पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३४७

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मान हिं• पु०) बालक* पिताका बड़ा भाई, बड़ा चाचा। पथ पर पारद होने पर मन पक्षस होता पोर सुख दूर साजन (प० पु.) एक प्रकारका संक्रामक रोग। इसमें भाग जाता है। रसलिए उन लोगोंने खिर किया कि, रोगीको गिलटी निकलती पौर बुखार पाता है। ऐसा एक अमृतरस बनाना चाहिये जिसके पौनेमे पमरत्व ताजस ( प. पु.) १ मय र, मोर। २ एक प्रकारका प्राप्त रो, फिर रोग, शोक, जरा पोर मत्व, स्मयं भो न बाजा जो सारखी पौर सितारमे मिलता जुलता है। इस कर सके । इस उहशसे वे रसायनशास्त्र अधायनमें प्रवास पर मोरका चित्र बना रहता है। हुए । पमृतरस पी कर प्रमर हो जायगे, रस पायासे साजसो (प. वि० ) १ मोरकामा, मोरके रणका। २ मकड़ों लोग उनका मत ग्रहण करने लगे। पया धनी गहरा बैंगनी। पोर क्या गरोब, क्या स्त्री पोर क्या पुरुष, सभी अभिनव तामोई-( तानोचि नामसे प्रसिद्ध ) चोनदेशका एक नोतिशिक्षा व्यग्र हो गये। इस तरह थोड़े हो दिनों में प्राचीन धर्म मत और मम्प्रदाय ई० मे ६.३ वर्ष पहले तापोचो मम्प्रदाय अत्यन्त प्रबल हो गया। चोनमें सर्वच लेनोकाङ नामके एक दार्शनिकनं जन्मग्रहण किया हो इन्द्रजाल, प्रताधिष्ठान, भविषहाणी इत्यादिका था, वे हो इस मत पोर सम्पदागके प्रवर्तक थे । उनको प्रसार होने लगा। बहुत मे चोनसबाटोंने भो सापो. जोवनो पद्भुत और अलाक उपास्थानोंसे भरी हुई है। चियों के आपातमनोरम बचनों पर मुग्ध हो कर उन्हें उनके बाल बहुत ही सफेद थे, इसलिए वे 'लामोचि' पात्रय दान दिया था। सामोचियों में भी लोगोंको भक्ति पर्थात् 'शभकेश' के नामसे प्रसिद्ध थे। प्रकर्षित करने के लिए नामा स्थानों में देवमन्दिर पोर पहले लामोचि च -वशीय एक चोन सम्राटक पुस्त- देवमूर्तियाँ स्थापित कर पूजा, होम, वलि इत्यादि करना कालयके अध्यक्ष थे। इस कार्य से उन्हें नाना शास्त्र प्रारम्भ कर दिया। इस देश के सम्बयास्त्रों में जो चोगा- परिदर्शनमें विशेष सुभोता हुपा था। धीरे धीरे उनके चारक्रमका उल्लेख है, सामोचियों का क्रिया का प्राय: पाण्डित्यको चर्चा नाना स्थानों में फैल गई। चीन-सम्राट उमसे मिलता जुलता है। इस देश के लोगोंका विश्वास ने उनको मान्दारिन्का पद दे दिया। कुछ दिन बाद वे है, कि तन्त्रोक्त चोनाचार चोनदेशमे म देशम प्रचारित तिब्बत में जा कर एक लामाके पास धर्मोपदेश सोखने हुआ है। मम्भव है। लगे । रस शिक्षाके बलसे हो उन्होंने तापाई वा तायोचो मत का प्रचार किया है। वहीं इस देशम चोनाचार के अर्थात् अमरपुत्र नामक सम्प्रदायका प्रवर्तन किया था। नाममे प्रचलित हुभा हो। इन्होंने अनेक ग्रन्य रचे हैं, जिनमें तामोई ग्रन्थ हो तामोचियों में बहुतों को पिशाचसिह देखा जाता है। प्रधान है। ताोई मत बहुत पयोमें ग्रोक-विज्ञान इस समय तामोचि लोग शूकर, पक्षो पौर मन्यमे एपिकिउरसके मतका अनुयायो पौर कुछ चाक-मतके उपास्य देवताको पूजा किया करते है। बहुतसे तो पब समान है। दैवत कहलाता इस मतम-उपस्वभावसुलभ दुष्ट कामनाओं को छोड बहुत दिनों मे चोन के विहान् पोर बुद्धिमान व्यति कर दुदैम इन्द्रियों को वशीभूत करना ही मनुष्यका तामोनि-धर्मको प्रसारता प्रतिपादन करते पाये, प्रधान धर्म पौर उद्देश्य बतलाया है। मामा और मनको किन्तु तो भो बहुतसे चोनवासो कुसंस्कारको छोड़ कर जैसे बने-हर एक तसे सर्वदा मुखो रखनेकी चेष्टा तानोई धर्म का परित्याग नहीं कर सके। करना कर्ता बतलाया है। और यह भी बताया है कि सानोचियोंके प्रधान धर्माध्यक्ष, चोनके विसो प्रधान कभो भो कुचिन्ता मोर गोकरूपो टेको मनमें खानन मान्दिरिनको अपेक्षा भी पधिक सुख-सम्पदका भोग देना चाहिये। करते हैं। कियाङ्गसा प्रदेयके प्रधान नगरमें धर्माध्यक्षका साचोषिके मतका उनके गिनि बहुत कुछ परिवर्तन प्रामाद , देवता समझ कर उनके श्रीचरणके दर्शन कर डासा मनि देखा कि, भयावह पल कासमति- पथवा उनका उपदेश सुनने लिए बहुत दूर-देवान्तरीवे