पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१२३

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वाद्ययन्त्र १०१ कर स्वरको ऊंचा नीचा कर सकते हैं। यद्यपि इस यन्त्रके चन्दन लकड़ी के बने हुए मईलको ध्यनि भो गम्भीर, स्वरमें उतनी मधुरता नहीं है, तथापि ऐक्यतान वादनके रमणीय और उच्च होती है। मद्दल अकसर आध हाथ साथ बजाये जानेसे खराव भी नहीं लगता। लम्बा और वाई ओरका मुंह बारह तेरह उंगलीका होता अवनद्ध वा आना-यन्त्र। है। दाहिनी ओरका मुह उससे एक या वाघ उंगली . पट या नागरा, महल या मादल, हुड़,का, भारट, | फम और मध्य भाग मुंहसे कुछ लम्बा होता है। छः मघट, रक्षा, डमरु, ढका, कड़ ली, टुकरी, त्रियलो, महोनेके वकरेके चमड़े से दोनों मुंह मढ़े होते और घे डिण्डिम, दुन्दुभि, भेरो, निःसान, तुम्बकी, टमको, मण्ड, , चमड़े की धजोसे परस्पर संयोजित रहते हैं। उन कम्यून, एणय, कुण्डलो, पादचाध, शकर, मट्ट, मृदङ्ग या लियों में हस्तिदन्त अथवा और किसी फठिन पदार्थक ग्वाल, तबला, ढोलक, ढोल, काड़ा, जगझम्प, नासा, घने हुए भाठ गुलम आवद्ध होते हैं। स्वरको ऊंचा दमामा, टिकारा, जोडघाई और खुरदक ये सब यन्त और नीचा करनेके लिये उन गुलमोंको लोहेके हथौड़े से अवनद यन्त में गिने जाते हैं। उन सब यन्तोंके केरल | सञ्चालित कर लेते हैं। यन्त्र के दाहिने मुंहफे ठोक नाम दिपे गये हैं उनके आकारादि मङ्गीत प्रन्यमै भी। वोचमें भस्म, गेरु मिट्टी, गेहका माँटा या चिउड़ा, इन नहीं देने जाते और न इनका व्यवहार ही दिखाई देता, सव पदार्थीको जलमें मिला कर लगभग चार अंगुल है। सभी अवनद्ध यत्र सभ्य, वाहिारिक, प्राम्य, साम भर गोल मोटा लेप लगा देते हैं, बाई ओर लेप नहीं रिक और माडल्य इन पांच श्रेणियों में विभक्त होते हैं।। लगाना होता है । इस यन्त्रको गोदमें रख कर वजाया पटह या नागरा। जाता है। मईलको ही अव मृदङ्ग वा पखावज कहते पटहका माकार छोटे और बड़े के भेदसे दो प्रकारका है । संथाल आदि असभ्य जातियां इसी जातिका होता है। दोनों प्रकारके पटहके खोल मिट्टोके दने | वामा वजा कर गोतादि करते हैं, वह मईल वा मादल होते है। बड़े परहका मुंह चौड़ा होता, तलदेश क्रमशः | कद्दलाता है। यह यन्त्र सभ्य यन्त्रमें गिना जाता है सूक्ष्म हो कर कोणाकार, परिणत हो गया है। इस और दोनों हाधसे इसे बनाते हैं तथा यह ध्र पदादि यतका मुंह मोटे चमड़े से मढ़ा होना है। छोटा परह | उच्चाङ्ग गोतफे साथ सङ्गत हुआ करता है। देखने में कुछ गोल होता है। इसके भी आच्छादनादि मुरन। बड़े परह जैसे होते हैं, परतु इसमें पक्षोके पर आदि । मुरज मदलके समान, पर उससे कुछ छोटा अनेक वस्तु माबद्ध रहती हैं। यह यंत प्रायः काड़ा होता है। इसका वायां मुह भाउ उंगली भीर, दाहिना नामक एक दूसरे यंतके साथ यजाया जाता है। यजाने | मुंह सात उगलो चौड़ा होता है। इसकी लम्बाई एक थाले यंतशो रस्सीसे बांध कर गले में लटका लेते और हादसे कुछ अधिक होती है। बजनिघाले रस्सीसे इसको दोनों हाथमे दो छड़ी ले कर उसे घजाते हैं, किंतु घड़ा। गले लरका फर यजाते है । इसकी धाई और भी । पटह इस प्रकार बजाया नहीं जाता। उसे जमीन पर मसालेका लेप रहता है। रख दो डेसे टिकारा नामक यंतके साथ बजाते हैं। मृदया। कमी कमी युद्ध-विजेताओंफ, सम्मानार्थ गृहप्रवेशके। . मृदङ्ग यन्त्र बहुत प्राचीन है। पुराणमें लिखा है, 'समय हायीकी पीठ पर बजाते हुए भी देखा जाता है। कि जय त्रिपुगरि महादेवने देवताओं के अजेय अति परह यहिारिक और अति प्राचीन यंत्र है। दुदन्ति तिपुरासुरको युद्धमें मार कर बड़े भानन्दसे ताण्डवनृत्य भारम्भ किया, उस समय भसुरफ शरीर. भानद्ध यंत्रक मध्यमईल ही सर्वश्रेष्ठ है । महलका | से निकले हुए, रुधिरसे समराङ्गणकी भूमि सिक्त हो खेळि वैर, लालचंदन, कटहल मादि लकडियोंका बना | कटममें परिणत हो गई थी, उस · कदमसे सृष्टि- होता है। इनमें बैरकी लकड़ी ही सबसे अच्छी है। लाल । कर्ता पमयोनि ब्रह्मानं मृदट्सका मेना, चर्मसं आच्छा. ___Vol. III. 25