पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४३६

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विद्याधर-विद्याधररस मीमांसा होने पर यह भापका हो होगा" इस प्रकार जो । गाधिपुर ( कन्नौज ) गजगोपालके मन्त्री थे। विद्याधर .. धन लाभ होता है वह धन विभागयोग्य नहीं है । शिष्य. ने भो पीछे गोपालके यशधर मदनका मन्त्रिस्य किया। से अध्यापनालन्ध धन, पौरोहित्य कार्य करके दक्षिणादि । था | था। ... . . . .'. द्वारा प्राप्त धन, सन्दिग्ध प्रश्नका उत्तर दे कर पाया हुआ विद्याधरभाचार्य-प्रसिद्ध तान्त्रिक गाचार्य। तन्नसार धन, स्वशाना सन अर्थात् शास्त्रादिका यथार्थ तत्त्व में इनका उल्लेख है। पतला कर प्रतिग्रहलब्ध धन, शिल्पकार्यादि द्वारा प्राप्त विद्याधरकवि-एक अन्धकार। इन्होंने केलिरहंग्यकाश्य, धन, इन सब धनों को विद्याधन कहते हैं। यह रतिरहस्य और एकावली नामक अलङ्कारप्रय लिखे हैं। विद्याधन विभाज्य नहीं होता । दाया को इस धनमें मल्लिनाथने किरातार्जुनीयम शेषोक प्रन्थका उल्लंग्न हिस्सा नहीं मिल सकता । अपनी घिदया युद्धिके प्रभाव. किया। से जो धन उपार्जन किया जाता है, यही विद्याधन है। | विद्याधरस्व ( स० क्लो०) विद्याधरस्प भायः · त्य। वह धन विद्वान व्यक्तिका निजस होगा। विद्याधरका भाव या धर्म। विद्याधर (सं०१०)१क प्रकारको देवयोनि। इसके विशाधापिटक( को०) योद्धपिटकमेद। अन्तर्गत खेचर, गन्धर्व, किन्नर आदि माने जाते है। विद्याधरभज-उड़ीसाके भअयंशीय एक राजा, शिला २ सोलह प्रकारके रतिबन्धमिसे एक प्रकारका रतिवन्ध । भादेयके पुत्र। इसका लक्षण- विद्याधरयन्त्र (सं० क्लो०) विद्याधराभिध यन्त्र । गौषध "नार्या ऊरयुग धृत्वा कराभ्यां ताइयेत् पुनः । पाकार्थ ये दोक्त यन्त्रभेद । इस यन्सको प्रस्तुनःप्रणालो कामयेन्निभर कामी वन्धो विद्याधरो मतः ॥" भावप्रकाशा इस प्रकार लिखो है-एक थाली में पारा (रविमञ्जरी) रख कर उस पर दूसरी पालीको अदुळमुखी रख मिट्टी...' ३ एक प्रकारका मन। ४ विद्वान्, पण्डित । से योसका जोड़ बंद कर दे । 'ऊपरकी थालीमें पानी विद्याधर-कई प्राचीन कवि । १ दायनिर्णय और | भर कर दोनों मिली हुई थालियों को पांच पहर तक. हेमाद्विप्रयोग के प्रणेता । २ श्रीताधानपद्धति के रचयिता || आग पर रख उतार ले। इसके बाद ठंढे होने पर उम , ३ एक प्रसिद्ध धर्मशास्त्रवेत्ता । दानमयूख में इन का उल्लेख यन्त्र रस निकाल ले । इस तरह जो यन्त्र तयार होता है। ४ दूसरा नाम चरितवद्धन। ये साधारणतः , उसे विद्याधर यन्त्र कहते हैं। साहित्यविद्याधर नामसे हो गरिचित थे । इनके पिताका विद्याधररस (सपु० ) ज्यराधिकारोक्त औषधविशए। नाम रामचन्द्र भिपज और माताका नाम सीता था। पारा, गन्धक, तांबा, सोंठ, पीपल, मिर्च, निसाथ, दन्ती. चालुक्यराज निसलदेवके समय इन्होंने शिशुहितैषिणो यीज, धतूरेका बोज, मकवनका मूल और काउधिष, . नामको कुमारसम्भवटीका, साहित्यविद्याधरी नामको समान समान भाग ले कर चूर्ण करे। कुल मिला कर नग्धोयटोका, राघराण्डवोयटीका, शिशुपालवधटोका | जितना हो उतना जयपालका चूर्ण उसमें मिलाये। तथा साधु भरकमलके गनुगेघसे रघुवंशटीका आदि ! पोछे उसे थूहरके दूध और 'दन्तीके काढ़े में यथाक्रम . अन्ध लिखे। ५एक कवि, लुल्लके पुत्र । ६ पफ कपि, अच्छी तरह भावना दे कर २ रत्तीकी गोली बनाये । शुकटसुखवाफ पुत। इसका सेवन करनेसे दस्त खुलासा उतरता है तथा विद्याधर-चन्देलघशीय एक राजा। इनके पिताका सामज्वर, मध्यज्यर और गुल्मरोग आदि जाते रहते हैं। नाम गोण्ड और माताका नाम भुवनदेवी था। दूसरा तरीका--गन्धक, हरिताल, ' वर्णमाक्षिक, विद्याधर-एक मौद्धधर्मानुरागी। धास्तिकी शिलालिपि ताम्र, मैनसिल और पारद समान भाग ले कर एक • से जाना जाता है, कि ये अनावृष नगरमै यौद्धयतियों के साथ मिलाये। पोछे पीपलके काढ़े चार थूहरके दुध रहने के लिये एक माना गये हैं। इनके पिता जनक में यथाक्रम एक एक दिन भावना दे कर २ रत्तीको गोली