पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४९१

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विधानिका-विधि ४०७ मला हविष्यान्न, (८) भाद्रमासमें शुद्ध उपवास, (६) विधारिन् । स० लि. ) विधारणशोल, धारण करने- आश्विनमासमें २॥ प्रहरके समय सिर्फ एक बार मयूर वाला। का भएड परिमित हविष्याग्न, (१०) कार्शिकमासमें | विधायन ( स० लो० ) वि.धावल्युट । १ पश्चाद्धायन, अर्द्ध प्रसूति मात्र कपिला दुग्ध, (११) अप्रहायपमासमें | पीछे पीछे दौड़ना । २ निम्नामिमुन्न गमन, नोचेको पूर्यास्य हो कर घायुभक्षण, (११) पोपमासमें अति | ओर जाना । अक्षा गध्यघृत भोजन । वारदों मदोनेको सप्तमीतिधिमें | विधि ( स० पु०) विधति विदधाति विश्वमिति विघ सो प्रकार भोजन करनेका नियम है। विधान विध इन (इगुरघात कित् । उरण ४२११६) १ ब्रह्मा । . प्रत शेप हो जाने पर ब्राह्मण-भोजन और यथा- विधीयेते सुखदुःखे भनेनेति विधाकि (उपसर्गे धोः किः । विधान प्रतप्रतिष्ठा करना आवश्यक है। पीछे दक्षिः पा श६२) २ वह जिसके द्वारा सुखदुःखका विधान णान्त और अछिद्रावधारण करे । यह व्रत करनेसे सभी | होता है, भाग्य, अदूर, तकदीर। ३ क्रम, प्रणाली, • रोगोंसे मुकिलाम किया जाता है, तथा परलोकमें सुख- ढंग। ४ किसो शास्त्र या प्रन्धमें लिखी हुई व्ययस्था, सम्पद प्राप्त होती है। (कृत्यतत्त्व ) ।' शास्त्रोक विधान। ५ काल, समय। ६ विधान, विधानिका (स'. स्त्री०) पृहतो।। व्यवस्था। ७प्रकार, किस्म । ८ नियोग । । विष्णु । विधायक (सं०नि०) सिधा-धुल। विधानकर्ता, १० कर्म। ११ गजप्रास, हाथीका चारा। १२ घेछ । कार्य करनेवाला। २. निर्माता, बनानेवाला । ३ व्यवस्था १३ अप्राप्तविषयका प्रापक, छ: प्रकार सूत्रलक्षणोंमसे करनेयाला, प्रबन्ध करनेवाला । ४ जनक, उत्पादक । एका व्याकरण तथा स्मृति, धृति मादि धर्मशास्त्रों. ५ कारक, करनेवाला। में कुछ विधियों का उल्लेख है। उन सघ विधियोंकि विधायिन् (सं०नि०) वि.धा णिनि । विधानकर्ता। । अनुयत्ती हो कर उन शास्त्रोंका व्यवहार करना विधार (सं० पु०) विधायक, यह जो धारण करता हो। होता है। नीचे व्याकरणको कुछ स्थूल विधियां विधारण (सं० क्लो०) विध-णिच् ल्युट । १ विशेष रूपसे दिखलाई जाती हैं, जो सव सूत्र अप्राप्त विषय- धारण करना । । (त्रि०)२ धारक, धारण करनेवाला के प्रापक होते हैं अर्थात् जिस जिस सूत्रमें किसी धर्ण विधारय (सं० लि.) विविधधारणकारी। की उत्पत्ति या नाश होता है तथा जिसमें सन्धि, समास (शुक्लयजुः १७१८२ भाष्य) या किसी वर्णोत्पत्तिका निषेध रहता है, ये छः प्रकार के विधारयितव्य (स.नि.) विशेषरूपसे धारण करने के सूत्रलक्षणों के अन्तर्गत विधिलक्षणयुक्क सूत्र है। अमे- योग्य। (प्रश्नोपनि० ४५) "वधि गन” इस प्रकार सन्निधेश होने हीसे इकारकी विधारयित ( सं० वि० ) विधार्ता। (निरुत १२।१४) | जगह 'य' नहीं हो सकता, लेकिन यदि कहा जाय, कि विधारा (हिं० पु.) दक्षिण-भारतमें बहुतायतसे होने "स्वरवर्णके पीछे रहने से इकारको जगह 'य' होगा" समो पालो एक प्रकारकी लता। इसका झाड़ बहुत बड़ा हो सकता है। इसलिये यही अनुशासन अप्राप्त विषय- और इसकी शाखाएं बहुत घनी होती है। इसको का मापक हुमा । एक जगह दो सूतोंकी प्राप्ति रहनेसे वालियों पर गुलाधके-से कांटे होते हैं। वृक्षके पत्ते तीन | जिसका कार्य बलवान होगा, यही नियम विधियुक्त सूत्र .. मगुल लम्बे गएडाफार और नोकदार होते हैं । डालियों. | है अर्थात् प्राप्तिसत्ता जो विधि है, उसीका नाम के सिरे पर चमकदार पीले फूलोंका गुच्छा होता है। नियम है। सु (सुप) यिभक्ति पोछे रहने से एक साधा- वैद्यकमें इसे गरम, मधुर, मेघाजनक, अग्निप्रदीपक, | रण सूत्रके बल पर ही.तत्पूर्ववत्तीं सभी रेफ स्थानमें धातुधद्धक और पुष्टिदायक माना है। उपदंश, प्रमेह, विसर्ग हो सकता है । इस हिसायसे यदि ऐसा विधान . . झय, पातरक्त आदिमें इसे भोपधकी भांति व्यवहारमें रहे कि, "सुप्फे पीछे रहनेसे 'स', 'च' और 'न' की लाते हैं। . जगह जात रेफके स्थान में विसर्ग होगा" तो जानना