पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१४९

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वामन १३५ कट हुआ। उन्होंने फातरस्वरमें भगवान कश्यपसे कहा / भी आश्चर्यान्वित हो कर जय जय शब्द उच्चारण करने था,-भगवन् ! सपत्नो-पुत्र दैत्योंने हमारो धो और लगे। अश्रत झानम्वरूप भगवान्को चेष्टा अद्भुत है। स्थानको अपहरण कर लिया है। आप हम लोगोंकी | उन्होंने प्रभा, भूपण, अन्त द्वारा प्रकाशमान देह धारण रक्षा कीजिये। शवोंने हमें निर्वासित कर दिया है। को थी। सहसा उसी देहने नट की तरह यागनकुमारको भाप ऐसा उपाय को जये, जिससे मेरे पुत्र फिर अपने मूर्ति धारण कर ली। महर्षियोंने इनोवामनरूपमै प्रच- स्थानों को पा जाये। मदितिके इस तरह कहने पर र्शित देख स्तव करना प्रारम्भ किया। कश्याने विधिपूर्वक प्रजापति कश्यपने विस्मित हो कर कहा, कि महो! जातकर्म संस्कार कार्य कर उपनयन संस्कारसे संस्कृत विष्णु-मायाका कैसा असीम प्रभाव है ! यह जगत् स्नेहा. किया । इस उपनयनके समय सूर्यदेव सावित्नी और पद है। आत्मा-भिन्न भौतिक देह हो कहाँ है ? फिर वृहस्पति ब्रह्मसूत्रपाठी प्रवृत्त हुए और कश्यपने उनको प्रकृति विना आत्मा ही कहां है ? भद्रे ! कौन किसका मेखला पहनाया । वामनरूपी जगत्पतिको पृथ्वोने कृष्णा. पति, कौन किसका पुन ? केवल मोह हो इस चुद्धिका | जिन, सोमने दण्ड, माताने कौपीन, सर्गने छन, प्रमाने एकमात्र कारण है। तुम गादिदेव भगवान् वासुदेव कमण्डल, सप्तर्मियोंने कुश मोर सरस्वतीने अक्षमाला को उपासना करो। यही तुम्हारा मङ्गल करेंगे। पहनाई । वामनदेवके उपस्थित होने पर यक्षराजने उनको दोनोंके प्रति धे घड़े दयालु रहते हैं। भगवानको सेवा | मिक्षापात और स्वयं अम्यिकाने उनको भिक्षा दी। इस अमोघ है। सिवा इसके और किसी तरहसे कुछ फल समय वामनदेवने मुना, कि दैत्यराज पलिने अश्वमेध नहीं हो सकता। इस समय अदितिने पूछा, कि किस यज्ञका अनुष्ठान किया है। उस समय घामनदेय ब्राह्मण- प्रकारसे उनकी आराधना करनी होगी? इस पर कश्यप रूपमें भिक्षा मांगने के लिये उसके पास गये । समूचा पल ने कहा था, देवि! फाल्गुन महीने के शुक्लपक्षमै १२ दिनों उनमें मौजूद था । सुतरां उनके चलनेसे प्रत्येक पद तक पयोद्रत करो, ऐसा करनेसे भगवान् विष्णु प्रसन्न पर पृथ्वी कांपने लगी । नर्मदा तरके उत्तर तट पर भृगु. हो पुनरूपमे जन्म ले र तुम लोगों के इस दुःखको दूर . कच्छ नामक क्षेत्रमें बलि के पुरोहित और ब्राह्मणीने श्रष्ठ करेंगे। यश आरम्भ किया था। भगवान्यामनदेय वहां पढ़'चे। अदितिने कश्यपसे इस व्रतका अनुष्ठान करनेका | भगवान्को तेजःप्रभा देत कर सप स्तम्मित हो गये। आदेश पाकर पैसा किया। कुछ दिन बीतने पर माया धामनरूपधारी हरिके करिदेशमें भूजकी कर. देवमाता भवितिने भगवान को गर्भमें धारण किया ।। धनी, कृष्णाजिनमय उत्तरोय यज्ञोपवीतवत वाम काधे इसके याद भाद्रपद मासके शुक्लपक्षको द्वादशीफा अनादि | पर नियेशित, म7 पर जरा मोर इनको देह छोटी भगवान् विष्णुने धवणा नक्षनके प्रथमांश .अभिजित | देख भृगुगण उनके तेजसे अभिभूत हो उठे। उस समय मुहूर्त में जन्म लिया । इस दिन चंद्रमा श्रवणानक्षत्र में पलिने उठ कर भगवान् वामनदेवका पैर धो कर उनसे धास करते थे। अश्विनी प्रभृति सभी नक्षत्र तथा देव चिमप्रयुक्त वचनों में कहा, "ब्राह्मण ! मापफे आना कोई गुरु वृहस्पति शुक्र प्रभृति प्रहगण भी अनुकूल रह कर फर तो नहीं हुआ१ मा आशा दीजिये, आपका में क्या शुभावह हुए थे। इस तिधिक दिनके मध्यमागमे । उपकार कर सकता हूं? आप ब्रह्मपि योको मूर्तिमती भगवान्ने जग्मप्रहण किया था। इसीलिये इस | तपस्या है। आपके प से हमारा पितृकल परि- द्वादशोका नाम विजयावादगी है । यामनदेयके भूमिष्ठ हम हुमा और कुल भी पवित्र हुगा। भापको जो '. होते हो शङ्ख, दुन्दुमि प्रभृनिका तुमुल शब्द होने लगा।। इच्छा हो वही मांगिये। अनुमान होता है, कि भाग • सराये दर्वित हो कर नाचने लगी। अदिति परम- कुछ यांननेके लिपे दो माये हैं। भूमि, स्वर्ण, उत्तमोत्तम पुरुषको सकीय योगमायासे पंह धारण कर गर्ममें जन्म | यासस्थान, मियान्न, समृद्धशालो माम मादि जो कुछ प्रहण करते देख आश्चर्यान्वित मोर सन्तुष्ट हुई। कश्यप' आवश्यक हो गाशा दीजिपे, मैं उसका पालन कर!"