पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८२०

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७१८ . विसूचिका परिवर्तनके कारण अम्मात अदृश्य होते दिखाई देती / आदि कुछ दिनों के लिये वत्त मान रह सकते है। .. .... (२) प्रकाश या दस्त और केको अवस्था--अगरेजोमें विशेषमापसे पार्यवेक्षण करनेसे मालूम होता है, इनके यथाक्रम डेवलपमेण्ट · अथवा इवाक्यूयेशन ऐज कि इस रोगके निम्नलिखित फारण है-(१) अति वृष्टि, | कहते हैं। यह पीड़ा प्रायः प्रात:काल प्रकर होती है। .. (२) वायुको आता या स्थिरता, (३) अत्युषण बायु,। पहले अधिक परिमाणसे दस्त गाते हैं और उसमें मल (४) अपरिष्कृत जल और घायु, (५) अतिरिक्त परि और पित्त देखे जाते हैं। इसके आध या एक घण्टे के श्रम विशेषत: अधिक दूर जाने पर क्लान्ति, आदारका बाद उससे अधिक जलपत् मलत्याग होता रहता है। " अनियम, मनकट शोक, दरिद्रता, जनता और राति जाग.| २३ यार दस्त होनेके बाद इसका रङ्ग बदल जाता है। . . . रण आदि, (६) अधिक उम्र या शारीरिक दुवलना, देखने जलवत् और जरा सादा होता। अगरेजो (७) पीड़ित व्यक्तिके समीप रहना, या उधरसे मनुष्यों का जिसको राइस घाटर ष्टुल कहने हैं। कभी मल रक्त .. आना जाना, (८) नवागन्तुक शक्तिका शोघ्र आकांन वर्णका हो जाता है। मलका आपेक्षिक गुरुत्व १००५. होना। फुस्फुम और अंतड़ियों द्वारा यह विषाक्त से १०१० तक और इसके अधाक्षेपमें निम्नलिखित चीजे पदार्थ देहमें प्रवेश भीर पूर्ण विकाश पाते हैं। दिखाई देती है । जैसे–पोटाश और लवण और थोड़ा रोगको अवस्थाके अनुसार रोगीके बहुतेरे शारी- एलघुमेन। एक पाइण्ड मलमें ४ प्रेन गाढ़ा रहता रिक परिवर्तन होते हैं। शरीर ठण्डा हो जानेसे मृत्यु ई। अणुशीक्षण द्वारा शस्पयत् पदार्थ एपिथिलियेल होने पर चमडा नीलाभ और निम्नाश कुछ लाल रङ्गका केप और कभी कभी एक तरह का सूक्ष्म उद्भिज देखा तथा हाथ पैरका चर्म संकुचित हो जाता है। मृत जाता है। इस तरह बाह्य शनि शान और बारम्बार देह शीघ्र हो कड़ी और विकृत हो जाती है। मृत्युके | होता है। किन्तु प्रलत्यागमें सामान्य घेदना रहती है। याद शीघ्र हो उत्ताप कुछ बढ़ जाता है और मृतदेह कुछ। कभी कभी रोगीके उपरा देशमें कुछ जलन मालूम . . देर तक गरम रहती है। होती है। ७८ वार दस्त होने के बाद वमन बारम्म .. रोगाक्रमणके बाद किसञ्चालनको क्रिया में विकृति ! होते देखा जाता है। पहले पाकाशयसे भक्षित द्रव्य हो जाती है। हपिण्डका पायां कोटर, धमनो और बाहर निकलता है और उसमें पित्त मिला रहता है। , चर्म फी कैशिका और दक्षिण कोटर, पालमानरी शिराये, कमशः गलयत् अथवा पीताम तरल पदार्थ और म्यू- और पालमोनरी कैशिकाये रक्तशून्य हो जाती हैं। कास पदार्थ निकलता है। किसी चीज के भक्षण तथा २ से ५ दिनों तक और कभी कभी१८ दिनों तक औषध सेवन करनेके क्षाद वमनका धेग बढ़ता है। रोग गुप्तावस्थामें रहता है। इस अवस्थामें कोई विशेष रागीको अधिक निर्वलता दोध होने लगती है और वह लक्षण दिखाई नहीं देता। उक्त सस्थाके सिधा इस शोर्ण हो जाता है। 'जलवत् मलत्यागके समय रोगीके रोग निम्नक्ति और भी चार अवस्था प्रकट होती! क्रमशः हाथ पैरको उगलियों में, उरु देशमै, और पैरक पश्चात्मागमें ऐंठन ( Cramps) होने लगती है। (१) आक्रमणावस्था या इनमेमन् एंज-किसी जगह कभी कभा उदरको पेशी सक यह फैल जाती है। रोगी कालेरा या हैजा होने पर वहां बहुत आदमियोंको उदरा का मुखमण्डल बैंगना रङ्गका या सोसे के रङ्गका हो मय उपस्थित होता है। उनमें कई आदमियोंका उदरा जाता है। उत्ताप स्वामाधिसे कम हो जाता, नाही मय हैजेका उप प्राण करता है। उदरामय न होनेसे अत्यन्त क्षीण, अन्यान्य लक्षणोंम पिपासाधिषय और रोग पूर्वका पित्त अन्यान्य लक्षणों में दुर्वलता, मन अस्थिरता रहती है। भेद और प्रबरताके अनुमार कम्पन, मुखधो विषर्ण उदरोदा देशमै नेदना, कानके शीघ्र या कुछ देरसे तृतीय अवस्था उत्पन्न होता है। भोतर नाना शक्दोंगा होना, शिरापोड़ा, शिरका घुमना (३) हिमानोवस्था या कोलाप्लज इस समय