पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६६०

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यारी ६५७ पारो:( फा० स्त्री० ) १ मैत्री, मित्रता । २ स्त्री और पुरुष- वत्तमानकालमें अधिकांश समय एक छोटा चंदोव डाल कर उनकी नीचे यारो गीत गाया जाता है। पहले 'का अनुचित प्रेम या सम्बन्ध । यारी-पांच यार या वधु-बांधव मिल कर उपदेश या जारीबाला खंजरोके साथ घूम घूम कर झूमर गाता है। ज्ञारीके दलमें दो एक बालक, मधुर गान तत्त्वज्ञानमूलक सङ्गीतालापको 'यारो' कहते हैं। अथवा धर्मतत्व 'जारों' वा घोषणा करनेका नाम भी जारी करनेवाले दो एक गायक, दो वादक और 'वयाति'-या है। यह बदेशका एक ग्राम्य सड़ीतामोद है। उत्तर- मूलगायक रहता है। इस दलके लोगोंकी वेशभूषामें घडामें इस गानका प्रचार नहीं देखा जाता। यशोर. | उतनो परिपाटी नहीं है। पर हां, दो एक जगह वर्तमान खुलना, पावना, फरीदपुर और नदिया जिले में कहीं रुचिके अनुसार किसीके शिर पर ताज, छींट वा साटन- 'कहीं मेला चा वारोयारी उपलक्षमें यह जारोगान होते का कोट और किसीके शिर पर पंख दी हुई टोपी देखी "देखा जाता है। निम्न श्रेणोके हिन्दू-मुसलमान द्वारा ही | जाती है । साधारण गीतमें जिस प्रकार आभोग, अन्तरा, 'यह गान होता है। कवसे इस ग्राम्य सङ्गीतका प्रचार चितेन आदि रीति है, इस जारी-गीतमें भी उसी प्रकार है; मालूम नहीं। प्रवाद है, कि दिल्लीश्वर सिकन्दर । धूमा, भावेज, केरता, मुखरा, वाहिर चितेन आदि अंश लोदीके पुत्र गाजी संसारकी असारता जान कर फकीर रहते हैं। प्रत्येक गीतके पहले या अन्तमें एक या दो धूआ हो गया था। कृष्णगड रेलवे स्टेशनके निकटवत्तीं एक रहता है। छोटे गांवका रहनेवाला एक फकीर 'हज' करके मकासे ___पहले कह आये है, कि मूलगायकका नाम क्याति • • लौट रहा था। दिल्लोके समीप पुलिया नामक स्थानमें है। जारि गीतका रचयिता यहीवयाति है। पारसी 'वयात् रात हो गई और वह ठहर गया। उसके पास ही एक । शब्दका अर्थ है श्लोक, अध्याय वा कान्यांश । जो स्यात् मुसलमान-मकवरा था। फकीरने स्वप्नमें देखा, कि बनाता है उसको वयाति कहते हैं । और तो क्या, जारी- कोई उसे गाजीकी महिमा गानेका उपदेश दे रहा है। गीतके आदि ययातिगण निरक्षर होते। कृषककुलमें सवेरे वह वहांसे रवाना हुआ और गाजीका गीत प्रचार | उनका जन्म होता, वे कभी भी लिखना पढ़ना नहीं करनेमें लग गया। कोई कोई कहते हैं, कि उस फकीर- सोखते, फिर भी स्वभावतः वे वयातकी ऐसी रचना • का नाम वाजित फकीर था। करते हैं, कि उसे देख कर चमत्कृत और स्तम्भित होना . उस गीतसे मालूम होता है, कि आसरफ फकोर ही पड़ता है। ये लोग वातको वातमें गान रच कर सर्वोको गाजो-गीतके प्रवर्तक है। उस गाजी-गीतका एक समय } प्रसन्न कर सकते ये । मालूम होता है, कि उन्होंने मानो निम्न वङ्गकी निम्न श्रेणीमें विशेष आदर था। बहुतोंका | ईश्वरदत्त कवित्वशक्ति ले कर श्रमजीवी-कृषककुलम • अनुमान है, कि यही गाजी गीत परिवर्तित हो कर भिन्न | शान्तिप्रदान करने के लिये दीन कृपकोंके घर जन्म लिया ढगमें, भिन्न सुरमें, भिन्न आदर्श पर यारो वा जारी है। यहां तक कि, ऐसे निरक्षर वयातिकी गीतरचना कहलाने लगा था। दोनों ही गीतोंका उद्देश्य भगवान् | सुन कर कितने पण्डित भी विमुग्ध हो गये हैं। ऐसी के नाममाहात्म्यका प्रचार और निम्न श्रेणीके अनन्य साधारणशक्ति रहते हुए भी उन्होंने कभी उच्च मुसलमानोंके बीच विशुद्ध आमोदके साथ सद्भाव-| हिन्दू वा मुसलमान-समाजमें उपयुक्त आदर पाया है वा स्थापन है। नहीं, सन्देह है। यही कारण है, कि ऐसे सैकड़ों स्वभाव गाजी-गीतका जब बहुल प्रचार था, उससे दो सौ कविको अपूर्व गीतिकविता उद्धार करनेका कोई उपाय वर्ष पहले जारी गीतको सृष्टि हुई, यह वात किसी किसी नहीं। यहां तक कि बहुतोंका नाम तक भी विलुप्त हो उस्तादके मुखसे सुनी जाती है। सचमुच कृष्णनगरके | गया है। केवल दो एक नाम हम लोग पाते हैं, वह भी .. राजभवनके आमोद-प्रमोदको तालिका सौ वर्षसे भी | बड़ी मुश्किलसे। पहले वहां इस जोरी गीतका आदर था। . . वर्तमानकालमें जो सव 'वयाति' वा जारोपालोंका Vol, xvIII, 165 हिन्द-