पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८२१

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विसूचिका भी दस्त और के कुछ मशमें होते रहते हैं। मुम्न क्रियाको प्रथमावस्या स्पर्श करनेसे चमड़ा गरम मण्डल अत्यन्त संकुचित और श्रीहीन दिखाई देता है। मालूम होता है। किन्तु उस समय भीतर सब भगोके दोनों होंठ नीले वर्ण, मोखे भोतरमें घसी और अध-1 शीतल रहनेसे थर्मामेटरमें उत्तापको माला अधिक दिखाई खुली, नाक चो और सर्वाङ्गमे पसीना निक नहीं देती । निश्वास प्रश्वास निमित और सरल लता रहता है। हाथ पैर संकुचित और रफ्त तथा पेशाव निासारित और पुनरुत्पादित होता है। शून्य अर्थात् धेायोके हाथकी तरह दिखाई देता है। अस्थिरता, वमन और तृष्णाका हास होता है । सामान्य उत्ताप बहुत कम हो जाता अर्थात् ६७से .. धिग्री तक परिमाणसे दस्त होते रहते हैं तथा मलमें पित दिखाई। हो जाता है। नाड़ी अत्यन्त क्षीण और किसी किसी देता है। रागोको फमो फमी निद्रा धर दयाती है। स्थान में मालूम भी नहीं होती। रपतसञ्चालन प्रायः बन्द | पेशाव सरलता होती है। किन्तु सदा ऐसी सुविधा हो कर श्वासरूच्छ उपस्थित होता है। किसी शिराके | नहीं रहती। अत्यन्त हिचकी, युरिमिया, मृदुस्वर, कारने पर जो सामान्य रक्त दिखाई देता है, यह भी कभी कमी पुनरायभेद, यमन, उदरामय, भामाशय, पहले काले अलकतरेकी तरह गाढ़ा दिखाई देता है, । कर्णमूल और कर्णियातमें क्षत इत्यादि नाना प्रकारक पीछे वायुस्पर्शसे उज्ज्वलवर्ण धारण करता है। उपमर्ग दिखाई देते हैं। इनमें प्रधान उपसर्ग युरिमिया प्रश्वासवायु शीतल भौर उसमें कार्यानिक गैसका भाग है। मतपय इसका सामान्य वर्णन करना उचित है। बहुत कम रहता है। कभी कभी श्यासकृच्छ, बढ़ता युरिमिया होने पर घमन फिर बढ़ने लगता है तथा मल है और रोगो शीतल वायु प्रक्षण करनेको माप्रह प्रका• । सन्ज रंगका हो जाता है। मांखें लाल लाल हो जाती है शिरा करता है। स्वरभङ्ग, अस्थिरता, अनिद्रा, शिरका । प्रलाप, कमरमें दर्द, मचैतन्य और आक्षेप आदि घरी घमना, शिरमें दर्द, कानों में तरह तरह के शब्दों का होना, । मान रहता है। २१३ दिनों तक पेशाव न होने पर रोगी टिपधर्मे, नाना वस्तुओं का दर्शन और कभी कभी कम्प ! फालकवलमें या टाइफापेड भवस्थामें आ जाता है। उपस्थित होता है। इस अवस्थाम लाला भोर पाम | युरिमियाका उत्ताप सामायिकरी का हो जाता है। रस आदिका हास दिखाई देता है। जिला शांतल, रोगो किन्तु न्युमोनिया, प्लरिसि, ज्वर आदि उपसर्ग उपस्थित माप्रहपूर्वक शोतल जलका पान करने तथा बदन के यत्रो. होने पर उत्तापकी वृद्धि होती है। . को उतार फेकनेको इच्छा प्रकाश करता है। अंग प्रकारभेद--(१) गुप्तप्रकार-कमी कभी सामान्य- स्पर्श करने पर मृतदेहकी तरह शीतल मालूम होती है। भेद और वमन होने के बाद सहसा हिमाङ्गावस्था प्राप्त मलका परिमाण अल्प और इसकी सड़ी मछलीका । होरोगोकी मृत्यु हो जाती है। (२) कालराजनिन जाये तरह. होती है। मून एक जाता है। शान प्रायः रिया या कलेरिन-इससे रोगी २।४ दिनों तक चार वार वर्तमान रहता है। किन्तु मृत्युके मध्यवहित पहले अधिक परिमाणसे तरल और पाण्डवर्णका मलत्याग भचेतनादि दिखाई देती है। स्वाभाविक शरोरमें स्पर्श करता है। सामान्य वमन और काम्प वर्तमान रहता द्वारा जो प्रत्यावर्सनिक क्रिया उत्पन्न होती है, उसको है। रोगी इस अवस्थामे आरोग्यलाभ कर सकता है। कमी होती है। ये सब लक्षण प्रखर होनेसे रोग प्रायः | या एक तरह ज्वरसे आक्रान्त हो मृत्युमुमें पतित भाग्य नहीं होता। वासरोध, रक्तसञ्चालनक्रिया हो सकता है। कमी कमी यह यथार्थ हैजेका रूप लोप अथवा अचेतन अवस्थामें मृत्यु हो सकती है। धारण कर लेता है। (३) समर डारिया या लिस (४). प्रतिक्रियाको अवस्था या रियाक्शन प्टेज-इसमें | कालेरा-इसमें कालराके सय लक्षण दिखाई देते हैं। रोगीको मुलश्री और वर्ण क्रमशः स्वाभाविक अवस्थामै किन्तु इसको तरह गुरुतर नहीं होता । मल और घमनमें परियारीत होते देखा जाता है। नाही और हृपिएडको पिस दिखाई देता मोर उदर अत्यन्त बेदना रहता है। किया सवल और शरीर उत्तप्त होने लगता है। प्रति· । सामान्य परिमाणसे मूत्रत्याग होता है। भाहारा