वारेन्द्र
नरमे लक्षक ), जामन्त्री, सिमलो (मतान्तरसे शोत.। किसीको नया कुलीन पनाया गया और किसीकी फुलो-
लयो), घोसालो (मतान्तरसे विशाला), तानुरी (मता- नता छीन ली गई। विशेषतः पुत्रके बदले फुल कन्यागत
म्तासे तालड़ी) यत्मप्रामी, देवली, निद्राली, फुफ टो करनेका आदेश दिया गया। पदुनन्दन ने लिया है कि
पोएडवनी, पोदनामी, श्रुतकटी, ममप्रामो, साहरी, घेदिक ग्राहोंने, यारेन्द्र कायस्थाने गौर घेधाने इम
'कालीग्रामी, कालोइय, पोण्ड काली कालिन्दी, चतुरापन्दो) अभिनय कौलाग्यको नहीं प्रहण किया।
(मतान्तरसे सानन्दी)-पे २४ हैं।
वैद्य और वैदिक देखो।
. मरवाजगोलमें-भादद, माडली ( माड़ियाल ), भृगुनन्दी नामक एक राजमन्त्रीने वलालसेगको इन सब
मातुधी, राइ, रत्नावली, उच्छरमी, गोच्छासी (याचएडअसामाजिक कार्यासे विरत होने के लिये उपदेश दिया।
. छाल, शाकटी (मतान्तरने काचड़ो), सिम्वीवहाल यालाल भृगुनन्दोके दृष्टान्त और प्रमाण प्रयोगको वात
(सिंहाल), साड़ियाल, क्षेत्रगामी, दधियाल (मना. सुन कर महा मोधित हो उठे। शीघ्र ही राजमन्त्री भृगु-
न्तरसे करी), पूति, काछी नन्दीप्रामी, गोप्रामी, निखटी नन्दी को फैद फरनेकी आशा हो । भाता यथाविधि
समुद्र, पिपली, गृङ्गार्जार (या सज्जुरी), पोलेकरा, मानी गई । भृगुनन्दी जेट भयनमें लाये गये। यहांसे वह
गोस्वालम्बी (गोसालाक्षी)-ये २४ हैं।
भाग निकले और उन्होंने देवकोटवासी उटाघर और
. सायर्णगोत्रमें-सिंदिपाल, पाकली (पापुढो), कर्षटनाग नामके दो पराम:न्त भम्याधिरियाका
शृङ्गी, नेदली उकुली, घुगड़ी, तलघार, संतक, माइग्रामो, आश्रय ग्रहण किया । देयकोट यरामान दिनाजपुर
(मतान्तरसे फलापेनी । मेधुड़ी ( मतान्तरसे छेन्दुरो)। जिले के अन्तर्गत है। जराघर सार कर्फट माग,
कपालो, टुहुरी, पश्चयटी, एडवटी, निको, समुद्र, | साहाय्यसे दास, नन्दी, चाकी, नाग, सिंद, दय भौर दत्त-
फतुमामी, गवग्रामी, पुष्प, गौर पुष्पहारी-घे २० । इन सातघर से समा गरित हुआ। नरसुन्दर शम्मा
३ यारेन्द्र कायस्य, वारेन्द्रदेशयासो कायस्थ श्रेणीभेद नामक एक बहात्तर कायस्य भृगुगमा परिवमि गिगुना
इस समय जिस स्थानको दम लोग पारेन्द्र समझने है।। था। उक्त व्यक्तिको भृगुनन्दी पौर मुरारि चाकिने भई
यदो स्थाn भादि गोहमण्डलके नामसे प्रसिद्ध था। कुल' देने को कहा था; किन्तु जटाधर नागने उनका
मतः आदि गोहीपकायस्प कहने पर घरेन्द्रगासी कायस्थ घहिष्कार कर दिया।
समझना चाहिये।
यदुनन्दनफे डाकर पाठसे प्रतीयमान होता है, कि
' पारेन्द्र कायस्पोंके पास टाकुर नामका एक अन्य पडायन्धनके समय पद्धनि गादि पर विचार कर घान्द्र
है। इस प्रन्यफे पढनेसे मालूम होता है कि यदुनन्दन । समाज संगठित हुआ। दासयशप यियरणमे हरिपुर,
नामक एक मनुष्य इसके रचयिता है। गादिधारफे समय नागदा मोर गुधि-इन तीन स्थानोग, नामका उल्लेन
जो कई कापमय लाये थे। उन्होंके विषयमें फुया है।
नगण्यासो कुलीन कायस्थ काशीदामने जो कुलपयको दापुरमें दासशके प्राचीन ममासस्थान-गाकी.
रचना को, उसी भाधार पर यदुनन्दनने अपने प्रायको प्राम, साधुवाली, गवमेल, मैदान दोघी, चिपच्छिल,
पिना की है। इससे समझमें गाता है, कि गदुनन्दन । चौपक्षी, पायना, मालश्ची, मेनुमाांगा, मेरपुर, माणि-
आदर्शका एक और 'दाकुर' अन्ध था । उन्होंने इस पाकुर कादि मौर घर-नाम लिपे हुए है।
शादर्शको बहुत पसा प्रग्य पहा है।
उत्त दापुर-यर्णित नन्दीपंग ग्रे स ममानपान
उक्त दापुर प्रग्यमे लिया है, कि लालसेम योमः। -वस्तार, पोताजिया, भटमुनिमा, कालिया, धामरा,
कन्या लाने और मनावरणीय जातियों जलावरणीय विनिया, बडापुर, माधुपाली, दिलपमा हिमपुर,
परले लिपे माधण सौर दयारो पद विम्मपायित हुए। मणिद६, महिमापुर, धुरिया, फरनता, Enger. मग.
पालामको कोलोन्यायादा अमिमय मावस मुष्ट होने पर रोहाली, देवद, सिंहदंगा, मेदेपुर, फेडगाव, मार
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२४३
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