टकसाली-कोरना कम्पनोके अधिक्कन सभी स्थानों में चनाने लगा। टकहाई (हि. वि. ) जो वेश्याम खराब हो । १७८७ ई० में ढाका और पटनाको टकमाल बंद कर : टका (हिं० पु०) १ रुपया, चॉदाको पुरानी मुद्रा । २ दो दी गई। इसके बाद मुर्शिदाबादको टकमालभो उठ, पंमेके बगबर तौब की एक मुद्रा, अधना, दो पैसे। ३ गा। ' धन, ट्रव्य, रुपया, पैसा। ४ तोन तोलेको तौल, पाधो उस ममय भो कागो, फरक्काबाट, बरेलो, इलाहा. कटाकका मान। ५ सवा सेरके बराबरको एक तोल बाद, गारखपुर आदि नगरों में स्थानीय व्यवहार के लिए जो गढ़वाल में प्रचलित है। मिक बनते थे । किन्तु बहुत जगह टकमालके कर्मचारि. टकाई (हि.वि.) काही देखो। याँक अमव्यवहारमे सिक्के का मूल्य घटने लगा। गवः टकाटको (हि. स्त्रो०) टकटकी देखो। मंगट यथामाध्य चेष्टा करने पर भी उमका निराकरण न टकातोप (हि. स्त्रो. ) जहाजों पर रकदो जानवाली कर मको। एक प्रकारको तोप। ईमाको १८वीं शताब्दी के प्रारम्भमें ही कम्पनी के टकाना (हि.क्रि.) टँकाना देखो। अधिकत विम्तीगा प्रदेशमें एक तरह के मिकं चलानका टकार ( म०पु०) टस्वरूप कारः। ट, स्वरूप अक्षर । प्रमङ्ग किड़ा । कुछ भी हो, नवाधिक्कत और करद राज्यां- टकामी ( हिं• स्त्रो० ) १ दो पैसे प्रति रुपयका सूद । २ में नये नये मिक्क चलने लगे। हरएक मनुष्यमे टकके हिमाबमे लिये जानका चन्दा । पनि मिक्कीको गन्ना कर नये सिक्के बनानक लिए काही (हि. वि) टकहाई देखो। मागर, अजमेर आदि स्थानों में भी टकमाले स्थापित को . का टको (हि. खो. ) टकटकी देखो । गई थीं। टकुत्रा (हिं पु० ) १ चरखेमें लगा हुआ एक प्रकारका फिलहाल ममग्र भारतवर्ष में मिक्का, फरक्काबादो, मूत्रा। इम पर सूत काता और लपेटा जाता है. गोरखपुरी, वालाशाही आदि भिन्न भिन्न रूपोका तकला। २ चरखोंमें लोहे का एक पुरजा जिससे बिनौला अस्तित्व उठ कर सर्वत्र १८० ग्रेन (य) वजनका रुपया निकाली जाती है। ३ वह तागा जो छोटे तराज या प्रचलित हुआ है। १८३५ ई में मदाजको टकसाल उठ काटेक पलड़ौम बंधा होता है। गई और उमको मशीने आदि सब कलकत्ते और बम्बई को टकसालमें पहुंचाई गई। इसके बाद कलकत्ता टकुलो (हि.सी.) १ टॉको, एक प्रकारका औजार और बम्बईको टकसालमें ही समस्त भारतवर्ष के लिए जिसे पत्थर काटा जाता है। २ नक्काशी बनामके काम पानवाला एक प्रकारका लोहका औजार जो पेचकशकी मुद्रा बनने लगे और अन्यान्य टकसान' फिजल समझ कर उठा दी गई। इस समय यम्बई और कलकत्त में स तरह होता है। ३ एका पेड़का नाम । हो रुपये से बनते हैं। दोनों जगह के रुपये आदि एक टकैत (हि वि०) जिसे रुपये पैसे हों, धनो। हो प्रकारक होते हैं। टकोर ( हि स्त्र १ आघात, प्रहार, इलको चोट । इनके सिवा बहुतसे करद और मित्र राजाओं की राज. २ वह चोट जो नगाड़े पर पूजा के समय को जाती है। धानीमें टकसाले हैं। उन टकसाला में स्थानीय प्रदेगों ३ नगाड़ को पावाज। ४ धनुषको कसी हुई पतश्चिका के लिए रुपये आदि बनते हैं। खींच वा तान कर छोड़नेका शब्द, धनुषको डोरो खोंच- २ प्रामाणिक वस्त, असल चीज । मेको आवाज, टङ्कार। ५ दवा भरी हुई गरम पोटलो- टकसालो (१० वि०) १ टकमाल-सम्बन्धो, टकमालका। को किसो अङ्ग पर रह रह कर छुलानको क्रिया, सँक । २ टकमालका बना हुआ, मरा, चोखा। ३ मर्व-मम्मत, ६ खटो वस्तु खाने के कारण दाँतोको टोस, चमक। ७ माना हुपा। 8 परोधित, प्रामाणिक, ऊँचा हुषा, पका। तीक्ष्णता, तोतापन, चरपराहट । (पु.) ५ वह जो टकसालको देख भाल करता हो, टकोरना ( हि क्रि. १ ठोकर लगाना। २ बजाना, टकसालका मालिका चोट लगाना। ३ सेंकनांक
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