पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६८७

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४ यधिष्ठिर युधिष्ठरको बुलाया। विदुरने युधिष्टिरको जुआ खेलने और युद्ध में परास्त कर अत्यन्त अपमानित किया। से मना किया था, परन्तु युधिष्ठिरने उनकी बातों पर अज्ञात वासका समय पाण्डवोंने मत्स्यराजके राजा कान नहीं दिया। युधिष्ठिर और शकुनिका जुआ विराटके यहाँ गुप्तरूपसे रह कर विताया था। विराट खेलना निश्चित हुआ। इस प्रकार दुर्योधनकी ओरसे | के यहां युधिष्ठिर अक्षक्रीड़ानिपुण ब्राह्मणके वेशमें, : शकुनि जुआ खेलने लगा। युधिष्ठिर वाजी हार कर | भीम रसोइयाके रूपमें, अर्जुन नपुंसकके रूपमें, नकुल शकुनिके दास हुए। वाजीमें युधिष्ठिर द्रौप को भी अश्वचिकित्सकके रूपमें, सहदेव · ग्वालाके रूपमें हार गये थे, अतः वह भी शकुनिको दासी हुई। केश। और द्रौपदी सैरिन्ध्रोके रूपमें रहती थी। सैरिन्ध्री- पकड़ कर दुःशासन द्रौपदीको राजसभामें खीच रूपिणी द्रौपदी विराटके साले तथा उसके लाया । द्रौपदीके अपमानसे धृतराष्ट्रके अन्तःपुरमें प्रधान सेनापति कोचकसे अपमानित हुई थी। अतपत्र खलबली मच गयी। धृतराष्ट्रके कानों तक इसको खवर | भोमने कीचकको नाट्यशालामें मार डाला। कीचकके पहुंच गई। द्रौपदी सभामें लाई जा कर अपमानितकी मारे जानेको खवर पाते हो दुर्योधनने विराटके गोगृह गई। दुर्योधनने द्रौपदीको लक्षा कर अपने जङका | पर आक्रमण करनेके लिये विगतराज सुशर्माको दल- कपड़ा हटाया और सङ्कितसे बैठने के लिये कहा । भीम वलके साथ भेजा। सुशर्मा विराटके दक्षिण गोगृह पर से यह नहीं सहा गया; वे उठना चाहते ही थे, परन्तु चढ़ाई करके गौओं को ले जा रहा है, गोपाध्यक्षसे यह युधिष्ठिरके कहनेसे शान्त हो कर बैठ गये। सम्वाद पा कर विराटने वय सुशर्मा पर आक्रमण कर वृद्ध महाराज धृतराष्ट्रने द्रौपदीको अपने समीप दिया। सुशर्माने विराटको हरा कर अपने रथ पर बुला कर बहुत समझाया चुझाया। द्रौपदीके स्वामी वैठा लिया और अपने नगरको ओर चला । . यह देख तथा वह स्वयं महाराजको आज्ञासे दासत्वसे मुक्त हुई ।। फर युधिष्ठिरने भीमको विराटके उद्धार के लिये भेजा । महाराज पाण्डवोंके सामने अपने पुत्रोंके दुर्घ्यवहारके | भीमने विराटको छुड़ा कर सुशर्माको कैद कर लिया। लिये दुःखित हुए और उन्हों ने इन सब बातों को भूल इस उपकारके वदले राजा विराट युधिष्ठिर और भीमको जानेके लिये पाण्डवौंसे अनुरोध किया। पाण्डव भी मत्स्यराज्य देना चाहते थे । परन्तु धिष्ठिरने नहीं लिया द्रौपदीके साथ इन्द्रप्रस्थ चले गये। इधर दुर्योधन कर्ण, भीष्म आदि वीरोंके साथ विराटके उत्तर इसके बाद दुर्योधन पाण्डवोंकी शक्ति, उनकी भावो | गोगृह पर चढ़ाई करके ६० हजार गौ ले जा रहा था। उन्नति और उससे कौरवों की भावी विपत्तिको वाते यह संवाद पा कर विराटने अपने पुत्र उत्तरको कौरव. समझा कर धृतराष्ट्रको युधिष्ठिरके विरुद्ध उभाड़ने सेनाका मुकावला.करनेके लिये भेजा। परन्तु विराटका लगा। अबकी बार युधिष्ठिरके राज्य छीननेको भी सारथि सुशर्मा के साथ युद्धमें मारा गया था :अतएव वह चेष्टा करेगा, यह भी उसने धृतराष्ट्रको समझाया । सैरिन्ध्री और विराटकन्या उत्तराके कहनेसे उत्तरने पह- धृतराष्ट्र उसकी वातोंमें आ गया। पुनः जुआ खेलनेके | मलारूपी अर्जुनको अपना सारथी बनाया । कौरवसेना- लिये युधिष्ठिर आमन्त्रित किये गये। इस वार युधि- | को देखते ही उत्तरका हृदय कांप उठा, उस समय अपना ष्ठिर राज्य, धन, रत्न आदि सभी हार गये। परिचय दे कर अर्जुन खय रथो हुए और उत्तरको अन्तकी वाजीमें हार कर पाण्डव स्त्रीके साथ वारह वर्ष | सारथि वना कर उन्होंने कौरवसेनामें रथ ले चलनेका वनमें रहनेके लिये और एक वर्ष अज्ञातवासके लिये आज्ञा दी। अर्जुनने कुरुवोरोंको हरा कर विराटकी वाध्य हुए। गौओंका उद्धार किया। दुर्योधन आदि सभीने अर्जुन- पांचो पाण्डव दरिद्रके वेशमें हस्तिनापुरसे चले । वन- | को पहचान लिया। अव प्रश्न यह उठा, कि अर्जुनके वासके समय दुर्योधनके वहनाई जयद्रथने द्रौपदीको | अज्ञातवासकी अवधि पूरी हुई है या नहीं। परंतु भीष्म- हर लिया था, परन्तु भीमने उसे मार्गमें जा कर पकड़ा / ने हिसाव लगा कर बता दिया कि अज्ञातवासकी अवधि