पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१५०

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वामन भगवान्ने यलिके वाफ्य पर सन्नुए हो कर कहा:-. ताोंके कार्यसाधनके लिये कश्यपके भौरस तथा तुमने अपने फुलके अनुसार ही यह मिष्टाचार अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए हैं। तुम अपनी लाई हो दिनाया है। तुम्हारे फलों किसीन किमो ब्राह्मणको विषद्को देख नहीं रहे हो। इनको दान देना सोकार दान द नेका कद पाछे उससे इन्कार नहीं किया है। कर तुम लाभ नहीं उठाओगे। दैत्यों पर महाविपद इसके याद वामनदेवने कहा, दैत्यरात ! मैं और दूसरा उपस्थित है। माया यामनगो भगवान् विष्णु तुम्हारा कुछ नहीं चाहता । मैं अपने इस पैरसे तीन पैर नाप कर स्थान, ऐश्वर्य, धन, तेज, यश विद्या प्रादि व मप- भूमि चाहता है। तुम दाता हो गौर जगत्के ईश्वर हो। हरण कर इन्द्रको प्रदान करेंगे ! विश्व इनेको पेट जितना भायश्यक हो, विद्वान् व्यक्तिको उतना ही मांगना है, ये तीन पैरों से तीनों लोको' पर आक्रमण करेंगे। चाहिये। तुम्हारा सख नष्ट हुगा। इन वामनदेयके एक परसे उस समय वामनके इस तरह कहने पर राजा बलिने पृथ्यो, 'दूसरे पैरसे स्वर्ग और इस विशालदेहसे गगन. कदा,-"आपका पाक्य वृद्धको तरह है, किन्तु गाप पालक मण्डल व्याप्त होगा। तीसरे पैरके लिये तुम.पया दोगे? मालम होते हैं, शतएव मापको युद्धि मूर्खकी तरह है। तुम्हारे पास कुछ नहीं रहेगा। यदि नही दोगे, तो पोकि स्वार्थक विषयो पापको ज्ञान नहीं है। मैं | तुम अपनी प्रतिक्षा भ्रष्ट होने का दोषी धन कर नरक खेलोपका ईश्वर है। मैं एक द्वीप मांगने पर दे सकता। जाओगे। जिस दानले अजनोपाय, बिलकुल नहीं रह है। किन्तु भाप इतने अशेष हैं, कि मुझको संतुष्ट कर जाता, यह दान वधार्थ प्रशसाई नहीं है। ध्रुतिमें मो तोन पैर भूमि चाहते है। मुझको प्रसन्न कर दूसरे लिखा है, कि मीविलासफे समय प्राण-मदार उपस्थित पुरुषसे प्रार्थना करने की जरूरत नहीं रहती। गतएव होने पर हास्य-परिहासमें पियाद समय घरफे गुण उस यस्तुको नाप प्रार्थना करें जिससे भापफे गृह वर्णन करने, जीविकावृत्तिको रक्षा लिये और गो. संसारका फाम मजे में चल जाये।" ब्राह्मणकी रक्षाफे लिये झूठ बोल दोष नहीं होता, उस समय भगयानने कहा,-"राजन् ! लोक्यमें जो. अतएव इस प्राण संकट के समय झूठ पोल पर भी अपनी कुछ प्रियतम अभीष्ट यस्तु हैं, वे सभी मजितेन्द्रिय पु - देह बचानो। इससे तुम्हारा मनिष्ट नहीं होगा।" फो तुम कर नहीं सकती। जो व्यक्ति तीन पैर भूमि राजा बलि शुक्राचार्यको इस बात पर जरा गौर कर पा कर सन्तुष्ट नहीं होते, नयवर्षविशिष्ट एक द्वीप कहने लगे, "आपने जो उपदेश दिया, यह सर्यथा लामसे भी उसको आशा पूरी नहीं होती। तब यह सत्प है, जिससे किसी समयमें अर्थ, काम, यश मावि . साता द्वीपोंकी कामना करने लगता है। कामनाको व्याघात उपस्थित न हो, गृहस्पोंका यथार्थ धर्म है। - गयघि नही है। पुराणों में मैंने सुगा है, कि येणु, गद! किन्तु मैं महादका पात्र हैं। दूंगा फह कर मैंने जिम. मादि राजे मतद्वोपके गधोभ्या हो कर पवं यायतोप को वात दी है, अप सामान्य यचों की तरह मैं प्राणको अर्धा, कामना भोग करके भी रिययभोगको तुष्णासे कैसे गदूंगा। पृथ्योने कहा कि झूठे गादमीफे सिया रहित महो दो सफे। सन्तुए पक्ति इच्छामा यस्तुको मैं सब किसीका भार सह सकती है। माणके भोग र सुगसे रहता है, किन्तु अमितेन्द्रिय व्यकि। ठगने मुझे असा मय हो रहा है, नरम, रिया, लिलो प्राप्त होने पर मो सुग्री नहीं होता।" सिंहासनच्युन या मृत्यु होने से भी ये सा भय नहीं उस समय चामनदेयको शात सुन कर रामा चलि होगा। मतपय मैंने जब एक बार देगा स्वीकार किया ६सने लगे और उन्होंने 'लीजिये" यह फद है, ता में स्ययं अपनी शयाना उजट सगा।" • कर भूमिदान करने के लिये जलका पात्र हा ले लिया 1 शुक्राचार्यन यन्तिको पात पर गारापर यद । किन्तु सर्वश देस्यगुरु शुक्राचार्यने विष्णु-उद्देश्यको समन्द शाप दिया, कि "तुम मर्म हो कर पाण्डित्यादिमाग कर पलिसे कहा-बलि ! यह माझात विष्णु हैं । व-: कारण मेरो भाशाको अपदेला. करने दो, इसलिये