पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५३९

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उनों हारा तिम्बतमें प्रचार किया गया । गो नामक नसे पाले तीन निर्माणकाय बुक (बुद्ध भावसिंह) ताधिक परिणतने नागार्जुनके मतसे समाजगुह्य मतका उपदेश है। इन्हींका माम साधारण 'यान' है। दूसरे प्रचार किया पोर सर्प नामक तान्त्रिक पण्डितने पिट- सोन सम्भोगकाय ववसत्वरे उपदेश है, जिनका नाम सबके अनुसार ममाज गुखमत, मातबके पनुसार वाचवा व सम्बयान रखा गया है। शेष तोम धर्म काय महामाया पनुष्ठान, ववर्ष पोर मम्बर-अनुष्मान विधि मामन्तभद्र वा कुन्तत-सपोके उपदेश.पोर ये प्रचलित को। . ये समस्त लोचोंके प्रतिष्ठित तान्त्रिक अनुत्तर पन्तरयानत्रय नामसे स्थात।। कुन्तत म'यो अनुष्ठान और विधि 'धर्मतन्प' वा नष्यतन्त्र नामसे यहांक मर्व प्रधान बुद्ध माने जाते है। ववधर मंहत के मनसे सम्प्रदायियोंमें (गेलुगप) प्रधान बुद्ध । वयमस्व राजा स्रोन् त्सन-गम्यो स्वय धर्मोपदेष्टा थे। इनके निमके मतसे दूसरे पोर शाक्यसि बुबके अवतार कार छात्र जो सब पुस्तक व्यवहार करते थे, वे 'ये रिम' कर तीसरे बुद्ध रूपमें सम्मानित होते हैं। वाद्य और नामसे पोर पवलोकितखरके उपदेशममूर 'झोगरिम' पन्तर तम्बोंमें बुद्धशाक्यसिंह स्वयं त्रियानों के उपदेष्टा नामसे पुकारे जाते थे। स्रोन्तमन-गम्पोने हो सबसे और उप वा कर्मतन्य तथा योगतम्य वेरावनसे. उप- परले 'यो मणि पोई' यह मन्द प्रचलित किया तथा दिष्ट है। पक्ष जाति या ध्यानो बुद्धों के माम-१)पयोग्य अनविधिको शिक्षा दो। वेहो भारत वर्ष मे कुथर पर (२ वैराचन (२) रत्नसम्भव ( ४ ) अमिताभ पोर (५' भएर बामण नाम के दो प्राचार्योको तथा काश्मोरमे पमोघमिह । प्रत्येकम वुद पवला पाच त्रानोंका प्रति- पण्डित शोलमन.को लाये। इनके पांचवें पुरुष के बाद माखकप। ववधर पनुत्तर वा अन्तर तबके उपदेश- गजा थि-सोन् पहले शान्तरक्षितको लाये । इन्होंने देशोय कर्ता हैं। निमके मतानुसार नामाको नो बोषिया :- लोगों के धर्माचरणको अवस्था देख कर उन्हें कुछ कुछ (१म) बुद्ध-जैसे शाक्यसिंह, कुन्तत संपो, दोर्ज सेन, अनुष्ठानादि सिखाने के लिये पहले 'दशध' प्रर्थान पमिताभ । '२य) रिगजिम । जो शवपालमें हो महत् प्राणो हिसानिषेध, चौयं निध. व्यभिचारनिषेध, मिथ्या गुणमम्पब और पोछे अपनी चेष्टा पौर पध्धवसायसे कथननिषेध, परनिन्दा वा कुवाक्यवचन निषेध, महाविहान पोर पन्त में विद्यापरियोंसे (ये से खहदाम) वृथा वाक्यव्ययनिषेध, लोभनिषेध, अमङ्गलचिन्तानिषेध, से पनुपाणित होते हैं, जैसे-पन सम्भव, योनि, मान- मत्यका अपनापनिषेध, इन दश विधियों का प्रचार पुर भोर अन्याय बोधिसत्वगण । (श्य) ग सग-नन वा क्यिा। रमके बाद तम्बमत सिखाने के लिये अनुनुप्राणित संन्यामी, जो बहुत यान मे गुध विषयको शान्तरतितके अनुरोधसे वे उद्यानमे पनसम्भवको रक्षा करत। (४) काबब-लुम तम खप्रादिष्ट पोर लाये। इन्होंने यहां कूटागारको नाई एक विहार स्वप्रानुपाणित सामागण। (५म) ले-थो-र-जो सब स्थापन किया। पनसम्भवन राजाको योगशिक्षा लामा गुप्त धर्म पुस्तक पाकर बिना शिक्षकको सहायतासे दो । राजा और छब्बीस मन्यासो विविध योगसे मिडि उन्हें समझ सकते और लिख मका (छ) मोन-तम लाभ कर नामा अलौकिक क्षमतापन हुए। बाद धर्म- संग्य-जो मब लामा उपासमा मिहि लाभ कर खरिक कोति, विमलमित्र, बुद्धगुध, शान्तिगर्भ प्रभृति शक्ति पात। इन छह उच्च श्रेणोके भेदके अतिरिक्त पगिलम रम देशमें पाये। धर्म कोलिने वव्वधातुयोग पानुष्ठानिक पवम्याके घोर तीन मैद (१) रिकाम भामक तान्त्रिक पाचार पोर विमलमित्रने सन्के गुण (मितिको रस रेपो )२) ने-तम (सिधिको निकटस्थ रहस्यको शिक्षा दो । निमके मतमे नौ प्रकारकं अनु. श्रेणी) पोर (३) मब मो,दग-मन ( गम्भोर भाव श्रेणी ) (१) यो (२) यल, (३) चव - सेम (४) पहली श्रेषो पुन: तीन उपविभाग है- थुल, दुपैदो किया (५) उप (4) योग (७) बप महायोग (८) और सेमयोग। सुचनुयोग (e) झोग-इनपो-पतियोग। मथुख श्रेणी-उ- पौरखम प्रदेश में व्यास।