय' आदि गोताभिनय प्रकाशित करता था । केशकी तरह नृत्यगानमें पटु उस दलमे कर वहांको जनताको चित्तापहरण किया था। कोई मालिनका पार्ट करनेवाला नहीं था। कृष्णकमल गोखामी जिस समय पूर्ववङ्गको अपने किसी किसी आदमोके मुंहसे सुना जाता है, कि अभिनयोंसे लोगोंको विमोहित कर रहे थे, ठीक उसी | सुप्रसिद्ध विद्यासुन्दरका नाटक गानेवाला गोपालदास