पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२४६

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२१२ वारेन्द्र गांव और आरपाड़ा। इनमें से चल्लार, कलिमाई, खामरा, / के सामाजिक कायस्थरूपमें गिने गये थे। दास, नग्दी साधुवाली, महिमापुर, येयुरिया, करतजा, देवगृह, मेहेर- और चाकी ये तीनों सिद्ध घर एक से है। कहते हैं कि पुर. केउगाछी, कमरगांव मोर गारपाड़ा, इन सव स्थानों दोनों नागको भृगुनन्दीने सिद्धपद देना चाहा,था; किन्तु में बहुत दिनों से वारेन्द्र कायस्थोंका पास नहीं है। अभी नागोंने नहीं लिया, इस कारण सोंने सिद्धतुल्य का नाना स्थानों में उन सघ समाज-वासियोंके घश देख कर उनका प्रचार किया। नाग साध्यश्रेणीमुक्त हो कर जाते हैं। गौरवान्वित हुए हैं। नागके. बाद सिंघर, इसके चाफिगणके समाज-सरिपा, वाजुरस, मौटा शिमला थाद देवदत्तघर अर्थात् सिद्ध ३ घर प्रथम भाष, नाग हेलच, अष्टमुनिया, मेदोघाड़ी, केचुआडांगा, गोविन्दपुर, द्वितीय भाव, सिंह तृतीय भाव और देवदत्तं चतुर्थ भाव, सिकन्दरपुर ( यहादुरपुर ). बएडीपुर, गाजना, दुर्लभ इस प्रकार सातो घरंके भावोंका निर्णय हुआ था। पुर, श्यामनगर, हेमराजपुर, रामदिया, वागुरिया, दिलप ____ समाजबद्ध इन सात घरोंको छोड़ कर पीछे और मो सार, रघुनाथपुर। इनके सिधा चाचफिया समाजका कितने घर संगृहोत हुए थे। चाकि भी इस समाजमें देखा जाता है। ' ' पारेन्द्र-देशवासी घोप, गुह, रक्षित, मित्र, सेन, फर नागवंशाम जटाधर और फर्कर नागके पिता शिवः | घर, चन्द्र, रहा, पाल आदि उपाधिधारी कारस्थ मो नाग देवकोटमें राज्य करते थे। अपनेको वारेन्द्र कहते हैं। ____ दोनों नाग जिस समय यशोर जिलेके शोल कृपा इन सत्तरह घर कायस्थों में सिंह, घोपामिन और आये थे, उसी समय धारेन्द्र कायस्थसमाज संगठित कर उत्तरराढीय नन्दी, रक्षितः गुह, घोष और चन्द्र बन हुआ। महाराज प्रतापादित्यके पतनके बाद हीसे शोल तथा सेन और देव दक्षिण राढ़ीयसे मानेका प्रमाण फुगा विश्वस्तहमा है। अत्याचारसे पीड़ित हो कितने मिलता है। भवशिष्ट रक्षित, घर, राक्षा, सद, पाल, प्राह्मण-कायस्थ गोलकुषास भाग गये। दाम और शाण्डिल्य दास ये सात घर किस श्रेणीस हाकुर-वर्णित नागशफे समाजस्थान-शोलकूपा, वारेन्द्र में आये, उसका प्रमाण नहीं मिलता । .... सरप्राम, यागदुली, हरिहरा, रामनगर, कांटापुवरिया, यारेन्द्र कायस्थोंका माचार-व्यवहार अति पवित पाथराइल, मालञ्ची, सिङ्गा, गाडादह, नन्दनगाछी, फते। है । जिन्होंने उपनयन-सस्कार प्रण किया है- उल्लापुर, पलासवाड़ी, फिलगञ्ज, घुडका, सारियाकान्दी, | उनका आचार व्यवहार ब्राह्मण जैसा है। पुनके गबड़ा, उद्दिधार, यालियोपाड़ा, गङ्गापाड़ा, भरणिया. जन्म लेते ही सूतिकाघरमें तलयार रखना और अ• सिनिया और माहानो। प्राशनफे समय चरुपाक आदि क्रियायें क्षात्रव्यवहारको करातिया व्याससिंहके वंशमें किसी किसोने और विवादमें कशमिका आदि. मा सदाचारक परि. वारेन्द्र समाजमें प्रवेश किया। सिंहका प्राचीन समाज- चायक है।' बङदेशीय कायस्थ जातिको चार श्रेणियों. करतजा या करातिया, जेमोकान्दी, परीक्षितदिया, चोया के आधार-व्ययहारमें थोड़ा बहुत अन्तर दिखाई देता और उधुनिया। है सही, पर मूल में कोई अन्तर नही है। स्थानमेद और देववश, कालसोनाके धुधदेव और कुलदेव यारेन्द्र दीनता ही इस पृथकताका कारण है। पठी में गिने गये। देवगणसे समाज ये सब हैं-का- वारेन्द्र कायस्थोंके बियाहमें पर्यायको जरूरत नहीं स्वर्ण या कानसोना, तारागुनिया, काकदह, चिलिया, होती। पहले बङ्गीय ब्राह्मण घटकका काम करते थे। चडिया, तामाश और बर्दगकोटी।' . पोछे चारेन्द्र-कायस्थोने भी घरकका काम करना शुरू दत्तमें परमामी गौर काउनाली दक्ष हो मूल हैं। किया । यदुनन्दन भी धारेन्द्र कायस्य थे। धोदास al फाउनाझी दत्त के समाज-रूपाट और सेखुपुर। आदिफे समयमें एकना हुई पीछे बहुत दिन तक समस्त , . समाज गठनकाल में भृगुनन्दो भादि सात घर वारेन्द्र समाजको फिर एकता नहीं हुई। . . . . आडानी।