पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३४३

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करती है। फिलहाल बहुतसे न बपिकोंकी भी होता है। को 'मूदल' भी कहते हैं। यह कोश इस तरफ दृष्टि पड़ी है। बहुत कड़ा होता है, जोरसे दाबने पर भी दबता कोड़े पूर्णावयवको प्रान होने पर कोश बनानके नहीं। इससे नौवेदोंके योयोंको डारा, बगुई, जाडई लिए व्यय होते हैं। उस समय ये वृक्षको छोटो छोटो पादि कहते है। जिन कोयों को काट कर कोड़े हालिदों पर मुंभमे निकलो हुई लारसे उन्त बनाते स्वतः निकल जाते हैं, उनको रासकटा, पाम, पेते. है। यह लार ही बादमें सूख कर मजबूत तसर वा ससके बोडर, धूक, तथा फ की कहते हैं। जो कोश परिपक्षा स्थमें परिणत हो जाती है। हम बन जाने पर सत होनेसे पहले हो पसमयमें फोड़े वा उवाले जाते. है, निकालते हुए घूम घूम कर ये अपने लिए एक कोष बना वे बहुत कोमल होते हैं, उनको सहज हो दाब कर लेते हैं और उसमें बन्द हो जाते हैं। इन कोशोंका चपटा किया जा सकता है। यह किसो काम नहीं चालति कुछ ल वेपनको लिए गोल अडके समान है। होते पोर खुब कम दाममें बिकते है। कटे हुए कोश कोटको जाति के अनुसार कोश भो छोटे बड़े कई बिल्कुल ही नष्ट नहीं हो जाते । कोड़े कोश के इंठल के प्रकारके होते हैं। बड़े से बड़ा कोश ३ । २३ इञ्च तक पाम म त ठेल कर बाहर निकल जाते है। पतः उनसे लम्बा होता है। भो म त पाया जाता है। चींटी, चहे आदिके काटने पर कोश के अंदर २४ दिन तक लगातार सात निकाल कोश नाकाम हो जाते हैं। भाषाढ़ श्रावणमें पामते, कर, ये कोड़े चुपचाप सोते रहते हैं। इस अवस्थामें ये भाद्रमें भूदल, पाखिनमें मृगा, कात्तिकमे डाबा, अग खाना पीना मब छोड़ कर मुरदेको तरह 'निष्पन्द और इनमें बगुई, पोष और माघमें जाडुई कोश उत्पन निष्ट हो जाते है। किन्तु प्राचर्य की बात तो यह है, होते है। कि दो तोन मास तक इस तरह पड़े रहने पर मो इन कोशोंके म ग्रह किये आने के उपरान्त उत्कर्ष के अनु- को मृत्य, नहीं होती। इस अवस्थामें कोशको चोर कर मार उममेंमे चुन चुन कर पृथक् पृथक ढेरो लगाते हैं। इनको बाहर निकालनेसे, ये पिङ्गलवर्ण मांसपिण्डवत् बाद में उनको बाजार में बेचते हैं। चाईबासा, सिंहभूम, माल म पड़ते है, किन्तु शीघ्र ही ये हिल-डुम्ल कर सजाध- मानभूम आदि जिले और धलभूम, शिवरभूम, तुगभूम ताका प्रमाण दिखाते हैं। इस तरह प्रममयमें इनकी प्रादि स्थानों के व्यापारो लोग जंगल-वासियों से उन कोशों. निद्राभत करनमे ये ज्यादा देर तक जीत नहीं, शोघ्र ही को खरोद लेते हैं। वे फिर उनको बाँकुड़ा, विण पुर, मर जाते है । ममय पर ये अपने पाप कोशको काट कर मेदिनोपुर, मानकर, मोनामुखी, गजग्राम प्रादि स्थानों- खूबस रत प्रजापतिके रूपमें बाहर निकलते हैं। से पाये हुए व्यवसायियों को वा उनके थोक माल लेने- कोश सम्म ण बन आने पर रक्षकगण उनको उठानेके वालोंको बेच देते हैं। ये दलाल वा पैकारो लोग लिए तयार रहते हैं। उन्हें अपनी प्रभिन्नतासे, कब कोश अधिक लाभको पाशामे बहुधा गाँव गाँवमें घूम घूम कर पकता और फोड़नेके लायक होता है, इसका ज्ञान हो कोश म ग्रह किया करते हैं। किन्तु अधिकांश कोश जाता है। इस समय कोषमण्डित ताराजिबन वनभूमि निकटस्य हाट में बिकते हैं। तसर-कोशों के संग्रह के पर्यात फलशोभित फलोद्यानके समान योभायमान रहतो समय उन हामेिं पूर्वोक्त स्थानासे बहुतसे व्यापारियों है। जब कोष फोड़ कर दो-एक कोड़ा भागनेकी तैयारो का समागम होता है। चाँईबासाके अन्तर्गत हलुस करता है, तब रखकगण उ कहा कर घर ले पात पुकुर नामको हाटमें तथा बउड़ागुड़ा नामक स्थानमें इन है। कोड़े जीवित रहने बोध काट कर भाग जायगे, कोशीको बड़ो भारी खरीद विको होतो है। विक्रय के लिए रस भयसे कोडीको चारवी साथ गरम पानी में उबाल काटोमे उनको अलग अलग टेरो लगा दो जाती है। पर मार डालते हैजिन कोयोको उबासा नहीं जाता, खरोददार अपनी रचानसार एक एक ढेरोसे मुठो भर वे 'ऐयो' नामये प्रतिमा समर सबवे.पछा भर उनको परोषा करते। रसको चाख वा चाखतो