पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२१०

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१८४ पायुविज्ञान उपायं न रहने पर “याहरकी वायु के चापसे कनस्तरका | घायुका तरल वनाना इस समयके वैज्ञानिकोका .. पाय शब्द के साथ भीतरको ओर धम जायेगा। अद्भुत आविष्कार है। पहले तरलतासाधनमें बहुत पन', यायुको तरन यनाना (The Lequifaction of gases)। | खर्च होता था। इस समय अपेक्षाांत फन पनी हो पायको तरल बनाने के लिये बहुत दिनोंसे चेष्टाये। घायु की तरलता साधित हो रही है। . माशा, हो रही थी। किन्तु अक्सिजन, नाइट्रोजन और इससे मनुष्यफे किराने ही काम होंगे: - हायोजनको पाश्चात्य प्राचीन वैशानिक किसी तरह .. वायुको धूलि । - - - - इस अवस्था ला न सके । इसीलिये इनकी : घायु मण्डलफे अनेक उश, प्रदेश तफ-धूलिराशि नित्य याप्प (Permanent-gas) कहा जाता था। सुवि. परिलक्षित होती है। इस समयके वैज्ञानिकों ने परीक्षा सपात वैधानिक फाराडे (Faraday) प्रमाणित किया है, कर स्थिर किया है, किंवाय में धूलिकणासमई है।' कि वायुके २७ परिमित प्रचापसे और ११० डिग्री शैत्यो. इसीलिये वायु मण्ड सों जलीय याप्प संञ्चित होकर ष्णतामानसे भी उक्त ये तीनों याप्पोय पदार्थ तरल मेधको उत्पत्ति हो सकती है। : घायु राशिमें दिखाई नहीं हुए। वैज्ञानिक पण्डित नेटरर (Natterer) यायु , देनेवालो धूलिकणा हो जलीय बाप विन्दुको विश्रामाधार गएडलो ३००० परिमित प्रचाप भी साफल्प लाभ नहीं है। यह विश्रामाधार न रहनेसे मेघोत्पत्ति असम्भव कर सके। सन् १८७७ ई० में सुपण्डित के लोटेट Kai. | हो जाती । पृष्टिके साथ साथ धूलिकणां गगनमण्डलसे netet और पिकरेटने (Pictet) इस विषयमें पहले पहल गिर पड़ती है, इससे वाय राशि निर्गल हो जाती है। - सफलता प्राप्त को। पिफटेट फी परोक्षासे अफ्सि - पायु और शब्दविशन! . . . ... जनके बापने वायुहा भाकार धारण किया था।] शब्दकी गति घायु द्वारा साधित होती है। चाय किन्तु पिफ्टेटने अफिमजनको जलप नरल बनाया था। सदका परिचालक है। वायु न रहनेमे हम कोई भन्द इसके बाद रखलेइको (Von Wroblewsky) भोर अल सुन नहीं सकते। सन् १७०५ ई० में वैज्ञानिक पण्डित जेबोइस्की (Olzewosky) अफ्तिजन, नाइट्रोजन गोर | होक्सशी ( lonkshee) घायुके साथ गद का यह कार्यानिक एफ्साइडको तरल बनाने में समर्थ छुप हैं।) सम्बन्ध यन्तादिके माहासामे परीक्षा कर सुमिसान्तमें प्रोफेसर डेयारने ( Devar ) इसके सम्बन्ध परी. | उपनोत किया। उनके यन्त्रके माथ एक घण्टा रिका . क्षा की तरलोकृत वायु जलव तरल हो जाती है। यन्त्र के घण्टे की तरह लटकता है । इस यन्त्र के साथ पक ... यह जलकी तरह स्वच्छ है गौर इसको जल की तरह एक धातय नाल संयुक रखना होता है। यह नल कांगकेसा. पालसे दूसरे पानी ढाला जा सकता है। यह अत्यन्त इस भायसे जोड़ दिया जाता है, कि कानमें:याय प्रवेश शोतल, धर्फ से भी ३४४८के परिमाणसे भी शीतल है। न कर सके । घायु निकालनेवाले यन्त्रसे उस यन्त्रको तरल वायु इतनी शीतल है, कि वाफको उष्णता भी इस.] याय निकाल कर उसमें घण्टेका शान करने पर प्राप्त को सह्य नहीं होतो । परफर्म तरल यायु सरक्षित सुनाई नहीं देता। फिर इसमें धाय प्रये सके अनुरातसे . होने पर यह 'फट फट' कर चूरती रहती है। परकोहल | सदको स्फुटनाका तारतम्य होता है। परीक्षा कर देखा . मादि तरल पदार्थ पहले किसी तरह कठिन अवस्थामें | गया है, कि.पाय के प्रचाप स्माधिकाश शद-भूतिका, परिणत नहीं किये जा सकते थे। किन्तु तरल यायुफे | भो न्यूनाधिषय होता रहता है। जितना ऊपर चढ़ा संस्पर्शसे ये संप पदार्ग मो अव कठिन हो जाते है। इस जाये, पाय का प्रचाप उतना रघु होता जाता है। प्रयापको को इतनो अधिक शीतलसा मनुष्यों के लिये भी असहा) लघताके अनुसार सदको फिटनाशी भी उसो परिमाण. है। जहां सरलयाय सस्पृट होतो है. पह स्थान अग्नि से कमी होती रहती है । लघुतर वाय चापरिशिष्ट स्थल या मुलस जाता है । जोयदेइमें पति औत्य और उमसा- मति निकटयत्ती तोपको गर्जन या पटाके नमकी को मिया माया एक हो तरहको दिखाई देती हैं। - तरह सुनाई देती है।