• वाप्य वामजुष्ट
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बाप्पाको मादम थी। अतएघ अपने साथियों को साथ | चे तोरके सिंहासन पर अधिष्ठित थे। उनको मृत्युके
ले फर वाप्पा यहीं पहुंचे। राजाने बड़े आदरसे उनको | वाद उनकी पत्नी सिपानभाईने १७३७ से १७४०१०
रखा और अपना मोमन्त धनाया। इससे पहलेके तक राज्य किया।
सामन्लोंको बड़ी ईर्ष्या हुई। यहां तक कि एक समय याम् (सं० पु० ) १ गन्ता । २ स्तोता ।
जय शाल ओने चित्तौड़ पर चढ़ाई को तब उन सामन्तीने याम (सं० लो०) या (मार्स स्तु सु हु स नीति । उण १।३६)
साफ ही कह दिया, कि जिसका आदर करते हो उसी- इति मन् । १ धन । (पु.)२ कामदेव । ३ हर, महादेव ।
को लड़ने के लिये भेजो। बाप्पाने उस लड़ाई में जयलाभ ४ कुच, स्तन । ५भद्राकं गर्भसे उत्पन्न श्रीकृष्णके एक
पुवका नाम I ( भागवत १०१६॥१७) ६ ऋचीकके एक
· · राजा मानस तिरस्कृत सामन्त इसी चिन्तामें लगे पुत्र का नाम । ७ चन्द्रमाके रथके एक घोड़े का नाम ।
थे, कि कोई अच्छा सरदार मिले, तो उसे चित्तौड़का | ८ अक्षरोका पक वर्णवृत्त । इसके प्रत्येक चरणमें सात
सिंहासन.दे दें और राजा मानको पदच्युत कर दे। गन्तमें | जगण और एक यगण होता है। इसे मञ्जरी, मकरन्द
सामन्तोने वाला हो को इस काम. लिये स्थिर किया। और माधवो भी कहते हैं। यह एक प्रकारका सवैया हो
वाप्पाने भी इस कार्य में अपनी सम्मति दे दी। इसोको है। वास्तूक ।
स्वार्थ कहते हैं। आज याप्पाने अपने आश्रयदातामामाके ___लि०) यति वभ्यते घेति यम् उद्दिरणे (न्यप्तितिकसन्ते.
उपकारका कैसा सुन्दर यदला दिया।
भ्यो यः । पा ३।१।१४० ) इति ण । १० यल्गु, सुन्दर । ११
पचास यपैसे अधिक अवस्था होने पर वाप्पा रावल | प्रतिकूल, खिलाफ । १२ वननीय, याजनीय । १३ कुटिल,
चित्तौड़झा राज्य , अपने पुत्रोंको ६ कर खुरासन चले | टेढा । १४ दुए, नीच । १५ जो अच्छा न हो, पुरा । १६
गये। वहां इन्होंने बहुत सो मुसलमान स्त्रियोंसे ध्याह | सव्य, दक्षिण या दाहिनेका उलटा, वायाँ । द्विजको वायें
. . किया था। . . . . . . .
हापसे जलपान वा भोजन नहीं करना चाहिये। बांये
. :वीरकेशरी महाराज चापा रायनने एक सौ वर्षकी हायसे. जलपात्र उठा कर भी जलपान करना उचित
पूरो.वायु पाई थी। इन्होंने काश्मीर, ईराफ, ईरान, तुरान | नहीं।.
और काफरिस्तान भादि देशोंको जोता था और उन न. घामहस्तेनोद्धृत्य पिवेद्वक्त्रण वा जलम् ।
• उन देशों के राजाओं की कन्याशो को व्याहा था। 'इन्हें' :.: 1 नोत्तरेदनुपस्पृश्य नाप मु रेतः समुत्सृजेत् ॥"
३० पुद उत्पन्न हुए थे। । - - -
( कूर्मपु० १५ अ०)
पाप्य (सं० लो०) वायां भय मिति पापी (दिगादिभ्यो यत् । ज्योतिषको प्रश्नगणनामें वाम और दक्षिणमेदसे
पा ॥३१५४ ) इति यत् । १ कुष्ठौपध, फुट । (भमर), शुभाशुभ फलाफलका तारतम्य कहा है। .
मानिधान्यभेद, योवारी.धान। ३ पापीभव जल, वामक (सं०वि०)१ याम सम्बन्धीय । (क्लो०) २ गङ्गा-
- यावलोका पानी। इसका गुण--यानश्लेप्मनाशक, | मङ्गीका एक भेद। (विक्रमोर्वशी ५६।२०) ३ धौद्धमन्यों के
";क्षार, कटु और पित्तवर्द्धक। यप पयत्। ४यपनोय । अनुसार एक चक्रवत्तीं। घोंने योग्य। - यामकक्ष (सं० पु०) एक गोत्रकार ऋषिका नाम । इनके पारक्षोर (म.ली.) मामुद्र लवण । (राजनि०) गोत्रके लोग यामकक्षायण कहे जाते थे। पाभर (स० पु०) १ वैद्यसंहिताके प्रणेता। २शारत्र यामरक्षायण (सं० पु.) यामकक्षके वंशोत्पन्न क ऋषि- दर्पणनिघण्टुकार, पाम्गट। का नाम। (शतपथना ॥१२११) . पापाजी भोसले-एक महाराष्ट्र मरदार । पे प्रसिद्ध घामफेभ्यरतन्त्र-एक तन्त्रका नाम। . . - महाराष्ट्रगारो शियाजोके प्रपितामह थे। पामचूद (स.पु० ) जातिमेद । (हरियश) . यायामाहव-शिवाजी धैमानेय भाता याडोजोफै पौत्र यामजुट (सनो०) घामफेवरतन्त्र । ___Vol. AXI,34.